"जनजातीय अर्थव्यवस्था के कायाकल्प हेतु वन अधिकार महत्त्वपूर्ण हैं"। वर्तमान वन अधिकारों से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करते हुए आगे की राह सुझाएँ। (250 शब्द)
08 Dec 2020 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
दृष्टिकोण:
- वन अधिकारों और जनजातीय अर्थव्यवस्था के मध्य कड़ी स्थापित करने के संदर्भ में बताएंँ।
- वर्तमान वन अधिकारों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
- वन अधिकार अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू करने हेतु उपाय सुझाएँ।
- सुसंगत निष्कर्ष दीजिये
परिचय
- कोविड-19 महामारी ने किसी भी अन्य आयाम की तरह वन समुदायों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है। इसने आजीविका और आश्रय, खाद्य असुरक्षा, शारीरिक कठिनाइयों, स्वास्थ्य-चिंताओं एवं आर्थिक पहलुओं को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त किया है।
- वन अधिकारों में आजीविका के संरक्षण और कम-से-कम 200 मिलियन आदिवासियों (भारत के वन भूमि का 50% को कवर) के अन्य मुद्दों को संबोधित करने की क्षमता है। हालाँकि इसके लागू होने के डेढ़ दशक के बाद भी इस अधिनियम के कार्यान्वयन में शिथिलता है जो इसके सीमित क्रियान्वयन को दर्शाता है।
प्रारूप
वन अधिकार और संबंधित मुद्दे
- भारत का वन अधिकार अधिनियम -2016 (एफआरए) वन समुदायों को आजीविका के लिये वनों के संरक्षण, वनों का उपयोग, प्रबंधन और संचालन का अधिकार प्रदान करता है परंतु अधिनियम का खराब क्रियान्वयन एक मुद्दा बना हुआ है।
- एफआरए के खराब कार्यान्वयन के प्रमुख कारणों में शामिल हैं:
- राजनीतिक प्रतिबद्धता की कमी।
- जनजातीय मामलों के विभाग के साथ पर्याप्त मानव और वित्तीय संसाधनों की कमी, जो एफआरए के कार्यान्वयन के लिये एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करती है।
- वन नौकरशाही/अधिकारियों के साथ झगड़ा या विवाद जो विभिन्न स्तरों पर निर्णय को प्रभावित करता है।
- ज़िला और उप-प्रभाग स्तर पर गठित कमज़ोर समितियों द्वारा ग्राम सभाओं द्वारा दायर मुद्दों पर सही तरीके से विचार नहीं करती है।
- इस कानून को पारित हुए डेढ़ दशक हो चुके है हालांकि, पर्यावरण मंत्रालय द्वारा एफआरए के तहत 40 मिलियन हेक्टेयर में से केवल 13% का ही सीमांकन किया गया है।
- मौजूदा वन अधिकारों की विधिवत रिकॉर्डिंग और परिणामी टेनुरियल असुरक्षा (Tenurial Insecurity) वृद्धि के कारण महामारी के दौरान वनवासियों की आजीविका और खाद्य सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
वन समुदायों के समक्ष अन्य मुद्दे
- सामाजिक अवसंरचना की अनुपस्थिति: आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, कुपोषण, मलेरिया, कुष्ठ रोग और स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ के प्रसार के साथ, कोविड-19 जैसे किसी भी प्रमुख के प्रकोप निपटने से संबंधित क्षमताओं को गंभीर रूप से सीमित कर देती हैं।
- जनजातीय एवं वनवासियों तक जन वितरण प्रणाली की खराब पहुंँच सभी राज्यों में बनी हुई थी।
