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ऊपरी पुरापाषाण युग की समाप्ति एवं मध्यपाषाण युग की शुरुआत की अवस्था को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण चरण क्यों माना जाता है? वर्णन कीजिये।

14 Aug 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

प्रश्न विच्छेद

• कथन ऊपरी पुरापाषाण युग के अंत एवं मध्यपाषाण युग की शुरुआत की अवस्था को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण चरण मानने से संबंधित है।

हल करने का दृष्टिकोण

• ऊपरी पुरापाषाण एवं मध्यपाषाण युग को स्पष्ट करते हुए परिचय लिखिये।

• ऊपरी पुरापाषाण युग का अंत एवं मध्यपाषाण युग की शुरुआत की अवस्था के महत्त्व के विषय में लिखिये।

• उचित निष्कर्ष लिखिये।

ऊपरी पुरापाषाण का अंत 10000 ई.पू. के आस-पास हिमयुग के अंत के साथ हुआ। प्रस्तरयुगीन संस्कृति में 9000 ई.पू. में मध्यवर्ती अवस्था की शुरुआत हुई जो मध्यपाषाण युग कहलाता है। इसके अंत एवं शुरुआत की अवस्था विभिन्न स्तरों पर महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों का कारक सिद्ध हुई। इसने पेड़-पौधों एवं जीव-जन्तुओं को दीर्घकालिक रूप से प्रभावित किया।

ऊपरी पुरापाषाण एवं मध्यपाषाण युग की संक्रमणकालीन अवस्था का महत्त्व निम्नलिखित रूपों में वर्णित है-

  • हिमयुग के अंत के साथ ही जलवायु गर्म एवं शुष्क हो गई जिससे मानव के लिये नवीन अनुकूलन आवश्यक हो गया।
  • इस परिवर्तन से पेड़-पौधों में परिवर्तन हुआ और साथ ही मानव के लिये नए क्षेत्रों की तरफ अग्रसर होना भी संभव हुआ।
  • परिणामस्वरुप मौसमी जल स्रोतों के सूखने से जीव-जंतु दक्षिण या पूर्व की तरफ प्रवास कर गए जहाँ वर्षा के कारण घनी वनस्पति बनी रहती थीं।
  • मनुष्य की बढ़ी हुई जनसंख्या और जलवायु परिवर्तनों के प्राकृतिक दबाव के कारण मनुष्य की छोटी-छोटी टोलियों को काफी गतिशील रहना पड़ता था।
  • इन परिवर्तनों की शृंखला के साथ समायोजन की आवश्यकता के अंतर्गत सबसे मौलिक परिवर्तन प्रक्षेपास्त्र तकनीकी के विकास के प्रयास में आया, जो निश्चय ही एक महान तकनीकी क्रांति थी।
  • तकनीकी के विकास के प्रयास का उद्देश्य सुनम्यता को बढ़ाकर इसे सर्वोत्तम लाभ के लिये उपयोग में लाकर कार्यकुशलता के हित को सुनिश्चित करना था।
  • इन परिवर्तनों ने मध्यपाषाण युग के लोगों को आखेटक एवं पशुपालक के रूप में विकसित होने में महत्त्वपूर्ण सहायता की।

निष्कर्षत: इस अवस्था में होने वाले जलवायवीय परिवर्तनों ने वनस्पतियों के साथ-साथ जीव-जन्तुओं को भी गंभीरतापूर्वक प्रभावित किया। इस अवस्था के पश्चात् यानी कि 9000 ई.पू. से जलवायु में कोई बड़ा परिवर्तन घटित नहीं हुआ है।