हड़प्पा सभ्यता के भौतिक जीवन का वर्णन करें तथा विदेशों के साथ इसके संपर्क की चर्चा कीजिये।
30 Aug 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | इतिहास
प्रश्न विच्छेद • पहला भाग हड़प्पा सभ्यता के भौतिक जीवन के वर्णन से संबंधित है। • दूसरा भाग विदेशों के साथ इसके संपर्क की चर्चा से संबंधित है। हल करने का दृष्टिकोण • हड़प्पा सभ्यता के बारे में संक्षिप्त उल्लेख के साथ परिचय लिखिये। • हड़प्पा सभ्यता के भौतिक जीवन का वर्णन कीजिये। • विदेशों के साथ इसके संपर्क की चर्चा कीजिये। • उचित निष्कर्ष लिखिये। |
हड़प्पा नामक स्थान पर पहली बार यह संस्कृति खोजी गई थी इसलिये इसका नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया है। सिधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है। हड़प्पा सभ्यता की भौतिक जीवन से जुड़ी नगर-नियोजन प्रणाली जैसी विशेषताएँ अद्भुत हैं। इस सभ्यता ने परस्पर आवश्यकताओं के अनुरूप पश्चिम एशिया के साथ अपने वैदेशिक संबंधों को कायम किया जो पश्चिम एशिया की सभ्यताओं में प्राप्त अभिलेखीय साक्ष्यों से भी स्पष्ट होता है। संस्कृति’ शब्द का प्रयोग पुरावस्तुओं के ऐसे समूह के लिये किया जाता है जो एक विशिष्ट शैली के होते हैं।
हड़प्पा सभ्यता के भौतिक जीवन का वर्णन निम्नलिखित रूपों में है-
कृषि पर निर्भर होते हुए भी इस संस्कृति के लोग बैल-गाय, भैंस, बकरी, भेड़ और सुअर आदि जैसे बहुत सारे पशु पालते थे। ये लोग गेहूँ, जौ, राई, मटर आदि अनाज उपजाते थे।
इस संस्कृति के लोगों का आंतरिक एवं बाह्य व्यापार परस्पर नेटवर्किंग क्रियाओं पर आधारित था। वस्तुएँ बनाने के लिये जिस कच्चे माल की उपलब्धता नहीं होती थी उसे अन्य केन्द्रों से मंगा लिया जाता था।
इस संस्कृति की नगर-योजना प्रणाली के अंतर्गत पकी ईंटों का प्रयोग, उत्तम जल-निकास प्रणाली, समकोण पर काटती सड़कें, ईंटों की बड़ी-बड़ी इमारतें, नरमोखे, प्रांगण एवं स्नानागार जैसी विशेषताएँ प्रमुख हैं।
इस संस्कृति के लोग पत्थर के बहुत सारे औज़ारों के साथ-साथ कांसे के निर्माण और प्रयोग से भी भली-भाँति परिचित थे।
हड़प्पाई लोग कुम्हार के चाक का उपयोग करने में बड़े कुशल थे, इनके बर्तनों पर अनेक रंगों की चित्रकारी देखने को मिलती है।
हड़प्पाई लोगों ने भी प्राचीन मेसोपोटामिया की तरह लेखन-कला का आविष्कार किया, हालाँकि लिपि अभी तक अपठित है।
हड़प्पाई लोगों ने व्यापार-वाणिज्य की सहूलियत के लिये माप-तौल का भी प्रयोग किया। ऐसा तौल के लिये 16 के आवर्तकों के प्रयोग एवं माप के निशान वाले पाए गए डंडे जैसे साक्ष्यों के आधार पर प्रतीत होता है।
हड़प्पा संस्कृति की सर्वोत्तम कलाकृतियाँ उसकी मुहरें हैं जिनमें से अधिकांश पर एक सींग वाले जानवर, भैंस, बाघ, बकरी, और हाथी की आकृतियाँ उकेरी गई हैं।
हड़प्पाई शिल्पी धातु की खूबसूरत मूर्तियाँ बनाते थे। कांसे की नर्तकी उनकी मूर्तिकला का सर्वश्रेष्ठ नमूना है।
सिन्धु प्रदेश में भारी संख्या में आग में पकी मिट्टी की बनी मूर्तियाँ (टेराकोटा) मिली हैं जिनका प्रयोग या तो खिलौने के रूप में या पूज्य प्रतिमाओं के रूप में होता था।
पुरुष देवता की प्राप्त मूर्ति, पकी मिट्टी की स्त्री मूर्तियाँ एवं मुहरों पर पीपल की डालों के बीच विराजमान चित्रित देवता इस संस्कृति के धार्मिक स्वरूप पर प्रकाश डालते हैं।
इस संस्कृति के राजनीतिक संगठन का कोई स्पष्ट आभास नहीं होता है लेकिन प्रतीत होता है कि इतनी विकसित सभ्यता का संचालन बगैर किसी सत्ता के संभव नहीं हुआ होगा।
विदेशों के साथ हड़प्पा सभ्यता के संपर्क निम्नलिखित रूपों में वर्णित हैं-
इनका संपर्क अफगानिस्तान एवं ईरान से भी था। उत्तरी अफगानिस्तान में इन्होंने वाणिज्य-बस्ती स्थापित कर रखी थी जिसके चलते इनका व्यापार मध्य एशिया के साथ संचालित होता था।
इन नगरों का व्यापार दजला-फरात प्रदेश के नगरों के साथ भी चलता था। बहुत सी हड़प्पाई मुहरें मेसोपोटामिया की खुदाई में प्राप्त हुई हैं जिनसे प्रतीत होता है कि हड़प्पाई लोगों द्वारा मेसोपोटामियाई नागरिकों के कई प्रसाधनों का अनुकरण किया गया।
2350 ई.पू. के आसपास एवं उसके आगे के मेसोपोटामियाई अभिलेखों में मेलुहा के साथ व्यापारिक संबंध की चर्चा है जो सिन्धु क्षेत्र का प्राचीन नाम था। मेसोपोटामियाई पुरालेखों में दो मध्यवर्ती व्यापारिक केंद्रों दिलमन (बहरैन) एवं मकन की चर्चा है जो मेसोपोटामिया और मेलुहा के बीच में पड़ते थे।
हड़प्पा सभ्यता अपने दौर की एक महत्त्वपूर्ण सभ्यता थी। इस सभ्यता के विषय में लिपि के अपठित होने के कारण अभी बहुत से पहलू अनछुए हैं। उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले समय में इस सभ्यता के भौतिक जीवन एवं वैदेशिक संबंधों के साथ-साथ अन्य पक्षों पर उचित प्रकाश पड़ेगा।