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27 Nov 2020
सामान्य अध्ययन पेपर 4
सैद्धांतिक प्रश्न
देश में शासन और सामाजिक-आर्थिक विकास की एक कुशल प्रणाली के लिये ईमानदारी/ प्रोबिटी (Probity in governance) की आवश्यकता है। क्या आप इस कथन से सहमत है?
उत्तर
दृष्टिकोण:
- ‘ईमानदारी’ शब्द को परिभाषित कीजिये।
- शासन में ईमानदारी के महत्त्व को समझाइये।
- लोक सेवकों में ईमानदारी को बढ़ाने के तरीकों को बताते हुए उपर्युक्त निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
- ईमानदारी/प्रोबिटी का प्रयोग सार्वजनिक जीवन में नैतिकता के त्रुटिहीन मानकों के लिये किया जाता है। यह वित्तीय ईमानदारी या गैर-भ्रष्ट व्यवहार से परे है। ईमानदारी का अर्थ है कि लोक सेवक अपने कार्यालय का किसी भी प्रकार का अनुचित फायदा नहीं उठाएंगे।
- ईमानदारी में सत्यता और खुलेपन का गुण विद्यमान होता है। सार्वजनिक कार्यालय के धारकों का कर्तव्य है कि वे अपने सार्वजनिक कर्तव्यों से संबंधित किसी भी प्रकार के निजी हित की घोषणा करें और सार्वजनिक हित की रक्षा हेतु ऐसे किसी भी संघर्ष को हल करने के लिये कदम उठाएंँ।
प्रारूप:
शासन में ईमानदारी निम्नलिखित उद्देश्यों को पूरा करती है:
- नैतिक मूल्यों को बढ़ावा: यह इस बात को सुनिश्चित करता है कि कार्य निष्पादन, सत्यनिष्ठा और देशभक्ति जैसे पारंपरिक नागरिक सेवा मूल्यों के बजाय ईमानदारी नागरिक और अधिकारियों के लिये नैतिकाता और सत्यनिष्ठा जैसे मूल्यों को आत्मसात करने हेतु महत्त्वपूर्ण है जिसमें मानवाधिकारों का सम्मान, सार्वजनिक नैतिकता तथा कमज़ोर वर्ग के कल्याण उनके प्रति करुणा और समर्पण की भावना निहित होती है।
- सत्यनिष्ठा बनाने रखना: सरकारी प्रक्रियाओं में जनता का विश्वास और सार्वजनिक सेवाओं में सत्यनिष्ठा, शासन में जवाबदेही सुनिश्चित करने जैसे दो प्रक्रियाओं का अनुपालन सुनिश्चित करने और कदाचार, धोखाधड़ी तथा भ्रष्टाचार आदर्श बचाने में सहायक हैं।
- विश्वसनीयता पैदा करना: यह एक लोक सेवक के प्रति भरोसा होने और उसे करियर में सम्मान पाने में मदद करती है क्योंकि ईमानदार लोग वास्तव में दूसरों पर भरोसा करते हैं।
- भरोसे एवं विश्वास निर्माण के लिये एक ऐसे वातावरण की आवश्यकता होती है जहाँ ईमानदारी, पारदर्शिता, खुलापन, निर्भीकता, निष्पक्षता और न्याय की प्रधानता हो।
- नेतृत्व: यदि कोई नेता ईमानदार है और सौंपा गया कार्य करने के लिये प्रतिबद्ध है तो उसके द्वारा किये गए कार्यों का प्रभाव उसके उन अधीनस्थों पर भी पड़ेगे जो उसके नेतृत्व में कार्य करते हैं।
लोक सेवकों में ईमानदारी की भावना को कैसे विकसित किया जाए?
शासन में ईमानदारी का अभाव समाज के सबसे बड़े खतरों में से एक है। नैतिक प्रथाओं में ईमानदारी को सुनिश्चित करने तथा उसके पालन के लिये कुछ निश्चित कदम उठाए जा सकते हैं:
- सरकारी अधिकारियों द्वारा आचार संहिता का पालन तथा उल्लंघन की देखरेख के पर्यवेक्षण के लिये राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर समर्पित इकाई की स्थापना की जानी चाहिये।
- वेबसाइटों के माध्यम से सूचना को आम जनता के लिये सुलभ बनाया जाना चाहिये।
- सरकारी कर्मचारियों की संपत्ति और देनदारियों की अनिवार्य घोषणा, उचित ऑडिटिंग के साथ की जानी चाहिये।
- स्वतंत्र भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी की स्थापना की जानी चाहिये ।
- शासन में सुधार लाने के उद्देश्य से आम जनता के विचारों को शामिल करने के लिये नागरिक सलाहकार बोर्ड का गठन किया जाना चाहिये।
- सभी सरकारी कार्यक्रमों का अनिवार्य सामाजिक लेखा परीक्षण किया जाना चाहिये। उदाहरण के लिये मेघालय में सरकारी कार्यक्रमों के सोशल ऑडिट के लिये एक कानून पारित किया गया है।
- शासन में ईमानदारी सुनिश्चित करने के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है भ्रष्टाचार की अनुपस्थिति। अन्य आवश्यकताओं में प्रभावी कानून और नियम शामिल हैं जो सार्वजनिक जीवन के प्रत्येक पहलू को नियंत्रित करते हैं तथा महत्त्वपूर्ण कानूनों के प्रभावी और निष्पक्ष कार्यान्वयन को आगे बढ़ाते हैं।
- कानूनों और नीतियों के अलावा सरकार को सरकारी कर्मचारियों के व्यवहार में परिवर्तन लाने पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिये ताकि वे जनता की समस्या को आसानी से समझ सकें।
निष्कर्ष:
- एक कुशल और प्रभावी शासन प्रणाली में सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये शासन में ईमानदारी और दक्षता का होना आवश्यक है।
- इस प्रकार यह समय की तत्काल आवश्यकता है जिसे न केवल लोक सेवकों द्वारा बल्कि पूरे समाज द्वारा अपने दैनिक जीवन के मूल्यों में अपनाया जाना चाहिये।