आत्मनिर्भर भारत अभियान में कोविड-19 महामारी से प्रभावित आर्थिक गतिविधि को पुनर्जीवित करने और क्षेत्रों में विकास हेतु नए अवसर पैदा करने की क्षमता विद्यमान है। विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
14 Dec 2020 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
दृष्टिकोण
- आर्थिक गतिविधियों को पुनर्जीवित करने हेतु आत्मनिर्भर भारत अभियान की भूमिका की संक्षिप्त व्याख्या कीजिये।
- अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों पर इस प्रोत्साहन पैकेज के प्रभाव को लेकर चर्चा कीजिये।
- संबंधित चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
- सुधार हेतु उपाय सुझाइये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
परिचय
- भारत सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज से बड़े सुधारों की घोषणा की गई है।
- इस योजना के दो प्रमुख उद्देश्य हैं-पहला, अंतरिम उपायों को अपनाना जिसके अंतर्गत उन गरीब लोगों के लिये तरलता और सीधे नकद हस्तांतरण को बढ़ावा देना है जो वास्तव में इस तनाव की स्थिति को कम करने में सहायक हो सकते हैं। दूसरा, दीर्घकालिक सुधारों को अपनाना जो कि इन क्षेत्रों को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी और आकर्षक बना सके।
- ये कदम कोविड -19 महामारी से प्रभावित आर्थिक गतिविधि को पुनर्जीवित कर सकते हैं तथा कृषि, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई), बिजली, कोयला और खनन, रक्षा एवं विमानन आदि क्षेत्रों में विकास के नए अवसर उत्पन्न कर सकते हैं।
प्रारूप
प्रोत्साहन पैकेज का प्रभाव
- प्राथमिक क्षेत्र: कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के लिये घोषित उपाय (ईसीए, एपीएमसी, अनुबंध निर्धारण, आदि में विशेष रूप से परिवर्तनकारी हैं।
- ये सुधार ‘वन नेशन वन मार्केट’ उद्देश्य को आगे बढ़ाने की दिशा में उठाया गया कदम हैं जो भारत को ‘विश्व खाद्य फैक्ट्री’ बनाने में सहायक होंगे।
- ये उपाय एक आत्म-स्थायी ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को प्राप्त करने में मददगार साबित होगे।
- साथ ही मनरेगा से 40,000 करोड़ रुपए उन प्रवासियों संकट को दूर करने में मदद मिल सकती है, जब महामारी के कारण अपने गाँवों में लौटते हैं।
- द्वितीयक क्षेत्र: भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये MSMEs के महत्त्व को देखते हुए पैकेज के तहत MSMEs के लिये 3 लाख करोड़ रुपए के जमानत-मुक्त ऋण की सुविधा इस वित्त-अभिहित क्षेत्र के लिये सहायक होगी जो अर्थव्यवस्था की निराशाजनक स्थिति को कम करने में सहायक हो सकती है।
- चूंँकि MSME क्षेत्र भारत में दूसरा सबसे बड़ा रोजगार सृजन का क्षेत्र है। इस कदम से श्रम गहन उद्योगों को बनाए रखने में मदद मिलेगी और इस प्रकार भारत तुलनात्मक लाभ प्राप्त कर सकता है।
- इसके अतिरिक्त हथियारों के आयात को सीमित करना और रक्षा क्षेत्र में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की सीमा को 49% से बढ़ाकर 74% करना, भारत के विशाल रक्षा आयात बिल को कम करने के साथ ही आयुध निर्माणी बोर्ड में उत्पादन को अत्यधिक बढ़ावा देगा।
- तृतीयक क्षेत्र: सरकार द्वारा सभी क्षेत्रों में चिंताओं को दूर करने के लिये एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया गया है। उदाहरण के लिये:
- डिजिटल ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये मल्टी मोड एक्सेस की सहायता से पीएम ई-विद्या कार्यक्रम द्वारा राष्ट्र के लिये एक समान शिक्षण मंच प्रदान करता है जो स्कूलों और विश्वविद्यालयों को शिक्षण के घंटों के नुकसान के बिना ऑनलाइन पाठ्यक्रमों को बढ़ावा देने में सहायक होगा।
- ज़मीनी स्तर पर स्वास्थ्य संस्थानों में निवेश करने और ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों की स्थापना कर कार्य करने से स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च में वृद्धि होगी।
संबंधित चुनौतियाँ
- तरलता से संबंधित मुद्दे: 20 लाख करोड़ रुपए के पैकेज में राजकोषीय और मौद्रिक दोनों उपायों का समावेश किया गया है जो अर्थव्यवस्था में क्रेडिट गारंटी और तरलता की प्रकृति के कारण बैंकों तथा अन्य वित्तीय क्षेत्र के संस्थानों की तुलना में अधिक है।
- पैकेज में तरलता की अधिक मात्रा को व्यवस्थित किये जाने से संबंधित उपाय किये गए हैं जिसे भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बैंकों को तथा बैंकों द्वारा नागरिकों के लिये सुनिश्चित किया जाना है। जो मौद्रिक नीति के अक्षम संचरण के कारण संभव नहीं है।
- मांग में कमी: लॉकडाउन ने कुल मांग को कम कर दिया है अत: राजकोषीय प्रोत्साहन की आवश्यकता है। हालाँकि यह पैकेज, अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के संदर्भ में क्रेडिट इन्फ्यूज़न पर अत्यधिक निर्भर होने के कारण अपनी पहचान स्थापित करने में विफल रहा है इस पैकेज से निवेश संभव है जब आय वर्ग के लोगों के पास खर्च करने के लिये पर्याप्त पैसा उपलब्ध होगा।
- पिछड़े और अग्रगामी संबंधों का अभाव: जब तक शेष घरेलू अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित नहीं किया जाता है तब तक एमएसएमई क्षेत्र को मांग में कमी का सामना करना पड़ सकता है और इसका उत्पादन भी शीघ्र ही बंद हो सकता है।
- राजकोषीय घाटे को समाप्त करना: सरकार का दावा है कि प्रोत्साहन पैकेज भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 10% है। हालाँकि इसका वित्तपोषण कर पाना मुश्किल होगा क्योंकि सरकार राजकोषीय घाटे को लेकर चिंतित है।
- वित्त संचरण में कठिनाई: सरकार इस योजना के लिये वित्त जुटाने हेतु विनिवेश करना चाहती है।
- हालाँकि भारतीय उद्योगों का अधिकांश हिस्सा पहले से ही सार्वजनिक उपक्रमों में हिस्सेदारी के कारण कर्ज-ग्रस्त है।
- इसके अलावा विदेशी बाजारों के लिये उधार लेना मुश्किल है, क्योंकि डॉलर की तुलना में में रुपया काफी कमज़ोर है।
उठाए जाने वाले कदम
- बढ़ती मांग: लॉकडाउन से बाहर निकलने के लिये देश को आर्थिक पैकेज हेतु अर्थव्यवस्था में मांग को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता होती है।
- इसके लिये सबसे अच्छा तरीका ग्रीनफील्ड इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च करना है।
- अवसंरचना पर खर्च विशिष्ट रूप से ऐसी संरचनाएओं का निर्माण करना है जो उत्पादकता को बढ़ावा देती हैं और दैनिक मज़दूरी वाले मज़दूरों से प्रभावित आबादी के वर्ग तक खर्च करने की शक्ति का विस्तार करती हैं।
- वित्त का संचालन: प्रोत्साहन पैकेज के वित्तपोषण हेतु भारत का विदेशी भंडार उच्च स्तर पर हैं जिसका रणनीतिक रूप से अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है।
- बाकी वित्त राशि को निजीकरण, कराधान, ऋण और अधिक अंतर्राष्ट्रीय सहायता से प्राप्त किया जाता है।
- समग्र सुधार: कोई भी प्रोत्साहन पैकेज ट्रिकल-डाउन प्रभाव को प्रतिबिंबित करने में विफल रहेगा जब तक कि यह विभिन्न क्षेत्रों में सुधारों को बढ़ावा नहीं देता।
- इस प्रकार आत्मनिर्भर योजना में समग्र सुधारों के अधूरे एजेंडे को भी शामिल किया गया है जिसमें सिविल सेवाओं, शिक्षा, कौशल और श्रम आदि में सुधारों को शामिल किया जा सकता हैं।
निष्कर्ष
कोविड-19 महामारी से उत्पन्न आर्थिक संकट वर्ष 1991 के आर्थिक संकट की तरह है, जो उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के माध्यम से एक प्रतिमान बदलाव का अग्रदूत था। कोविड-19 के बाद के युग में अभूतपूर्व अवसरों की शुरुआत हो सकती है, बशर्ते कार्यान्वयन की कमी को पर्याप्त रूप से संबोधित किया जा सके।