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02 Dec 2020
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
राष्ट्रवाद का चरित्र अपने शुरुआती चरण में आर्थिक था। टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
दृष्टिकोण:
- राष्ट्रवाद के सामान्य लक्षणों को बताते हुए परिचय दीजिये।
- अंग्रेजों के शोषणकारी आर्थिक चरित्र एवं राष्ट्रवादी आर्थिक चरित्र की व्याख्या कीजिये।
- दिये गए तर्कों को उपयुक्त उदाहरणों के साथ सिद्ध कीजिये।
भारत में राष्ट्रवाद का विकास ब्रिटिश शोषणकारी आर्थिक नीतियों से जुड़ा हुआ है। वर्ष 1831 की शुरुआत में ही राजा राममोहन राय द्वारा भारत से ‘निकासी’ की बात की गई अर्थात् धन की एकतरफा आवाजाही।
- ब्रिटिश शासन भारत के लिये आर्थिक रूप से हानिकारक था तथा यह ब्रिटिश अर्थव्यवस्था के अनुरूप या ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को समृद्ध करने के लिये प्रयासरत था। ब्रिटिश शासन की इस वास्तविकता को राष्ट्रवादी नेताओं जैसे- जी.के. गोखले, जी.वी. जोशी, एम. जी. रानाडे, डी.ई. वाचा, आर.सी. दत्त, दादाभाई नौरोजी तथा बी.जी. तिलक द्वारा अपने राष्ट्रवादी पत्र मराठा और केसरी में उजागर किया गया।
- नौरोजी का मानना था कि भारत में बढ़ती गरीबी का मुख्य कारण ब्रिटिश शासन था। उन्होंने सबसे पहले इस विचार को सामने रखा कि ब्रिटेन द्वारा भारत में अपने शासन की कीमत के रूप में यहाँ से धन निकासी की जा रही है। ' राष्ट्रवादी नेताओं द्वारा दृढ़तापूर्वक सवाल उठाया गया कि इंग्लैंड भारत की गरीबी का फायदा उठाकर भारत से धन की निकासी कर रहा है।
नौरोजी द्वारा भारत की आर्थिक स्थिति पर ‘पावर्टी एंड अन ब्रिटिश रूल इन इंडिया’ पुस्तक लिखी गई। वे भारतीय राष्ट्रीय काॅन्ग्रेस की संस्थापकों सदस्यों में से एक थे और उन्हें भारतीय राष्ट्रीय काॅन्ग्रेस के अध्यक्ष के रूप में तीन बार चुना गया था। वहीं एक अन्य नेता रानाडे भारत-ब्रिटिश आर्थिक संबंधों में भारत के लिये आर्थिक न्याय हेतु खड़े थे। इनके द्वारा भारत के आर्थिक राष्ट्रवाद के संदर्भ में पहला पूर्ण एवं एकीकृत तर्क प्रस्तुत किया गया।
‘स्वदेशी’ का विचार विदेशी उत्पादों के खिलाफ स्वदेशी उत्पादों के प्रचार के लिये किया गया था। बंगाल विभाजन की प्रतिक्रिया में स्वदेशी आंदोलन शुरू किया गया जिससे ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार को बहुत बढ़ावा मिला।
इसलिये यह तर्क देना उचित होगा कि राष्ट्रवाद का चरित्र शुरू से ही आर्थिक था। एक बार जब नेताओं और जनता द्वारा महसूस किया गया कि राजनीति और प्रशासन में अर्थशास्त्र शामिल है तो यह स्पष्ट होना निश्चित था कि भारतीय राष्ट्रवाद का चरित्र आर्थिक ही था।