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किसानों की आय को दोगुना करने हेतु किसानों को कृषि उद्यमी के रूप में परिवर्तित करना भारतीय कृषि नीति की एक अनिवार्य शर्त है। (250 शब्द)।

19 Dec 2020 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

दृष्टिकोण

  • कृषि उद्यमियों को व्यवहार्य विकल्प के रूप में पेश करते हुए परिभाषित कीजिये तथा परिचय में संक्षेप में बताएँ कि किसानों की आय को दोगुना करना क्यों आवश्यक है?
  • प्रारूप में उन उपायों को बताइये जिनके द्वारा कृषि उद्यमी किसानों की आय को दोगुना करने में मदद कर सकते हैं।
  • कृषि उद्यमियों को उनकी आय बढ़ाने में सक्षम बनाने हेतु कुछ ज़रूरी एवं महत्त्वपूर्ण नीतिगत हस्तक्षेपों के बारे में बताएँ।
  • उत्तर के अनुसार एक उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय

  • भारत में खाद्य सुरक्षा का लक्ष्य प्राप्त करने में हरित क्रांति सफल रही है। हालांँकि दशकों से कृषि से प्राप्त होने वाली आय में स्थिरता की स्थिति बनी हुई है। इस असंगत स्थिति को दूर करने के लिये भारत सरकार द्वारा वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। किसानों को कृषि उद्यमी/एग्रीप्रेन्योर में परिवर्तित करना इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सबसे व्यवहार्य रणनीतियों में से एक है।
  • कृषि उद्यमी/एग्रीप्रेन्योर वे हैं जिनका मुख्य व्यवसाय कृषि या कृषि से संबद्ध गतिविधियाँ हैं। इन एग्रीप्रेन्योर को जोखिम को प्रबंधित करने और दीर्घकालिक पूंजी को आकर्षित करने के लिये एक कॉर्पोरेट इकाई के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।

प्रारूप

एग्रीप्रेन्योर के कुछ तरीके अपनाकर किसानों की आय को दोगुना करने में मदद कर सकते हैं जो इस प्रकार हैं:

  • कृषि को एक व्यवसाय के रूप में देखना जिसमें पूंजी और उत्पादन जैसे आदानों के दृष्टिकोण को बदलना शामिल है क्योंकि इनसे प्राप्त लाभ सीधे किसानों की आय में वृद्धि कर सकते हैं।
  • यंत्रीकृत खेती को सुविधाजनक बनाने के लिये लैंडहोल्डिंग (भूमि जोत) जैसे संसाधनों को एक साथ शामिल किया जा सकता है।
  • कृषि उद्यमी ग्रामीण स्तर पर आवश्यक सेवाओं के आपूर्तिकर्त्ता बन सकते हैं। इसमें इनके द्वारा कृषि कार्यों हेतु उधार और वितरण, कृषि उपकरण जैसे- ट्रैक्टर, थ्रेसर और हार्वेस्टर को किराये पर लेना शामिल है।
  • पशुपालन क्षेत्र में प्रजनन, टीकाकरण, रोग निदान और उपचार सेवाएंँ प्रदान कर उपलब्ध अवसरों का लाभ उठाया जा सकता है।
  • कृषि उद्यमी इनपुट प्रोड्यूसर भी बन सकते हैं। ये गृह उद्यमी ग्रामीण स्तर पर जैव कीटनाशक, मिट्टी संशोधन, जैव उर्वरक और वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन कर सकते हैं।

किसानों को कृषि उद्यमी में बदलने के लिये नीतिगत स्तर पर हस्तक्षेप की आवश्यकता है

  • बड़े स्तर पर पोषक तत्त्वों के अनुप्रयोग के साथ वैज्ञानिक कृषि की सूक्ष्म सिंचाई पद्धति को बढ़ावा देना।
  • किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के माध्यम से सहकारी, वाणिज्यिक बैंकों और नाबार्ड जैसे संस्थागत स्रोतों से समय पर पर्याप्त ऋण उपलब्ध कराना।
  • कृषि उपज विपणन समिति अधिनियम को कृषि उपज और पशुधन विपणन अधिनियम से प्रतिस्थापित कर बाज़ार पहुंँच को सुनिश्चित करना तथा ई-एनएएम के माध्यम से कृषि विपणन कर्मियों की कमी को पूरा करना।
  • कृषि निर्यात नीति द्वारा किसानों को वैश्विक बाज़ार से प्रतिस्पर्द्धा करने की सुविधा मिलनी चाहिये।
  • फार्म इनकम इंश्योरेंस प्रोग्राम में सभी मौसम की फसल को शामिल कर इन उद्यमियों को वित्तीय और सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिये।
  • कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिये बीज, कृषि उपकरणों के साथ इन उपकरणों की किस्मों में सुधार के लिये और अधिक कृषि अनुसंधान को बढ़ावा देकर किसानों की आय में वृद्धि करना।
  • उद्यमियों को बेहतर औद्योगिक और उद्यमशील शिक्षा प्रदान करने से स्वाभाविक रूप में विशाल मानव संसाधन उपलब्धता का लाभ उठाया जा सकता है ।
  • एक स्वतंत्र निर्यात शासन का निर्माण तथा आवश्यक वस्तु अधिनियम का उन्मूलन करना।
  • इस प्रकार के अन्य हस्तक्षेपों में विशेष कृषि क्षेत्र (SAZ) स्थापित करना, कृषि-पर्यटन को बढ़ावा देना, ग्रामीण गैर-कृषि रोज़गार का सृज़न तथा सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों का लाभ उठाना शामिल हो सकता हैं।

निष्कर्ष

  • इस प्रकार यदि राष्ट्रीय कृषि नीति किसानों को कृषि उद्यमी में परिवर्तित करने की सुविधा प्रदान करती है तो इसमें न केवल किसानों की आय को दोगुना करने की पर्याप्त क्षमता विद्यमान है बल्कि यह राष्ट्रीय आय में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है।