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07 Nov 2020
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद व्यवस्था पर चर्चा कीजिये जो 1990 के दशक के शुरुआती दौर में समाप्ति की स्थिति में थी। दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद को समाप्त करने में भारत द्वारा निभाई गई भूमिका का उल्लेख कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
दृष्टिकोण
- रंगभेद प्रणाली का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
- रंगभेद की नीतियों की व्याख्या कीजिये।
- भारत द्वारा रंगभेद प्रणाली के खिलाफ किये गए प्रयासों का विवरण दीजिये।
परिचय:
- सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी के दौरान, यूरोप की व्यापारिक कंपनियों द्वारा दक्षिण अफ्रीका पर कब्ज़ा कर उसे अपने उपनिवेश के रूप में परिवर्तित कर दिया गया।
- रंगभेद उस नस्लीय भेदभाव प्रणाली का नाम था जिसे श्वेत यूरोपीय उपनिवेशवादियों द्वारा दक्षिण अफ्रीका में अधिरोपित किया गया।
प्रारूप:
रंगभेद प्रणाली के तहत नीतियाँ:
- अश्वेतों को मतदान का अधिकार नहीं: रंगभेद प्रणाली ने लोगों को उनकी त्वचा के रंग के आधार पर विभाजित करने का कार्य किया। श्वेत शासकों द्वारा अश्वेतों को हीन दृष्टि से देखा जाता था तथा रंगभेद प्रणाली के कारण ही अश्वेत लोगों को मतदान के अधिकार से वंचित रखा गया।
- सख्ती के साथ पृथक्करण/वियोजन: रंगभेद प्रणाली अश्वेतों लोगो के लिये विशेष रूप से दमनकारी थी। उन्हें श्वेत लोगों के क्षेत्रों में रहने की मनाही थी। केवल परमिट होने पर ही ये लोग उन क्षत्रों में काम कर सकते थे। सभी श्वेत और अश्वेत लोगों के लिये ट्रेन, बस, टैक्सी, होटल, अस्पताल, स्कूल और कॉलेज, पुस्तकालय, सिनेमा हॉल, थिएटर, समुद्र तट (Beaches), स्विमिंग पूल, सार्वजनिक शौचालय भी अलग-अलग थे। अश्वेत लोग उन चर्चों में प्रार्थना भी नहीं कर सकते थे जहाँ श्वेत लोग प्रार्थना किया करते थे।
- संघ बनाने और विरोध करने पर प्रतिबंध: अश्वेत लोग न तो अपने खिलाफ हुए भेदभावपूर्ण व्यवहार को रोकने के लिये संघ बना सकते थे और न ही इसका विरोध कर सकते थे। इस प्रकार की नीति ने रंगभेद के खिलाफ शांति से लड़ने की उनकी क्षमता को भी बाधित किया।
रंगभेद प्रणाली के संदर्भ में भारत द्वारा निभाई गई भूमिका:
पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद नेहरू द्वारा घोषणा की गई कि भारत की नीति पूरे एशिया, अफ्रीका एवं अन्य जगहों पर उपनिवेशवाद तथा एक राष्ट्र पर दूसरे राष्ट्र के वर्चस्व या शोषण का अंत है।
- गांधी का प्रभाव: अफ्रीकियों के प्रति सम्मान और सहानुभूति के बावजूद, गांधी की राजनीतिक गतिविधियाँ अनिवार्य रूप से भारतीय समुदाय तक सीमित थीं। फिर भी दक्षिण अफ्रीकी संघर्ष के दौरान उनके प्रभाव को अप्रत्यक्ष रूप से नेल्सन मंडेला जैसे महान नेताओं द्वारा मान्यता दी गई थी।
- भारतीय प्रवासियों की भूमिका: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रीय आंदोलनों के बीच संबंध और अधिक मज़बूत हुआ। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के प्रोत्साहन के साथ भारतीय प्रवासियों ने यह महसूस किया कि उनके हित अफ्रीकी बहुमत के साथ जुड़े हुए हैं, परिणामस्वरूप उन्होंने नस्लवादी उपायों के खिलाफ संयुक्त संघर्षों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
- देश में मज़बूत जनभावना के कारण ही भारत ने राष्ट्रीय सरकार की स्थापना से पहले दक्षिण अफ्रीका में हो रहे नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध वर्ष 1946 में संयुक्त राष्ट्र में शिकायत दर्ज की।
- प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में रंगभेद के खिलाफ भारत: भारत ने वर्ष 1962 के महासभा प्रस्ताव को सह-प्रायोजित करते हुए सभी राज्यों से दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ प्रतिबंध लगाने एवं विशेष समिति गठित करने का आग्रह किया। भारत ने समय-समय पर संयुक्त राष्ट्र की विशिष्ट एजेंसियों, गुट-निरपेक्ष देशों के आंदोलन, राष्ट्रमंडल के साथ-साथ कई अन्य संगठनों में और विभिन्न मंचों पर, रंगभेदी शासन के खिलाफ तथा रंगभेद मुक्ति संघर्ष के समर्थन हेतु आह्वान किया।
निष्कर्ष:
रंगभेद व्यवस्था ने उपनिवेशवाद और जातिवाद के चरम को दर्शाया। रंगभेद के खिलाफ लंबे संघर्ष के बाद वर्ष 1994 में, दक्षिण अफ्रीका ने आखिरकार स्वतंत्रता प्राप्त की और एक नए संविधान का निर्माण कर रंगभेद पर प्रतिबंध लगा दिया। इस नए निर्मित संविधान में सभी को समान अधिकार दिये गए।