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कुषाण वंश के पतन तथा गुप्त वंश के उदय के मध्य की अवधि को अंधकारपूर्ण युग की संज्ञा दी जाती है। क्या आप इस वर्गीकरण से सहमत हैं?

20 Aug 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

प्रश्न विच्छेद

• कथन कुषाण वंश के पतन तथा गुप्त वंश के उदय के मध्य की अवधि को अंधकारपूर्ण युग मानने के संदर्भ में आपकी सहमति एवं असहमति से संबंधित है।

हल करने का दृष्टिकोण

• कुषाण वंश के पतन तथा गुप्त वंश के उदय के मध्य की अवधि के बारे में संक्षिप्त उल्लेख के साथ परिचय लिखिये।

• कुषाण वंश के पतन तथा गुप्त वंश के उदय के मध्य की अवधि को अंधकारपूर्ण युग मानने के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क प्रस्तुत करते हुए उत्तर लिखिये।

• वर्गीकरण के संदर्भ में अपनी राय के साथ उचित निष्कर्ष लिखिये।

कुषाण साम्राज्य के विघटन के बाद गुप्त साम्राज्य का आविर्भाव हुआ। इनके मध्य का काल राजनैतिक दृष्टिकोण से विकेंद्रीकरण एवं विभाजन का काल माना जाता है जिसमें एक ऐसे साम्राज्य का अभाव था जो एकता के सूत्र में बांधकर प्रगति के पथ को मज़बूत बना सके। इन्हीं वजहों से कई विद्वानों द्वारा इस युग को अंधकारपूर्ण युग की संज्ञा दी जाती है।

कुषाण वंश के पतन तथा गुप्त वंश के उदय के मध्य की अवधि को अंधकारपूर्ण युग मानने के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क निम्नलिखित हैं-

पक्ष में तर्क:

  • देश में किसी शक्तिशाली महत्त्वपूर्ण शक्ति के न होने से सामान्यत: यह काल अराजकता एवं अव्यवस्था से परिपूर्ण था।
  • एक शासन सूत्र के अभाव के कारण ये राज्य परस्पर संघर्ष में लीन थे जिससे कृषि, शिल्प, व्यापार-वाणिज्य, कला एवं साहित्य को बेहतर माहौल उपलब्ध कराने में असफल रहे।
  • समतट, डवाक, कामरूप, नेपाल एवं कर्तपुर राज्यों के शासकों के विषय में कोई जानकारी नहीं मिलती है।

विपक्ष में तर्क:

  • कुषाणों के पतन के बाद नागवंश, मौखरि वंश एवं मघराज वंश जैसे प्रमुख राजतंत्रों का अस्तित्व रहा है। कुषाण सत्ता के विनाश का श्रेय नागवंश को दिया जाना इसके शक्तिशाली होने का परिचायक है। वाकाटक एवं पल्लव राजवंश जैसे राजतंत्रों का भी अस्तित्व रहा है।
  • इस दौरान राजतंत्रों के साथ-साथ मालव, अर्जुनायन, यौधेय, लिच्छवि जैसे गणतंत्रों का भी अस्तित्व था। इन गणतंत्रों में से कुछ के प्राप्त सिक्के एवं लेख इनके राजनीतिक जीवन, व्यापार-वाणिज्य एवं लेखन कला जैसे पक्षों पर भी महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं।
  • इस दौरान इन राजतंत्रों द्वारा धर्म एवं वास्तुकला के क्षेत्र में भी योगदान दिया गया जिसकी पुष्टि मौखरि वंश के शासकों द्वारा वैदिक धर्म का पोषण एवं त्रिरात्र यज्ञों की स्मृति में पाषाण यूपों के निर्माण से होती है।
  • नागवंश के भद्रमघ एवं अहिछत्र तथा अयोध्या के शक्तिशाली राजतंत्रों द्वारा चलाए गए सिक्के संबंधित राजतंत्रों के व्यापार एवं वाणिज्य की एक सीमा तक बेहतर स्थिति को वर्णित करते हैं।

हालाँकि, केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से ही देखा जाए तो इस दौर में भी कई शक्तिशाली राजवंशों का अस्तित्व रहा है। यह सत्य है कि ऐसे राजतंत्र विभिन्न कारणों से प्रगति के लिये मौर्य साम्राज्य जैसा वातावरण निर्मित नहीं कर सकते थे लेकिन एक स्तर तक विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति को देखते हुए इस युग के अंधकारपूर्ण युग होने की पुष्टि करना उचित वर्गीकरण प्रतीत नहीं होता है।