एक लोकतंत्र में स्वतंत्र मीडिया भ्रष्टाचार विरोधी प्रहरी के रूप में कार्य करता है। टिप्पणी कीजिये। (250 शब्द)
25 Dec 2020 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
दृष्टिकोण
- लोकतंत्र के लिये स्वतंत्र मीडिया के महत्त्व को संक्षेप में बताएंँ।
- भ्रष्टाचार की रोकथाम, निगरानी और नियंत्रण में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका (गुण और अवगुण के साथ) का विश्लेषण कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
परिचय
- एक स्वतंत्र मीडिया सूचनाओं के प्रसारण हेतु लोगों तथा सरकार के मध्य संचार के एक चैनल के रूप में कार्य करता है। नीति प्रक्रिया में इसकी सराहनीय भूमिका है। मीडिया लोगों को समाज के सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक-आर्थिक पहलुओं से संबंधित जानकारी प्रदान कर शिक्षित करता है।
- लोकतंत्र में इसके द्वारा लोगों को अधिकारों के बारे में शिक्षित करने, विभिन्न गंभीर मुद्दों और समाज की समस्याओं के बारे में जागरूकता पैदा करने का कार्य किया जाता है। यह समाज के हाशिये के वर्गों को मुख्यधारा में लाने में मदद करता है।
प्रारूप
भ्रष्टाचार की रोकथाम, निगरानी और नियंत्रण में मीडिया की महत्त्वपूर्ण भूमिका:
- भ्रष्टाचार को उजागर करना: मीडिया भ्रष्टाचार के प्रति जनता को सूचित और शिक्षित करता है सरकार, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज संगठनों में भ्रष्टाचार को उजागर करता है और भ्रष्टाचार के खिलाफ खुद का निरीक्षण करते हुए आचार संहिता का पालन करता है। मीडिया बहस, खोजी पत्रकारिता, आरटीआई, स्टिंग ऑपरेशन, ओपिनियन पोल आयोजित कर भ्रष्टाचार से लड़ता है।
- पारदर्शिता और ज़वाबदेही: मीडिया की स्वतंत्र सूचनाओं के प्रसार से सार्वजनिक क्षेत्र में पारदर्शिता की संस्कृति विकसित कर सकता है।
- मीडिया द्वारा की गई रिपोर्टिंग या भ्रष्टाचार के मामलों की रिपोर्टिंग को भ्रष्टाचार के बारे में जानकारी प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हो सकता है। इस प्रकार की रिपोर्टों पर तुरंत ज़बाव देने, तथ्यों का सही मूल्यांकन करने, दोषियों को पकड़ने हेतु कदम उठाने, प्रेस और जनता को इस प्रकार की कार्रवाई की प्रगति के बारे में समय-समय पर सूचित करने के लिये अधिकारियों द्वारा समय पर कार्रवाई की जानी चाहिये।
- आबादी का एक बड़ा वर्ग अशिक्षित और पिछड़ा हुआ है। यह स्वतंत्र मीडिया ही है जो उन्हें भ्रष्टाचार के बारे में जानकारी प्रदान करता है ताकि उनके पिछड़ेपन को दूर कर उन्हें प्रबुद्ध भारत का हिस्सा बनाया जा सके है।
- मीडिया, सरकार की महत्त्वपूर्ण नीतियों और कार्यक्रमों पर नज़र रखता है और उनके प्रभावों का गंभीर रूप से विश्लेषण करता है जो केवल एक स्वतंत्र और तटस्थ मीडिया के माध्यम से ही संभव है।
- मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी कहा जाता है क्योंकि यह शासन और शासित के मध्य महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य कर सभी स्तरों पर शासन में भागीदारी सुनिश्चित करता है।
मीडिया द्वारा जनता को जानकारी प्रदान करते समय नैतिक मानकों को बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है क्योंकि उनकी रिपोर्टिंग का तरीका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जनता के जीवन को प्रभावित करता है। हालाँकि मीडिया नैतिकता के साथ कुछ मुद्दे भी जुड़े हैं जो इस प्रकार हैं -
- सनसनीखेज़ खबरों और तुष्टीकरण की नीति ने मीडिया में नैतिकता को कम किया है।
- कभी-कभी मीडिया द्वारा प्रतिस्पर्द्धात्मक दबाव के चलते सूचनाओं और आरोपों को सार्वजनिक करने से पहले सत्यापित नहीं किया जाता है।
- पत्रकारों के लिये प्रशिक्षण का अभाव चिंता का एक और कारण है क्योंकि डिग्री के साथ-साथ कौशल भी मीडिया कर्मियों के व्यक्तित्व विकास में योगदान देता है।
- मीडिया संरचना और स्वामित्व में बदलाव, मीडिया का व्यावसायीकरण कई ऐसे कारण हैं, जिससे नैतिक मानकों में गिरावट आई है क्योंकि पेड न्यूज़ जैसी अनैतिक प्रथाओं पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
- मीडिया महत्त्वपूर्ण मुद्दों के बजाय तुच्छ मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- मीडिया द्वारा समुदायों को विभाजित कर उनके मध्य गलतफहमी पैदा करना तथा स्वयं को तटस्थ रूप में प्रस्तुत कर तर्कसंगत और वैज्ञानिक सोच का प्रचार करने के बजाय भविष्यवक्ता और अलौकिक शक्ति की तरह कार्य किया जाता है।
- संदेहास्पद मीडिया नैतिकता के उदाहरण भी देखने को मिलते हैं जैसे- पेड न्यूज़, राष्ट्रीय सुरक्षा पर संवेदनशील जानकारी का खुलासा करना, बलात्कार पीड़ितों के व्यक्तिगत विवरण का खुलासा करना आदि।
निष्कर्ष
- वर्तमान में मीडिया नैतिकता का पालन करने के लिये मीडिया हाउस की ज़रूरत है।
- महात्मा गांधी के शब्दों में: “पत्रकारिता का एकमात्र उद्देश्य सेवा होनी चाहिये। अखबार, प्रेस एक महान शक्ति है लेकिन जिस तरह पानी का एक अप्राप्य प्रवाह पूरे देश को जलमग्न कर देता है और फसलों को तबाह कर देता है, उसी प्रकार एक अनियंत्रित कलम भी समाज को नष्ट करने का कार्य करती है। यदि नियंत्रण बाहरी कारकों पर निर्भर होता है तो यह नियंत्रण से अधिक ज़हरीला साबित होता है। यह तभी लाभदायक हो सकता है जब नियंत्रण का भाव आंतरिक हो’’।