"नैतिकता के विकास हेतु पहला कदम अन्य मनुष्यों के साथ एकजुटता की भावना है।’’ इसे प्राप्त करने में भावनात्मक बुद्धिमत्ता द्वारा निभाई गई भूमिका पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
23 Dec 2020 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
दृष्टिकोण
- परिचय में एकजुटता की अवधारणा पर संक्षेप में चर्चा कीजिये।
- नैतिकता के विकास में एकजुटता के महत्त्व का उल्लेख कीजिये।
- इसे प्राप्त करने में भावनात्मक बुद्धिमत्ता के तत्त्वों की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
परिचय
- एकजुटता एक ऐसा गुण है जो समाज में व्यक्तियों को समानता, गरिमा के साथ रहने तथा एकता को सुनिश्चित करने में सक्षम बनाता है। तेज़ी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में नैतिकता के विकास के लिये यह अनिवार्य मूल्य है।
- मनुष्यों के साथ एकजुटता की भावना रखने से समानुभूति, सहिष्णुता और करुणा जैसे मूल्यों को आत्मसात कर नैतिक निर्णयों में सुधार होता है।
प्रारूप
एकजुटता का महत्त्व
- एकजुटता समाज में नैतिकता के विकास का आधार निर्मित करती है जैसे:
- नीतिशास्र एक सामूहिक अवधारणा है: एकजुटता की भावना की उपस्थिति के लिये एक सामाजिक समूह बनाने की ज़रूरत है जो नैतिकता के अस्तित्व के लिये एक बुनियादी आवश्यकता है।
- नैतिक मूल्यों का गठन: समाज की मूल्य प्रणाली का गठन समाज के सदस्यों के योगदान के कारण होता है।
- नैतिक मूल्यों में परिवर्तन: प्रचलित मूल्यों का उल्लंघन/बहिष्कार ऐसे मूल्यों में परिवर्तन ला सकता है, जैसा कि 19वीं शताब्दी में सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों द्वारा किया गया था।
- नैतिक आचरण को लागू करना: एक व्यक्ति समाज से निष्कासित होने के भय के कारण नैतिक मूल्यों का उल्लंघन नहीं करता है। इस डर का कारण मनुष्य द्वारा दूसरों के साथ जुड़ाव की भावना महसूस करना है।
- जवाबदेही और ज़िम्मेदारी: मानव में एकजुटता की भावना दूसरों के प्रति उनकी संवेदना को जन्म देती है। इस तरह के बदलाव उन्हें अपने कार्यों के प्रति अधिक-से -अधिक ज़वाबदेह और ज़िम्मेदार बनाते हैं। जब किसी व्यक्ति के अंदर ज़वाबदेही और ज़िम्मेदारी की भावना उत्पन्न होती है तो यह समाज की सूरत बदल सकती है।
मानवता के बीच एकजुटता लाने में भावनात्मक बुद्धिमत्ता के तत्वों की भूमिका
- स्व-जागरूकता: स्व-जागरूकता एक व्यक्ति की भावनाओं, ताकत, चुनौतियों, उद्देश्यों, मूल्यों, लक्ष्यों और सपनों को ईमानदारी से प्रतिबिंबित करने और समझने की क्षमता है। यह विशेषता सहिष्णुता को बढ़ाती है जो किसी भी समाज में एकजुटता स्थापित करने की पूर्व शर्त है।
- स्व-नियमन: यह किसी की भावनाओं को नियंत्रित करने से संबंधित है, अर्थात् तीव्रता से प्रतिक्रिया व्यक्त करने के बजाय व्यक्ति भावनाओं को नियंत्रित कर प्रतिक्रिया देने से पहले अच्छे से सोच-विचार कर सकता है। मानवता के मध्य लंबे समय तक शांति बनाए रखने के लिये यह आवश्यक है।
- आंतरिक प्रेरणा: इसमें किसी के लक्ष्यों, पहल या अवसरों पर कार्य करने की तत्परता और आशावाद तथा लचीलेपन के प्रति प्रतिबद्धता में सुधार और प्राप्त करने के लिये व्यक्तिगत क्षमता शामिल है। मानवता न केवल स्वय को बेहतर प्रेरणा प्रदान करती है बल्कि सामाजिक-आर्थिक विकास प्राप्त करने में सहायक होती है।
- समानुभूति: यह व्यक्तिगत रूप से और समूहों, दोनों की ज़रूरतों एवं भावनाओं के प्रति ज़ागरूकता है तथा दूसरों के दृष्टिकोण से वस्तुओं एवं स्थितियों को देखने की क्षमता है। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विवाद की स्थिति में समानुभूति संघर्ष के समाधान के लिये एक आवश्यक गुण है।
- सामाजिक कौशल: यह समानुभूति को लागू करने और दूसरों की इच्छाओं और आवश्यकताओं को संतुलित करने के लिये संदर्भित है। इसमें दूसरों के साथ अच्छा तालमेल बनाना शामिल है।
अन्य गुण
- अच्छाई को बढ़ावा: इससे न केवल नेतृत्व, रिश्तों के प्रबंधन और संघर्ष के समाधान में मदद मिलती है बल्कि यह आपको भावनात्मक स्थिति से भी अवगत कराता है। मात्र अपनी भावनात्मक स्थिति और जीवन में तनाव के प्रति अपनी प्रतिक्रियाओं के बारे में पता होने से हम तनाव का प्रबंधन करने और अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने की उम्मीद कर सकते हैं। भावनात्मक रूप से बुद्धिमान होना भी हमारी मानसिक स्थिति को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है जिससे समाज में एक व्यक्ति के योगदान को बढ़ाया जा सकता है।
- अधिक-से-अधिक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम: इसके अलावा भावनात्मक रूप से बुद्धिमान लोग अधिक सफल होते हैं। उच्च भावनात्मक बुद्धिमता हमें आंतरिक रूप से मज़बूत बनाने में प्रेरक का कार्य करती है तथा शिथिलता को कम करती है, आत्मविश्वास को बढ़ा सकती है तथा लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने की हमारी क्षमता में सुधार कर सकती है।
Conclusion
- इस प्रकार नैतिकता का विकास एक दूसरे के प्रति एकजुटता की भावना से शुरू होता है और फिर व्यक्तिगत नैतिकता, समाज और अंततः राष्ट्र की नैतिकता में तब्दील हो जाती है।
- एक नैतिक राष्ट्र अधिक मज़बूत होता है क्योंकि इसमें प्रत्येक नागरिक अपने कार्यों और उसके परिणामों से अवगत होता है। जैसा कि स्वामी विवेकानंद ने कहा है- "यदि अपने आप पर विश्वास करने को अधिक विस्तृत रूप से पढ़ाया और अभ्यास किया गया होता, तो मुझे यकीन है कि बुराइयों और दुखों का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता।