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भूकंप क्या है और इसकी उत्पत्ति के क्या कारण हैं? भूकंप के प्रभावों को बताते हुए इससे निपटने के लिये पूर्व-आपदा तैयारियों के समक्ष वाली चुनौतियों पर भी चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

04 Dec 2020 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

दृष्टिकोण:

  • भूकंप को परिभाषित करते हुए इसकी उत्पत्ति के कारणों की व्याख्या कीजिये।
  • भूकंप के प्रभाव पर चर्चा कीजिये।
  • भूकंप आपदा पूर्व तैयारी में आने वाली चुनौतियों के बारे में बताए।
  • उपरोक्त चुनौतियों का समाधान दीजिये ।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

परिचय

  • भूकंप पृथ्वी की सतह पर होने वाला आकस्मिक कंपन है जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी की भू-पर्पटी में अचानक ऊर्जा विमुक्त होकर भूकंपीय तरंगों का निर्माण करती है।
  • भूकंप के कारण संपत्ति एवं जन-धन की क्षति होती है। भूकंप की उत्पत्ति तब होती है जब टेक्टोनिक प्लेटों में अचानक गति होती है या वे टूटती हैं।

प्रारूप

भूकंप की उत्पत्ति में विभिन्न कारक जैसे- टेक्टोनिक प्लेटों में गति, ज्वालामुखी गतिविधि या भूमिगत विस्फोट इत्यादि शामिल हैं:

  • प्लेट विवर्तनिक गतियाँ: ये मेंटल की उष्ण और सघन चट्टानों पर प्लेटों के तैरने के कारण होती है।परिणामस्वरूप प्लेट्स भू-पर्पटी की सतह के नीचे निरंतर गतिशील रहती हैं। जब ये प्लेट्स एक-दूसरे से टकराती हैं या एक-दूसरे से रगड़ती हैं, तो फॉल्ट लाइनों का निर्माण कर शॉक वेव्स उत्पन्न करती हैं। शॉक वेव्स पृथ्वी के भीतरी कोर के भूमिगत दबाव के कारण पृथ्वी की भू-पर्पटी में संग्रहीत ऊर्जा का परिणाम है।
    • जापान, कनाडा, अमेरिका, पापुआ न्यू गिनी, दक्षिण अमेरिका और न्यूज़ीलैंड में प्रशांत प्लेट के किनारे लगभग 80% भूकंप इसी कारण से आते हैं।
    • हिमालय क्षेत्र में भूकंप भी इसका एक उदाहरण है।
  • ज्वालामुखीय गतिविधि: सामान्यतः भूकंप के दौरान ज्वालामुखी विस्फोट के साथ मैग्मा भी बाहर निकलता है जो मुख्यत: भूमिगत चट्टानों में हुए अचानक विस्थापन एवं झटकों के कारण होता है।
  • मानव प्रेरित भूकंप: शॉक तरंगें भूमिगत खनन के परिणामस्वरूप या रेलरोड, सब-वे या भूमिगत सुरंगों के निर्माण के दौरान भी उत्पन्न हो सकती हैं। हालांँकि इन गतिविधियों से उत्पन्न कुछ भूकंपीय तरंगें वास्तविक भूकंपीय तरंगों के समान मज़बूत नहीं होती हैं।

भूकंप मनुष्य के लिये लाभप्रद कम तथा हानिकारक अधिक होते हैं।जिसे निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है:

  • जीवन और संपत्ति का नुकसान: गंभीर भूकंप मानव संरचनाओं जैसे-झोपड़ियों से लेकर महलों तथा एकल मंज़िल से लेकर बहुमंज़िला इमारतों तक को नष्ट कर सकते हैं। यहांँ तक कि ज़मीन तथा रेलवे लाइनों के नीचे बिछाई गई पाइपलाइन भी भूकंप के कारण क्षतिग्रस्त या विस्थापित हो सकती है। वर्ष 1970 में आया कोयना भूकंप इसी प्रकार की क्षति का उदाहरण है।
  • नदियों के जल प्रवाह मार्ग में परिवर्तन: भूकंप के प्रभाव के कारण कभी-कभी नदियाँ अपना मार्ग परिवर्तित कर लेती हैं। परिणामस्वरूप जब नदियों में बाढ़ आती है तो लोगों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ता है।
  • सुनामी: यह तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के साथ-साथ पर्यटकों की जान और संपत्ति के लिये भी हानिकारक है। 26 दिसंबर, 2004 में सुमात्रा के पास समुद्र में आए भूकंप के कारण उत्पन्न सुनामी ने भारत और श्रीलंका सहित दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को प्रभावित किया जिसमें लगभग 3 लाख से ज़्यादा लोग मारे गए।
  • पृथ्वी की सतह में दरारें: भूकंप के कारण खेतों, सड़कों, पार्कों और यहांँ तक कि पर्वतों की सतह में दरारें आ जाती हैं। कैलिफोर्निया में सैन एंड्रियास फॉल्ट इसी प्रकार की दरार का उदाहरण है।

आपदा-पूर्व तैयारी और प्रतिक्रिया

  • नीति निर्माण: नीतिगत विकास की आवश्यकता राष्ट्रीय, प्रांतीय/ज़िला और स्थानीय स्तरों पर सामान्य लक्ष्य निर्धारित करने के लिये होती है। आपदा प्रबंधन हेतु सेंदाई फ्रेमवर्क को लागू करना महत्त्वपूर्ण है।
  • राष्ट्रीय और उपनगरीय स्तर पर आपदा संगठन: सरकार के मंत्रालयों और गैर- सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों द्वारा आपदा संगठनों का निर्माण किया जाता है। जिनकी आपदा-पूर्व गतिविधियों और आपदा प्रतिक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। ऐसी स्थिति में सभी एजेंसियों के मध्य तालमेल स्थापित करना बेहद ज़रूरी है।
  • भेद्यता मूल्यांकन और संकटपूर्ण मानचित्रण: अब भी कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जिन्हें भेद्यता मूल्यांकन एवं खतरनाक क्षेत्रों के मानचित्र में शामिल नहीं किया गया है। इस प्रकार दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों का मानचित्रण करने की आवश्यकता है।
  • सभी स्तरों पर क्षमता निर्माण में कमी: समुदायों के पास उपलब्ध सूचनाओं की कमी और प्राथमिक स्तर पर चिकित्सीय प्रबंधन की क्षमता का अभाव है। भूकंप के दौरान लोगों एवं समुदायों को जोखिमों या खतरों के बारे में समय-समय पर सूचित किया जाना चाहिये तथा उन्हें आपदा के समय क्या नहीं करना चाहिये, इस बात से भी अवगत कराना चाहिये।

निष्कर्ष

  • भारत विश्व का पहला देश है जिसने सार्वजनिक रूप से एक ऐसी योजना को प्रस्तुत किया है जो शिक्षा और सार्वजनिक सूचना के माध्यम से लोगों के मध्य आपदा जोखिम के प्रति समझ विकसित करने पर केंद्रित, सेंदाई फ्रेमवर्क की कार्रवाई के लिये चार प्राथमिकताओं को लागू करने पर आधारित है। जिसमें बेहतर आपदा तैयारियों के लिये निवेश करना, आपदा से निपटने के लिये बुनियादी ढांँचा, प्रतिबद्धता और वसूली, बेहतर पुनर्वास और पुनर्निर्माण आदि शामिल हैं।