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  • 18 Nov 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आंतरिक सुरक्षा

    भारतीय समुद्र तट हमेशा से आपराधिक और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के प्रति सुभेद्य रहे हैं। संभावित खतरों की चर्चा करते हुए, भारत में तटीय सुरक्षा के लिये किये गए उपायों पर प्रकाश डालिये। (250 शब्द)

    उत्तर
    • परिचय में भारत के तटीय तनाव तथा व्यापक तटीय सुरक्षा चुनौतियों के बारे में बताएँ।
    • भारत में तटीय सुरक्षा से संबंधित खतरों पर चर्चा कीजिये।
    • तटीय चुनौतियों से निपटने के लिये सरकार द्वारा सुरक्षा ढांँचे में किये गए उपायों का वर्णन कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • भारत में 7,517 किमी. लंबी तटीय रेखा है, जिसमें 5,423 किमी. की मुख्य भूमि और 2,094 किमी की अंडमान और निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं।
    • लंबी और कटी-फटी तटीय रेखा, प्रतिकूल इलाकों से गुज़रने के साथ-साथ भारतीय तटीय सुरक्षा तंत्र के समक्ष कई प्रकार की चुनौतियांँ उत्पन्न करती है।

    प्रारूप:

    तटीय सुरक्षा के लिये खतरा

    • गैर-राज्य अभिकर्त्ता: तटीय राज्य तथा विभिन्न महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठान जैसे-परमाणु ऊर्जा संयंत्र, तेल क्षेत्र, नौसेना/सैन्य/तट रक्षक ठिकाने और औद्योगिक क्षेत्र आतंकी हमलों और गैर-राज्य अभिकर्त्ता संगठनों के प्रति अत्यधिक सुभेद्य हैं।
      • इन क्षेत्रों पर हमले राष्ट्र के लिये न केवल आर्थिक रूप से विनाशकारी होंगे बल्कि संबद्ध /संपार्श्विक क्षति के कारण लोगों में भय और मनोविकार को उत्पन्न कर सकते हैं।
    • तटीय रेखा के साथ संगठित अपराध और समुद्री डकैती: नशीले पदार्थों, हथियारों और विस्फोटकों की तस्करी करने वाले संगठित गिरोहों द्वारा दी जाने वाली धमकियांँ इत्यादि तटीय सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न करती हैं।
      • आपराधिक समूह और गिरोह अपने हितों को पूरा करने के लिये कार्य करते हैं जो आतंकवादियों के साथ नेटवर्किंग द्वारा तथा उन्हें आतंकी गतिविधियों के संचालन के लिये रसद सहायता प्रदान करने से गंभीर घरेलू सुरक्षा चिंताओं का कारण बन सकते हैं ।
    • अवैध प्रवासी: खतरे के तीसरे स्तर में परिणामी और अप्रत्यक्ष खतरे शामिल होते हैं जिसमें बांग्लादेश और श्रीलंका से आने वाले प्रवासियों और शरणार्थियों के अवैध प्रवाह से भारतीय तट की सुरक्षा शामिल है, खासकर ओडिशा और तमिलनाडु के तटों पर अवैध प्रवाह।
      • हालांँकि ऐसे लोग प्रत्यक्ष रूप से सुरक्षा के लिये खतरा नहीं होते हैं, लेकिन शरणार्थियों की आड़ में देश में आतंकवादी गुटों की घुसने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
    • तटीय सुरक्षा के लिये अवसंरचना और संसाधन: तटीय क्षेत्रों में संसाधनों की पहुँच (तकनीकी और जनशक्ति दोनों के संदर्भ में) सुनिश्चित करने में काफी परेशानीयाँ होती हैं।
      • जिस कारण पूरी तट रेखा को संरक्षित करने में काफी दिक्कतें आती हैं।
    • विवादित समुद्री सीमा: विवादित समुद्री सीमा देश के समक्ष न केवल गंभीर सुरक्षा चुनौतियों को उत्पन्न करती है, बल्कि अपतटीय विकास में बाधा भी उत्पन्न करती है। पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ भारत की समुद्री सीमा का निर्धारण इनके अतिव्यापी दावों के कारण सही ढंग में नहीं किया जा सका है।
    • समन्वय की समस्याएंँ: भारत के तटों को सुरक्षित करने के लिये अनुमानित 22 विभिन्न मंत्रालय और विभाग लगे हुए हैं। अकेले केंद्रीय स्तर पर गृह मंत्रालय, रक्षा, विदेश मामले, जहाज़रानी, वन और पर्यावरण, पृथ्वी विज्ञान तथा वित्त के साथ-साथ मत्स्य विभाग इसमें शामिल हैं। इनके अतिरिक्त राज्य सरकारें, ज़िला प्रशासन, पुलिस इत्यादि भी शामिल हैं। जिस कारण विभिन्न मंत्रालयों एवं एजेंसियों के बीच समन्वय की समस्या उत्पन्न होती है।
      • इसी प्रकार मछुआरों को पहचान पत्र जारी करना एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है, इसके अलावा मछुआरों के साथ उन लोगों पर नज़र रखना भी तटीय सुरक्षा के संदर्भ में बड़ी चुनौती साबित हुई है।
      • जो दूसरों को नाव किराये पर देते हैं।
    • तटीय सुरक्षा को लेकर राज्यों के सहयोग का अभाव: जमीनी खतरों को कम करने के लिये समुद्री थानों की स्थापना के बारे में विचार किया गया था। हालाँकि, राज्यों की अनिच्छा के कारण समुद्री पुलिस थानों की स्थापना की गति धीमी रही है। उदाहरण के लिये ओडिशा में, कैग की एक रिपोर्ट में श्रमशक्ति का अभाव, इंटरसेप्टर नौकाओं की कमी, बुनियादी ढांचे का अभाव और समुद्री पुलिस कर्मियों के खराब प्रशिक्षण को उजागर किया गया। तटीय सुरक्षा राज्यों और केंद्र के मध्य बार-बार एक बहस एवं विवाद का कारण का बनता है।

    तटीय सुरक्षा के संदर्भ में भारत की रणनीति:

    • तीन स्तरीय निगरानी प्रणाली
      • वर्ष 2008 में मुंबई आतंकवादी हमलों से पूर्व देश के समुद्री क्षेत्र की निगरानी हेतु बहुस्तरीय प्रणाली का प्रयोग किया जाता रहा है। इस प्रणाली के तहत भारतीय नौसेना, तट रक्षक, समुद्री पुलिस, सीमा शुल्क और मछुआरों की एक शृंखला शामिल है।
      • बहु-स्तरीय प्रणाली के तहत बाहरी क्षेत्र (50 नॉटिकल मील से परे) में भारतीय नौसेना और तट रक्षक जहाज़ों और विमानों द्वारा गश्त की जाती है, मध्यवर्ती क्षेत्र (25-50 समुद्री नॉटिकल मील) में भारतीय नौसेना और ICG के जहाज़ों के साथ-साथ किराए पर चलने वाले ट्रॉलर द्वारा गश्त की जाती हैं तथा आंतरिक क्षेत्र जिसे प्रादेशिक जल क्षेत्र (12 समुद्री नॉटिकल मील तक तट रेखा) कहा जाता है में संयुक्त गश्ती दल द्वारा तथा बाद में समुद्री पुलिस द्वारा गश्त की जाने लगी।
      • 26/11 के मुंबई हमलों के बाद मौजूदा बहु-स्तरीय व्यवस्था को और अधिक मज़बूत किया गया है जिसके अंतर्गत देश के संपूर्ण तटीय क्षेत्र को कवर किया गया है।
    • तटीय सुरक्षा योजना
      • मौज़ूदा तटीय सुरक्षा योजना (मूल रूप से 2005 में बनाई गई) के क्रियान्वयन को तीव्र किया गया।जिसमें तटीय बुनियादी ढांँचे के लिये अधिक-से-अधिक धन का आवंटन किया गया इस धनराशि से भारत के समुद्र तट पर पुलिस स्टेशन और रडार स्टेशन स्थापित किया जाना शामिल था।
      • तटीय सुरक्षा योजना का उद्देश्य तटीय क्षेत्रों, विशेष रूप से तट के करीब उथले क्षेत्रों पर गश्त और निगरानी के लिये बुनियादी ढांँचे को मज़बूत करना है।
      • इस योजना के तहत तटों पर गतिशीलता के लिये नावों, जीपों और मोटरसाइकिलों से सुसज्जित तटीय पुलिस स्टेशनों की स्थापना की परिकल्पना की गई थी।
    • संयुक्त संचालन केंद्र: मुंबई, विशाखापट्टनम, कोच्चि और पोर्ट ब्लेयर में तटीय सुरक्षा के लिये भारतीय नौसेना द्वारा कमान और नियंत्रण केंद्र के रूप में स्थापित संयुक्त संचालन केंद्र पूरी तरह से चालू हो गए हैं। पैरामिलिट्री फोर्स तथा भारतीय सेना भी घुसपैठ की कोशिशों को नाकाम करने के लिये उत्तर भारत में खुले नदी तट क्षेत्रों का प्रबंधन कर रही है।
    • मछुआरों की जाँच, नियंत्रण और निगरानी: मछुआरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और तटीय जल में मछली पकड़ने वाले किसी भी ट्रॉलर के अवांछित प्रवेश को रोकने के लिये कदम उठाए गए हैं। इसके लिये सभी बड़े मछली पकड़ने वाले ट्रॉलर (20 मीटर और उससे अधिक) को एआईएस टाइप बी ट्रांसपोंडर के साथ स्थापित किया गया है। मछली पकड़ने के छोटे जहाज़ों पर रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइस को जोड़ने का प्रस्ताव विचाराधीन है।

    निष्कर्ष:

    • मुंबई हमलों के बाद तटीय सुरक्षा में शामिल समुद्री एजेंसियों द्वारा क्षमता और बुनियादी ढांचे में वृद्धि की ज़रूरत को महसूस किया गया।
    • हालांकि, गतिशील सुरक्षा चुनौतियों के साथ तालमेल स्थापित करने के लिये तटीय सुरक्षा तंत्र में शामिल विभिन्न एजेंसियों के बीच सहज संपर्क बनाने पर अभी भी कार्य करने की आवश्यकता है।
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