नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

Be Mains Ready

  • 03 Nov 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    यद्यपि असहयोग आंदोलन अपने तात्कालिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफल रहा , लेकिन इसने बाद के स्वतंत्रता आंदोलनों हेतु एक मज़बूत आधार तैयार किया। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    दृष्टिकोण:

    • असहयोग आंदोलन का वर्णन कीजिये।
    • संक्षेप में इसकी उपलब्धियों और विफलताओं पर चर्चा कीजिये।
    • असहयोग आंदोलन का बाद के स्वतंत्रता आंदोलनों पर पड़ने वाले प्रभाव के संदर्भ में निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के नागपुर अधिवेशन में असहयोग कार्यक्रम का समर्थन किया गया।
    • इस अधिवेशन में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव किया गया जिसमें कॉन्ग्रेस द्वारा संवैधानिक साधनों के माध्यम से अपने लक्ष्य के रूप में स्वशासन प्राप्त करने की मांग की गई।
    • नागपुर अधिवेशन में कॉन्ग्रेस द्वारा शांतिपूर्ण और वैध तरीकों से स्वराज प्राप्ति का निर्णय लिया गया, इस प्रकार यह अधिवेशन एक अतिरिक्त संवैधानिक जन संघर्ष के लिये प्रतिबद्ध था।
    • गांधीजी द्वारा घोषणा की गई कि यदि असहयोग कार्यक्रम को पूरी तरह से लागू किया गया, तो स्वराज को एक वर्ष के भीतर प्राप्त किया जा सकता है।

    संरचना:

    उपलब्धियाँ

    • गांधीजी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन एक जन आंदोलन के रूप में उभरकर सामने आया, 1857 के महा विद्रोह से पहले और विद्रोह के बाद में कभी देखा या महसूस नहीं किया गया था।
    • असहयोग आंदोलन के साथ, राष्ट्रवादी भावनाएँ देश के कोने-कोने तक पहुँची तथा जिसने जनसंख्या के प्रत्येक तबके जैसे- कारीगर, किसान, छात्र, शहरी गरीब, महिलाएँ, व्यापारी वर्ग इत्यादि का राजनीतिकरण किया।
    • पुरुषों और महिलाओं के राजनीतिकरण ने राष्ट्रीय आंदोलन को एक क्रांतिकारी चरित्र प्रदान किया।
    • ब्रिटिश शासन को अजेय बनाने वाले मिथक को एक बड़े संघर्ष के माध्यम से सत्याग्रह द्वारा चुनौती दी गई।
    • असहयोग आंदोलन के दौरान स्वदेशी उत्पादों की बिक्री को प्रोत्साहन मिला जिससे भारतीय उत्पादकों को मदद मिली और ब्रिटेन के आर्थिक और वाणिज्यिक हितों को भारी नुकसान पहुँचा।

    विफलताएँ

    • शुरुआत में आंदोलन का नेतृत्व मध्यम वर्ग द्वारा किया गया, लेकिन बाद में कार्यक्रम के प्रति गांधीजी की स्थिलता के कारण इसकी गति धीमी हो गई।
    • कलकत्ता, बॉम्बे और मद्रास जैसे स्थान जो कुलीन राजनीतिज्ञों के प्रमुख केंद्र थे, वहाँ गांधीजी के आह्वान के प्रति बहुत सीमित प्रतिक्रिया देखने को मिली।
    • सरकारी सेवा से त्यागपत्र, उपाधियों के त्याग आदि की प्रतिक्रिया को गंभीरता से नहीं लिया गया।
    • बड़े व्यवसायों का एक वर्ग आंदोलन के प्रति सशंकित रहा जिन्हें कारखानों में श्रमिक अशांति का डर बना रहा।
    • लोगों द्वारा अहिंसा के सिद्धांत का पूरी तरह से पालन नहीं किया गया। फरवरी 1922 में चौरी-चौरा में हुई हिंसक घटना ने आंदोलन की भावना को समाप्त कर दिया। इस घटना के कारण गांधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेते हुए कहाँ कि जनता ने अभी तक अहिंसा का अभ्यास करना नहीं सीखा है।

    निष्कर्ष:

    • भले ही असहयोग आंदोलन अपने घोषित उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं रहा फिर भी महात्मा गांधीजी की रणनीतिक और नेतृत्वकारी भूमिका ने भारत के स्वतंत्रता संघर्ष को नया आयाम दिया।
    • आंदोलन का सबसे बड़ा लाभ यह रहा कि इसने आम जनता में एक नया विश्वास जाग्रत किया तथा उन्हें अपने राजनीतिक लक्ष्य के प्रति निडर रहना सिखाया एवं स्वराज्य को उनका एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य बनाया।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow