प्राचीन भारत में श्रेणी नगरीय जीवन में एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण संस्था थी जिसने पेशेवरों एवं स्वजनों दोनों के मध्य एकजुटता बनाए रखने का कार्य किया। चर्चा कीजिये।
28 Aug 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | इतिहास
प्रश्न विच्छेद • कथन प्राचीन भारत में श्रेणियों का पेशेवरों एवं स्वजनों के मध्य एकजुटता बनाए रखने में योगदान से संबंधित है। हल करने का दृष्टिकोण • प्राचीन भारत में श्रेणी के विषय में संक्षिप्त उल्लेख के साथ परिचय लिखिये। • श्रेणियों के महत्त्वपूर्ण नगरीय संस्था के रूप में दोनों के मध्य एकजुटता बनाए रखने में इनके योगदान की चर्चा कीजिये। • उचित निष्कर्ष लिखिये। |
श्रेणियाँ अधिकांशतया एक ही व्यवसाय करने वाले लोगों के संगठन होते थे। ये नगरीय संरचना का प्रशासन, शिल्प, उद्योग, व्यापार एवं वाणिज्य में अहम भूमिका अदा करते थे। शिल्प एवं उद्योग अनेक श्रेणियों में संगठित होते थे। शिल्पियों एवं बैंकरों के अपने अलग-अलग संगठन थे। भूमि के अनुदान या खरीद-बिक्री में इनकी सहमति आवश्यक समझी जाती थी।
श्रेणियों का महत्त्वपूर्ण नगरीय संस्था के रूप में पेशेवरों एवं स्वजनों दोनों के मध्य एकजुटता बनाए रखने में योगदान की चर्चा निम्नलिखित है-
शिल्पी, वणिक एवं लिपिक एक ही संस्था में कार्य करते थे और वे इस हैसियत से नगर के कार्यों का संचालन करते थे। कोटिवर्ष ज़िले की प्रशासनिक परिषद में मुख्य वणिक, मुख्य व्यापारी एवं मुख्य शिल्पी सम्मलित थे।
श्रेणियाँ हर हालत में अपने सदस्यों के मामले देखती थीं और श्रेणी के नियम, कानून एवं परंपरा का उल्लंघन करने वालों को सज़ा दे सकती थीं।
स्मृतियों के अनुसार, श्रेणियों में एक ही व्यवसाय करने वाले अनेक स्थानों के लोग भी हो सकते थे लेकिन इसमें अधिकांशतया एक स्थान पर रहने वाले एवं एक ही व्यवसाय करने वाले लोग होते थे।
इन श्रेणियों की एक कार्यसमिति भी होती थी जिसे स्मृतियों में कार्यचिन्तक कहा गया है जो अपनी श्रेणी के सदस्यों का समय-समय पर मार्ग-निर्देशन करते थे।
श्रेणियों के दानियों ने निश्चित धनराशि अक्षयनीवी (स्थायी पूंजी) के रूप में जमा की जिसका प्रयोग विभिन्न कार्यों में किया जाता था। ये श्रेणियाँ बैंक का भी कार्य करती थीं।
उपर्युक्त विवरणों के अनुसार श्रेणियाँ पेशेवरों एवं स्वजनों के बीच परस्पर मामलों को सुलझाने और उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये महत्त्वपूर्ण नगरीय संस्था के रूप में कार्य करती थीं। संभव है कि सामंती पद्धति की वृद्धि के कारण आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था का इन पर विपरीत असर पड़ा हो।