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  • 07 Dec 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    कोविड-19 महामारी का प्रभावी प्रबंधन भारत के संघीय ढाँचे का लिटमस परीक्षण है। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    दृष्टिकोण

    • कोविड-19 महामारी को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में भारत के संघीय ढांँचे के महत्त्व पर प्रकाश डालिये।
    • कोविड-19 महामारी के दौरान उत्पन्न संघीय मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
    • समस्या के समाधान के संदर्भ में उपयुक्त उपाय सुझाइये।
    • सुसंगत निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    • कोविड-19 को हराने में भारत की सफलता केंद्र-राज्य के मध्य सक्रिय सहयोग पर निर्भर है। हालांँकि हाल के कुछ घटनाक्रमों ने केंद्र-राज्य सहयोग के मध्य विवाद को भी जन्म दिया है।
    • ये राज्य ही हैं जो महामारी के लिये पहले उत्तरदाताओं के रूप में कार्य करते हैं। अत: संकट से प्रभावी ढंग से निपटने की लिये राज्यों को पर्याप्त धनराशि और स्वायत्तता प्रदान करना प्रथम शर्त है।
    • इसके लिये केंद्र द्वारा राज्यों को बराबरी के स्तर पर रखना और अपनी क्षमताओं को मज़बूत करने के बजाय राज्यों की स्वयं पर निर्भरता बढ़ाने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में कोविड-19 ने भारत के संघीय ढांँचे के लिये एक लिटमस परीक्षण किया जिसकी प्रकृति संवैधानिक विशेषज्ञों के बीच बहस का विषय बनी हुई है।

    प्रारूप

    महामारी के दौरान उत्पन्न संघीय मुद्दे

    राज्यों के समक्ष वित्त का अभाव

    • कोविड-19 प्रेरित लॉकडाउन के कारण राज्यों के राजस्व स्रोत प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए हैं।
      • राज्यों के राजस्व का अधिकांश हिस्सा शराब की बिक्री, संपत्ति के लेन-देन में स्टाम्प शुल्क और पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री पर कर से प्राप्त होता है।
      • हालांँकि ब्याज भुगतान सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं और कर्मचारियों के वेतन पर खर्च अपरिवर्तित रहा।
      • इसके अलावा राज्यों को अब परीक्षण, उपचार, स्वास्थ्य के बुनियादी ढांँचे पर निवेश और कोविड-19 उपायों पर अधिक खर्च करने के लिये कहा जा रहा है।
    • राज्यों का GST संग्रह भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है क्योंकि केंद्र द्वारा उन्हें अभी भी बकाया राशि का भुगतान नहीं किया गया है।
    • एफआरबीएम अधिनियम के अनुसार, राज्य द्वारा एक निश्चित सीमा से अधिक ऋण उधार नहीं लिया जा सकता है।
    • इसके अलावा, कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व के लिये PM-CARES राहत कोष बनाया गया है। हालांँकि कोविड -19 के लिये 'मुख्यमंत्री राहत कोष' या 'राज्य राहत कोष' में दी जाने वाली राशि कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व व्यय के रूप स्वीकार्य नहीं है।
    • यह सीधे किसी मुख्यमंत्री राहत कोष में धनराशि जमा करने को हतोत्साहित करता है। राज्य के राजस्व में करोड़ों की राशि PM-CARES में प्रदान करने के कारण ऐसे राज्यों की केंद्र पर निर्भरता बढ जाती है।
    • इसके अलावा संसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLADS) के सदस्य का निलंबन और भारत के समेकित कोष से धन का अंतरण, सहकारी संघवाद की सहमति के बिना नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह सांसदों द्वारा किये गए स्थानीय स्तर पर प्रत्येक अनुकूल समाधानों को हतोत्साहित करता है।
    • इस परिदृश्य में भारत के राज्य, वित्त के लिये पूरी तरह केंद्र सरकार पर निर्भर हो गए हैं।

    कोविड-19 आपदा का प्रबंधन

    • उदाहरण के लिये 'रेड', ऑरेंज 'और' ग्रीन 'ज़ोन के वर्गीकरण को लेकर कई राज्यों द्वारा आलोचना की गई हैं।
    • राज्यों द्वारा इस प्रकार के वर्गीकरण के निर्धारण के लिये अधिक स्वायत्तता की मांग की गई है।यह इस तथ्य के बावजूद है जब राज्य द्वारा परामर्श केंद्र के आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत एक विधायी जनादेश है (जिसके तहत कोविड -19से संबंधित बाध्यकारी दिशानिर्देश केंद्र द्वारा राज्यों को जारी किए जा रहे हैं)

