‘श्रद्धा-भक्ति’ निबंध के आधार पर आचार्य रामचंद्र शुक्ल की निबंध-शैली की विशिष्टताओं का उद्घाटन कीजिये।
30 Aug 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | हिंदी साहित्यआचार्य रामचंद्र शुक्ल हिन्दी निबंध परम्मरा के केन्द्रीय रचनाकार है। उन्होंने हिन्दी निबंध को परिपक्वता के स्तर तक पहुँचाया हैं ‘श्रद्धा-भक्ति’ में उनके परिपक्व निंबंध शैली का दर्शन होता है।
आचार्य शुक्ल की निबंध शैली निगमनात्मक है। वे पहले चिंतन करते हैं तथा अनेक उदाहरणों से पुष्ट करते हुए
अपने चिंतन का विस्तार करते हैं। श्रद्धा भक्ति में उनकी यह शैली देखी जा सकती है। वे आरंभ में ही श्रद्धा की परिभाषा देते हैं-
‘‘किसी मनुष्य में जनसाधारण से विशेष गुण तथा शक्ति का विकास देखकर, उसके प्रति हृदय में जो स्थायी आनंद का भाव आता है उसे श्रद्धा कहते हैं।’’ इस परिभाषा में शुक्ल जी की वह शैली भी दिखती है जिसमें वह किसी मनोभाव की सूक्ष्म व वैज्ञानिक परिभाषा देते हैं।
उनके निबंध यद्यपि बृद्धिप्रधान हैं किंतु बीच-बीच में हृदय की भी भूमिका है जिससे निबंधों में सरसता आती है। जब वे निजी जीवन का उदाहरण देते हैं, या हास्य-व्यंग्य करते हैं तो हृदय की भूमिका नज़र आती है।
शुक्ल जी की निबंध शैली की एक विशेषता यह भी है कि वे मुख्य विषय के साथ आने वाले अन्य विषयों का भी सूक्ष्म वैज्ञानिक विवेचन करते हैं। श्रद्धा, प्रेम, भक्ति का विवेचन तथा उनके अन्तर्संबंधों की व्याख्या में यह विशेषता मिली जाती है।
भाषा के स्तर पर शब्दों का मितव्ययी प्रयोग, सटीक शब्दावली, नए शब्दों का निर्माण उनकी अद्वितीय विशेषता है। विचारों की ‘गूढ़-गुंफित परंपरा’ में वाक्यों की प्रवाहमयी संरचना शुक्ल जी के निबंध शैली की अन्यतम विशेषता है। येह सारी विशेषताएँ श्रद्धा-भक्ति में विद्यमान हैं, जैसे-
‘‘प्रेम स्वॅन है तो श्रद्धा जागरण।’’
निष्कर्षत: श्रद्धा-भक्ति शुक्ल जी के निबंधों का प्रतिनिधि निबंध है। दूसरे शब्दों में ‘श्रद्धा भक्ति’ में शुक्ल जी के निबंध शैली की सारी विशेषताएँ मौजूद हैं।