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21 Dec 2020
सामान्य अध्ययन पेपर 4
सैद्धांतिक प्रश्न
प्रशासनिक नीतिशास्त्र क्या है? लोक प्रशासकों के लिये इसके महत्त्व को समझाएंँ। (150 शब्द)
उत्तर
दृष्टिकोण
- प्रशासनिक नैतिकता को परिभाषित करते हुए इसके आयामों पर चर्चा कीजिये।
- लोक प्रशासकों के लिये नैतिकता के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
परिचय
प्रशासनिक नैतिकता से तात्पर्य सही और गलत के सुव्यवस्थित मानकों से है, जो यह सुनिश्चित करती हैं कि लोक प्रशासकों को सार्वजनिक सेवा, सिद्धांतों, सद्गुणों और समाज को लाभ पहुँचाने के लिये क्या करना चाहिये।
प्रारूप
प्रशासनिक नैतिकता के चार आयामों में से एक आयाम लोक सेवा की प्रकृति तथा तीन आयाम नैतिकता के दार्शनिक दृष्टिकोण पर आधारित हैं:
- कर्त्तव्य: कुछ निश्चित भूमिकाओं में व्यक्तियों से किया गया अपेक्षित व्यवहार, जो उन भूमिकाओं या पेशे के दायित्व के निर्वहन हेतु ज़रूरी होता है।
- गुण: गुण जो एक अच्छे व्यक्ति को परिभाषित करते हैं जैसे- नैतिक उत्कृष्टता।
- सिद्धांत: सही या अनिवार्य कार्रवाई के प्रकार, आधारभूत सत्य है जो किसी व्यवहार का आधार निर्मित करते हैं।
- समाज को लाभ: कार्य को इस प्रकार से किया जाए जिससे समाज़ की अधिकाधिक जनसंख्या को सबसे अच्छा उत्पादन प्रदान किया जा सके।
लोक प्रशासकों के लिये नैतिकता का महत्त्व
- प्रशासन की गुणवत्ता के लिये नैतिक विचारों की मौलिक महत्ता है। नैतिक नियमों और संहिताओं के मूल में नैतिकता निहित होती है।
- नैतिक सिद्धांतों, प्रथाओं, झुकाव और व्यवहार के प्रमुख चिंतन के साथ ‘गुड गवर्नेंस’ सुनिश्चित करने हेतु प्रशासनिक नैतिकता महत्त्वपूर्ण है।
- ज्ञान/बुद्धिमत्ता का मर्म यह है कि लोक प्रशासक प्रशासनिक राज्य के "संरक्षक" होते हैं। अत: उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे लोगों के विश्वास का सम्मान करें तथा इस विश्वास का उल्लंघन न करें
- नोलन समिति के अनुसार, सार्वजनिक जीवन के सात प्रमुख सिद्धांत हैं जिनमें निस्वार्थता, ईमानदारी, निष्पक्षता, जवाबदेही, खुलापन, ईमानदारी एवं नेतृत्व शामिल हैं।
- नेतृत्व: सार्वजनिक कार्यालय के धारकों को नेतृत्व के उदाहरण के माध्यम से सार्वजनिक जीवन के सिद्धांतों को बढ़ावा एवं समर्थन देना चाहिये।
- उदाहरण के लिये, लाल बहादुर शास्त्री देश के गरीब लोगों हेतु अनाज बचाने के लिये हर सोमवार उपवास किया करते थे तथा उन्होंने राष्ट्र से भी इसका पालन करने का आह्वान किया। इस प्रकार उन्होंने नेताओं के समक्ष नेतृत्व का एक सच्चा उदाहरण प्रस्तुत किया।
- निस्वार्थता: सार्वजनिक कार्यालय के धारकों को सार्वजनिक हित को पूर्ण करने के लिये कार्य करना चाहिये। उन्हें अपने या अपने परिवार या दोस्तों को वित्तीय या अन्य लाभ प्रदान करने हेतु कार्य नहीं करना चाहिये।
- उदाहरण के लिये मुंबई हमले के आतंकवादी कसाब और महाराष्ट्र पुलिस के तुकाराम ओम्बले के मध्य मुठभेड़ के दौरान इन्होने अपने जीवन को त्यागकर अनुकरणीय साहस और निस्वार्थता का परिचय दिया ताकि साथी सैनिकों को आतंकी हमले से सुरक्षित किया जा सके।
- गीता के एक श्लोक ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ में भी निस्वार्थता का सिद्धांत निहित है जिसका अर्थ है कि व्यक्ति को केवल अपने कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिये।
- जवाबदेही: सार्वजनिक कार्यालय के धारक अपने निर्णयों और कार्यों के लिये जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं और उन्हें अपने कार्यालय में जो भी जाँच उपयुक्त हो।.
- उदाहरण के लिये विक्रम साराभाई ने इसरो के पहले मिशन की विफलता के लिये मिशन प्रमुख (एपीजे अब्दुल कलाम) को ज़िम्मेदार नहीं माना बल्कि टीम की विफलता के लिये खुद को ज़िम्मेदार माना।
निष्कर्ष
इस प्रकार यह स्थापित किया जा सकता है कि सार्वजनिक जीवन के सिद्धांत लोकतंत्र के लिये महत्वपूर्ण हैं। इस प्रकार के सिद्धांतों से उत्पन्न सार्वजनिक व्यवहार के दिशानिर्देश सार्वजनिक अधिकारियों और आम जनता के मध्य विश्वास पैदा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं इसलिये कोई भी व्यक्ति जो लोगों की नियति का मार्गदर्शन करने का विशेषाधिकार रखता है उसे न केवल नैतिक होना चाहिये बल्कि सार्वजनिक जीवन के इन सिद्धांतों का अभ्यास भी करना चाहिये।