    प्रवासी संकट

    • प्रवासी श्रमिकों का प्रवाह उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में अधिक हो रहा है, जो कि पहले से ही गंभीर वित्तीय और चिकित्सा घाटे का सामना कर रहे हैं, यह स्थिति इन राज्यों के समक्ष गंभीर समस्या उत्पन्न कर देगी।
    • इस प्रवासी श्रमिकों के प्रवास से कृषि, औद्योगिक और निर्माण क्षेत्र की गतिविधियांँ प्रतिकूल रूप से प्रभावित होंगी।
    • इस मामले में केंद्र और राज्य दोनों प्रवासी संकट की समस्या से संबंधित सुसंगत और समग्र योजना तैयार करने में विफल रहे हैं।

    उठाये जाने योग्य कदम

    लघुकालिक उपाए

    • एफआरबीएम अधिनियम द्वारा लगाई गई सीमा को शिथिल किया जाना चाहिये ताकि जिन राज्यों के पास धन की कमी हो रही है वे महामारी का मुकाबला करने तथा अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिये धन उधार ले सकें।
      • उधार ली जाने वाली यह धन राशि केंद्र सरकार की संप्रभु गारंटी द्वारा समर्थित होनी चाहिये।
    • केंद्र सरकार राज्यों को धन मुहैया करा सकती है ताकि राज्य स्तर पर संकट से निपटने के लिये आवश्यक कार्रवाई की जा सके।
    • केंद्र सरकार द्वारा गोदामों से राज्यों को अनाज उपलब्ध कराने के लिये एफसीआई को निर्देशित किया जाना चाहिये।
    • इस संकट से निपटने के लिये एक सफल दृष्टिकोण को अपनाने हेतु केंद्र के हस्तक्षेप और मार्गदर्शन की आवश्यकता होगी, जो राज्यों में बड़े पैमाने पर सर्वोत्तम सेवाओं का संचार करे, वित्तीय आवश्यकताओं को प्रभावी ढंग से संबोधित करे और बड़े स्तर पर समस्याओं के समाधान के लिये राष्ट्रीय विशेषज्ञों की सलाह प्राप्त करे।

    दीर्घकालिक उपाए

    • राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ भारतीय प्रधानमंत्री की हाल ही में संपन्न बैठक सहकारी संघवाद का प्रमाण है। इस संदर्भ में सरकार द्वारा अंतर-राज्य परिषद को स्थायी निकाय बनाने पर विचार किया जाना चाहिये।
    • आपदाओं और आपात स्थितियों (प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों) के प्रबंधन को संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची III (समवर्ती सूची) में शामिल किया जाना चाहिये।
    • एक अंतर-राज्य व्यापार और वाणिज्य आयोग की स्थापना की जानी चाहिये, जो ‘वन इंडिया वन मार्केट ’के विचार को समझने में मदद करेगा।
    • राज्यपाल और अनुच्छेद 356 की संस्था के माध्यम से राज्यों पर संघ का नियंत्रण होना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    • भारतीय संविधान सभा द्वारा विश्व के विभिन्न लोकतांत्रिक संघीय मॉडल का अध्ययन किया गया और भारत की ज़रूरतों के हिसाब से एक विशिष्ट प्रणाली तैयार की गई। इसके अलावा यह तर्क दिया जाता है कि एक "मजबूत केंद्र" द्वारा आवश्यक रूप से कमज़ोर राज्यों का निर्धारण नहीं किया जा सकता है।
    • परिणामस्वरूप भारत द्वारा सहकारी संघवाद ’को अपनाया गया जिसे केंद्र और राज्यों के मध्य तथा राज्यों के बीच अनिवार्य प्रशासनिक सहयोग के रूप में परिभाषित किया गया है। इसलिये कोविड -19 महामारी से निपटने के लिये संघ और राज्यों दोनों को मिलकर कार्य करना चाहिये एवं सहकारी संघवाद की भावना को मज़बूत करना चाहिये।
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