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ज्वालामुखी उद्गार की प्रवृत्ति तथा विकसित आकृतियों के आधार पर ज्वालामुखियों का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिये।

14 Aug 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

प्रश्न विच्छेद

• उद्गार की प्रवृत्ति और विकसित आकृति के आधार पर ज्वालामुखी का वर्गीकरण करें।

हल करने का दृष्टिकोण

• संक्षिप्त भूमिका लिखें।

• उद्गार की प्रवृत्ति के आधार पर वर्गीकरण।

• विकसित आकृतियों के आधार पर वर्गीकरण।

ज्वालामुखी प्राय: एक छिद्र अथवा खुला भाग होता है, जिससे होकर पृथ्वी के अत्यंत तप्त भाग से गैस, तरल लावा, जल, चट्टानों के टुकड़ों आदि से युक्त गर्म पदार्थ पृथ्वी के धरातल पर प्रकट होता है। ज्वालामुखी उद्गार से निर्मित स्थलाकृतियाँ उद्गार की प्रवृत्ति तथा निस्सृत पदार्थों के प्रकार पर निर्भर करती हैं।

ज्वालामुखी उद्गार की प्रवृत्ति के आधार पर ज्वालामुखियों का वर्गीकरण:

(a) केंद्रीय उद्भेदन वाले ज्वालामुखी- इसके अंदर उद्गार एक संकरी नली या द्रोणी के सहारे एक छिद्र से होता है। इसके अंतर्गत गैस, लावा तथा विखंडित पदार्थ अधिक मात्रा में विस्फोटक उद्भेदन के साथ आकाश में काफी ऊँचाई तक प्रकट होते हैं। यह अत्यधिक विनाशकारी ज्वालामुखी है। इस प्रकार के ज्वालामुखी को निस्सृत पदार्थों की विभिन्नता और उद्गार की अवधि के आधार पर कई उपविभागों में विजाजित किया जाता है-

  • हवायन प्रकार के ज्वालामुखी
  • स्ट्राम्बोली प्रकार के ज्वालामुखी
  • वलकैनो तुल्य ज्वालामुखी
  • विसुवियस प्रकार के ज्वालामुखी
  • पीलियन प्रकार के ज्वालामुखी

(ये सभी विस्फोटकता के बढ़ते क्रम में हैं)

Jwalamukhi

(b) दरारी उद्भेदन वाले ज्वालामुखी- जब लावा के साथ गैस और जलवाष्प की मात्रा कम होती है तो धरातल पर दरार पड़ जाने के कारण लावा शांत रूप में प्रवाहित होकर धरातल के ऊपर जमा हो जाता है। इससे लावा पठारों का निर्माण होता है, जैसे- भारत के दक्कन का पठार।

आकृतियों के आधार पर ज्वालामुखी का वर्गीकरण:

शील्ड ज्वालामुखी: यह सभी ज्वालामुखियों में (बेसाल्ट प्रवाह को छोड़कर) सबसे विशाल है। हवाईद्वीप के ज्वालामुखी इसके उदाहरण हैं। ये ज्वालामुखी मुख्यत: बेसाल्ट से निर्मित होते हैं तथा यह कम विस्फोटक है। तरल लावा के उद्गार के कारण इनकी ढाल मंद होती है।

मिश्रित ज्वालामुखी: इसमें शील्ड ज्वालामुखी की अपेक्षा अधिक गाढ़ा और चिपचिपा लावा निकलता है तथा यह अधिक विस्फोटक होता है। इसका निर्माण विभिन्न प्रकार के ज्वालामुखी पदार्थों के क्रमिक रूप से एक के ऊपर एक जमा होने से होता है।

सिण्डर ज्वालामुखी: इनका निर्माण ज्वालामुखी धूल, राख एवं विखंडित पदार्थों से होता है तथा इसकी ढाल, मिश्रित ज्वालामुखी के ढाल के समान होती है। प्रारंभ में इसकी ऊँचाई कम होती है परंतु निस्सृत पदार्थों के क्रमिक रूप से जमाव से यह बढ़ता जाता है। इनके निर्माण में तरल पदार्थों का योगदान नहीं होता है।

निष्कर्षत: ज्वालामुखी एक महत्त्वपूर्ण क्रिया है, जो धरातल पर विभिन्न स्थलाकृतियों का निर्माण करता है। इसके द्वारा हमें पृथ्वी की आंतरिक संरचना के अध्ययन में सहायता मिलती है।