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  • 12 Jun 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियमों को अधिसूचित किये हुए एक वर्ष से अधिक समय हो गया है और इस बात के साक्ष्य कम ही हैं कि इनका क्रियान्वयन किया जा रहा है। भारत की ई-अपशिष्ट समस्या के कारणों और उन कारकों का परीक्षण कीजिये जिनके चलते ये नियम अप्रभावी रहे हैं।

    उत्तर

    प्रश्न हल करने का दृष्टिकोण

    • ई-अपशिष्ट क्या है, इसका वर्णन कीजिये तथा भारत में ई-अपशिष्ट के प्रबंधन से संबंधित नियमों का उल्लेख कीजिये।
    • ई-अपशिष्ट के उत्पादन के कारणों का उल्लेख कीजिये।
    • नियमों और उनके कार्यान्वयन में खामियों को सूचीबद्ध कीजिये।
    • देश में बढ़ते ई-अपशिष्ट के प्रबंधन के लिये उठाए जा सकने वाले कदमों के बारे में सुझाव दीजिये।

    प्रमुख बिंदु

    • पारा, सीसा और ब्रोमिनेटेड फ्लेम रिटार्डेंट्स (जिसे बासेल कन्वेंशन के अनुसार खतरनाक अपशिष्ट माना जाता है) जैसे विषाक्त पदार्थों की उपस्थिति के कारण ई-अपशिष्ट को खतरनाक अपशिष्ट के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर, 2017 के अनुमानों के अनुसार भारत प्रतिवर्ष लगभग 2 मिलियन मीट्रिक टन ई-अपशिष्ट (वर्ष 2016 के आँकड़ों के अनुसार) उत्पन्न करता है।
    • वर्ष 2016 में उत्पादित कुल ई-अपशिष्ट में से केवल 20% (8.9 मीट्रिक टन) के संग्रहीत और पुनर्चक्रण किये जाने का रिकॉर्ड उपलब्ध है, जबकि शेष ई-अपशिष्ट के संबंध में कोई भी रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।
    • भारत में ई-अपशिष्ट का विनियमन ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम 2016 के तहत किया जाता है जिसने ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2011 को प्रतिस्थापित किया है।
    • उपभोक्तावादी संस्कृति: शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के परिणामस्वरूप प्रयोज्य आय के उच्च स्तर के साथ ही बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की खपत में और अधिक वृद्धि हुई है।
    • ई-अपशिष्ट का अवैध आयात: अमेरिका द्वारा एकत्र किये गए ई-अपशिष्ट का 50% से 80% भाग पुनर्चक्रण के लिये (सस्ते श्रम की उपलब्धता के कारण) भारत, चीन, पाकिस्तान, ताइवान और कई अफ्रीकी देशों को निर्यात किया जाता है।
    • भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology-IT) क्षेत्र वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रमुख योगदानकर्त्ताओं में से एक है। इसी समय यह भारत में ई-अपशिष्ट या विद्युत अपशिष्ट और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (WEEE) के थोक उत्पादन के लिये भी ज़िम्मेदार है।
    • ई-अपशिष्ट के पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग के लिये अवसंरचना और प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी का अभाव।
    • पर्यावरण और स्वास्थ्य पर ई-अपशिष्ट के खतरों के बारे में जागरूकता का अभाव।
    • ई-अपशिष्ट के पुनर्चक्रण में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर अधिक ध्यान केंद्रित नहीं किया जाता है। इसके अलावा ई-अपशिष्ट की एक अद्यतन सूची की कमी से ई-अपशिष्ट का पुनर्नवीनीकरण और निपटारा मुश्किल हो जाता है। इसमें मौजूदा नियमों पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
    • बुनियादी ढाँचे के अभाव के चलते ई-अपशिष्ट का प्रबंधन नियमों के अनुसार नहीं किया जाता है।
    • असंगठित क्षेत्र:
      ई-अपशिष्ट के पुनर्चक्रण के प्रबंधन हेतु नियमों में गैर-कुशल श्रमिकों की समस्या पर ध्यान नहीं दिया जाता है। अधिकांश भारतीय अपने ई-अपशिष्ट को अनौपचारिक क्षेत्र को बेच देते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न करता है।
    • उपभोक्ताओं की जवाबदेही: बेचे गए उत्पाद के ई-संग्रह केंद्र के बारे में उत्पाद पैकिंग के साथ कोई जानकारी नहीं दी जाती है।
    • डिपॉजिट रिफंड स्कीम (DRS) जो भारत में उत्पाद के पुनर्चक्रण में सहायक नहीं है।
    • अनौपचारिक क्षेत्र और प्रोत्साहन की कमी: यह ई-अपशिष्ट के निपटान में एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
    • प्रोत्साहन:
      जापान और ताइवान के समान एक प्रभावी टेक-बैक प्रोग्राम, जो उत्पादकों को ऐसे उत्पाद डिज़ाइन करने के लिये प्रोत्साहन प्रदान करता है, जो कम हानिकारक हो, जिनमें कम विषैले घटक निहित हो और अपशिष्ट को कम करने, पुन: उपयोग करने तथा उसका पुनर्चक्रण करने में सहायक हो।
    • नए इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के डिज़ाइन में एंड-ऑफ-लाइफ (End-of-life) प्रबंधन को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
    • प्रशिक्षण:
      पुनर्चक्रण उद्योग में लगे श्रमिकों के काम की गुणवत्ता और संतुष्टि स्तर में सुधार के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम और प्रभावी तरीके निर्धारित किये जाने चाहिये।
    • अवसंरचना:
      संस्थागत अवसंरचना, जिसमें ई-अपशिष्ट संग्रह, परिवहन, उपचार, भंडारण और निपटान आदि शामिल हैं, को ई-अपशिष्ट के पर्यावरणीय प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय और/या क्षेत्रीय स्तर पर स्थापित किये जाने की आवश्यकता है।
    • संग्रह केंद्र:
      निजी उद्यमियों और निर्माताओं के साथ साझेदारी में ई-अपशिष्ट के संग्रह, विनिमय एवं पुनर्चक्रण केंद्रों की स्थापना को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • ई-अपशिष्ट का प्रबंधन पर्यावरण संरक्षण (लक्ष्य 6, 11, 12, और 14) और स्वास्थ्य (लक्ष्य 3) से संबंधित SDGs को संबोधित करने में सहायक साबित होगा। यह लक्ष्य 8 को भी संबोधित करेगा जो कि रोज़गार और आर्थिक विकास पर केंद्रित है क्योंकि ई-अपशिष्ट के प्रभावी प्रबंधन से रोज़गार के नए अवसरों का सृजन होने की संभावना हैं। स्पष्ट रूप से इससे उद्यमशीलता को भी बढ़ावा मिलेगा।
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