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  • 27 Nov 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    कॉर्पोरेट गवर्नेंस क्या है? भारत में कॉर्पोरेट प्रशासन से संबंधित क्या नैतिक मुद्दे हैं? भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस में सुधार हेतु उपाय सुझाइए। (250 शब्द)

    उत्तर

    दृष्टिकोण:

    • कॉर्पोरेट प्रशासन का वर्णन कीजिये।
    • भारत में कॉर्पोरेट प्रशासन से संबंधित नैतिक मुद्दों को सूचीबद्ध कीजिये।
    • भारत में कॉर्पोरेट प्रशासन में सुधार के लिये उपाय सुझाइये।
    • कॉर्पोरेट प्रशासन के महत्त्व को रेखांकित करते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • कॉर्पोरेट प्रशासन में अनिवार्य रूप से एक कंपनी के कई हितधारकों जैसे-शेयरधारकों, वरिष्ठ प्रबंधन अधिकारियों, ग्राहकों, अपूर्त्तिकर्त्ताओं , फाइनेंसरों, सरकार और समुदाय के हितों को संतुलित करना शामिल है।

    प्रारूप:

    भारत में कॉर्पोरेट प्रशासन के जुड़े नैतिकता से संबंधित मुद्दे:

    • हितों का टकराव: प्रबंधकों द्वारा शेयरधारकों की परवाह किये बिना स्वयं को समृद्ध बनाने की चुनौती। उदाहरण के लिये आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व प्रमुख चंदा कोचर का मामला जिसमें उन्होंने अपने पति को लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से वीडियोकॉन कंपनी के लिये ऋण को स्वीकृति प्रदान की।
    • कमज़ोर प्रबंधन बोर्ड: अनुभव और पृष्ठभूमि की विविधता की कमी बोर्डों के लिये कमज़ोर कारक का प्रतिनिधित्व करती है। बोर्ड सदस्यों में शेयरधारकों के शामिल होने के कारण बोर्ड की कार्यप्रणाली पर प्रश्न किये जाते हैं। IL & FS के मामले में किसी भी बोर्ड सदस्य द्वारा एक भी आपत्ति दर्ज़ नही की गई थी।
    • स्वामित्व और प्रबंधन का पृथक्करण: परिवार संचालित कंपनियों के मामले में स्वामित्व और प्रबंधन का पृथक्करण भारत की कुछ शीर्ष कंपनियों सहित अधिकांश कंपनियों के समक्ष एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।
    • स्वतंत्र निदेशक: स्वतंत्र निदेशकों द्वारा अक्सर पक्षपातपूर्ण तरीके से निर्णय लिये जाते हैं जो प्रमोटरों के अनैतिक कार्यों की जाँच करने में सक्षम नहीं होते हैं।
    • कार्यकारी मुआवज़ा: कार्यकारी क्षतिपूर्ति एक विवादास्पद मुद्दा है, खासकर उस वक्त जब यह शेयरधारक की जवाबदेही से संबंधित होता है। कार्यकारी मुआवज़े को हितधारकों की जांँच के परीक्षण के संदर्भ में देखा जाना चाहिये।

    भारत में कॉर्पोरेट प्रशासन में सुधार हेतु सुझाव

    • उदय कोटक पैनल की सिफारिशों को लागू करना, जैसे:
      • सूचीबद्ध संस्थाओं के बोर्ड में न्यूनतम 6 निदेशक शामिल होने चाहिये जिसमे कम- से-कम 1 स्वतंत्र महिला निदेशक का शामिल होना अनिवार्य है।
      • स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति में पारदर्शिता के साथ बोर्ड में उनकी अधिक सक्रिय भूमिका हो।
      • ऑडिट कमेटी को 100 करोड़ रुपये से अधिक के ऋण पर ऋण/सलाह/ निवेश के उपयोग की समीक्षा करनी चाहिये।
    • बोर्ड में विविधता का होना: किसी भी बोर्ड में विविधता का होना एक सकारात्मक बात है, इस संदर्भ में सभी लिंग, जातीयता, कौशल और अनुभव का उपयोग किया जा सकता है।
    • जोखिम प्रबंधन हेतु मज़बूत नीतियांँ: बेहतर निर्णय लेने के लिये प्रभावी और मज़बूत ज़ोखिम प्रबंधन नीतियों को अपनाया जाना चाहिये क्योंकि यह सभी निगमों के सामने आने वाले जोखिम-व्यापार के प्रति गहरी अंतर्दृष्टि विकसित करता है।
    • प्रभावी शासन अवसंरचना: नैतिक व्यवहार को निर्देशित करने वाली नीतियांँ और प्रक्रियाएंँ किसी भी संगठनात्मक व्यवहार का आधार होनी चाहिये इसके लिये बोर्ड और प्रबंधन के बीच ज़िम्मेदारी का विभाजन सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
    • बोर्ड के प्रदर्शन का मूल्यांकन: बोर्ड को अपने कार्यों के मूल्यांकन के दौरान उज़ागर कमज़ोरियों को ध्यान में रखते हुए, अपनी शासन प्रक्रियाओं को विस्तारित करने पर विचार करना चाहिये।
    • संचार: बोर्ड के साथ शेयरधारक के संपर्क को स्थापित करना संचार की प्रमुख कुंजी है। इसमें व्यक्ति का संपर्क शेयरधारक से होना आवश्यक है जिसके साथ शेयरधारक किसी भी मुद्दे पर चर्चा कर सकने में सक्षम हो।

    निष्कर्ष:

    भारत जैसी बढ़ती अर्थव्यवस्था में घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्रोतों से निवेश आकर्षित करने के लिये कॉर्पोरेट प्रशासन महत्त्वपूर्ण है।

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