- लघु वनोपज से संबंधित मुद्दे: लघु वनोपज (एमएफपी) को लेकर स्वामित्व प्रदान करने से जनजातीय आजीविका में सुधार नहीं होगा, क्योंकि वन विभाग द्वारा एकल कृषि पद्धति अपनाए जाने के कारण एमएफपी (तेंदू के पत्तों को छोड़कर) का समग्र उत्पादन तेज़ी से कम हो गया है।
- इसके अलावा एमएफपी का ’राष्ट्रीयकरण’ होना जारी है, अर्थात् इन्हें केवल सरकारी एजेंसियों को ही बेचा जा सकता है।
- पीवीटीजी से संबंधित मुद्दा: भारत में दूरस्थ और अलग-अलग भौगोलिक स्थानों में रहने वाले विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) का अस्तित्व एक और मुद्दा बना हुआ है।
- इस पारिस्थितिकी तंत्र को तोड़ने से समुदायों का फैलाव और अलगाव बढ़ जाएगा, जिसका वनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
- ईआईए की कमजोरियाँ: आदिवासी समुदायों द्वारा सामना की जाने वाली ऐसी कठिनाइयों के बीच अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये ‘स्व-विश्वसनीय भारत ’ थीम के तहत कानूनों और नीतियों के कमज़ोर पड़ने से उनके प्रति नाराज़गी बढ़ गई है।
- पर्यावरण प्रभाव आकलन के कमज़ोर पड़ने और कोयला क्षेत्र में निजी संस्थाओं के लिये प्रवेश मानदंडों के उदारीकरण के संबंध में हालिया घोषणाओं ने जनजातीय समुदाय के मध्य आक्रोश बढ़ा दिया है।
आगे की राह
- एफआरए को लागू करना: इससे न केवल वनवासी समुदायों का विकास होगा बल्कि उनके और सरकार के मध्य विश्वासपूर्ण संबंधों का भी निर्माण होगा जिससे भूमि संघर्ष, नक्सलवाद और विकास से संबंधित समस्याओं में कमी आएगी।
- सहकारी संघवाद: व्यक्तिगत और सामुदायिक वन प्रबंधन के आर्थिक, सामाजिक और पारिस्थितिक लाभों को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकारों के सहयोग से केंद्र द्वारा वन अधिकार अधिनियम, 2006 को पूर्ण आस्था एवं विश्वास के साथ लागू किया जाना चाहिये।
- इसके अलावा, यह महत्त्वपूर्ण है कि केंद्रीय और राज्य स्तर पर जनजातीय मामलों के मंत्रालय को मानव और वित्तीय संसाधनों के साथ मज़बूत बनाया जाना चाहिये ताकि एफआरए को मिशन मोड आधार पर लागू किया जा सके।
- वन नौकरशाही में सुधार: एफआरए के कार्यान्वयन के लिये आधुनिक तकनीक का लाभ उठाने और निगरानी के लिये वन नौकरशाही को भी ग्राम सभाओं के लिये सेवा प्रदाताओं के रूप में सेवा प्रदान करने से संबंधित सुधार करना चाहिये।
- एमएफपी के लिये बाज़ार का सदृढ़ीकरण : गैर-लकड़ी वन उत्पादों के विपणन और एमएसपी समर्थन प्रदान करने तथा मूल्य संवर्द्धन के लिये सामुदायिक वन उद्यमों का समर्थन करने हेतु संस्थागत तंत्र बनाने की आवश्यकता है।
- इसके अलावा सरकार के लिये ग्राम सभाओं को तकनीकी सहायता जारी रखना ज़रूरी है, ताकि न केवल एमएफपी का उच्च उत्पादन सुनिश्चित किया जा सके, बल्कि किसानों को मूल्य सहायता भी प्रदान की जाए ताकि आदिवासी अर्थव्यवस्था का कायाकल्प किया जा सके।
निष्कर्ष
एफआरए के तहत मान्यता प्राप्त अधिकारों ने व्यापक स्तर पर संकट के दौरान उत्पन्न बाधाओं और स्थितियों पर नियंत्रण पाने के लिये विभिन्न स्तरों पर वन समुदायों को सहायता प्रदान की है। हालाँकि कानूनों का व्यापक कार्यान्वयन मौजूदा समय की आवश्यकता है।