सौरमंडल की उत्पत्ति के संदर्भ में कांट और लाप्लास की संकल्पनाओं में कमियों के बावजूद वर्तमान समय में इसे मिल रही मान्यता के कारणों को स्पष्ट कीजिये।
11 Aug 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | भूगोल
प्रश्न विच्छेद • कांट और लाप्लास की संकल्पना और उनकी कमियों को बताना है। • वर्तमान में इन दोनों संकल्पनाओं को प्राप्त मान्यता का कारण स्पष्ट करें। हल करने का दृष्टिकोण • भूमिका लिखें। • कांट और लाप्लास की संकल्पनाएँ लिखें और उनकी कमियों को बताएँ। • वर्तमान में इनको मिल रही मान्यता के कारणों को बताएँ। |
सौरमंडल की उत्पत्ति के संदर्भ में विभिन्न आधारों पर अनेक संकल्पनाएँ प्रस्तुत की गई हैं परंतु कोई भी पूर्णत: संतोषजनक नहीं है। कांट और लाप्लास द्वारा प्रस्तुत संकल्पना में भी कमियाँ विद्यमान हैं परंतु इनकी संकल्पना के आधारों को अधिकांश भूगोलवेत्ताओं ने स्वीकार किया है।
कांट ने गुरुत्वाकर्षण नियम के आधार पर अपनी गैसीय संकल्पना प्रस्तुत की। उसने बताया कि आरंभिक ठोस कणों के आकर्षण शक्ति के कारण आपस में टकराव से ऊष्मा एवं घूर्णन का आविर्भाव हुआ। कालांतर में गतिहीन आकाशीय पदार्थ तप्त एवं गतिशील निहारिका में बदल गया। निहारिका के वेग में वृद्धि के साथ केन्द्रापसारी बल के कारण इसके मध्य भाग से एक छल्ला अलग होकर कालांतर में ठोस रूप में जमा होने से ग्रह का निर्माण हुआ। इसी प्रक्रिया की पुनरावृत्ति से नौ ग्रहों एवं उपग्रहों का निर्माण हुआ। परंतु कांट की यह संकल्पना कोणीय आवेग की स्थिरता के सिद्धांत के विपरीत है।
फ्रांसीसी विद्वान लाप्लास ने कांट के सिद्धांत को संशोधित कर ‘निहारिका परिकल्पना’ प्रस्तुत की। इसके अनुसार एक विशाल तप्त निहारिका से पहले एक छल्ला बाहर निकला, जो कई छल्लों में विभाजित हो गया तथा ये छल्ले अपने पितृ छल्ले के चारों ओर एक दिशा में घूमने लगे। बाद में इन्हीं के शीतलन से विभिन्न ग्रहों का निर्माण हुआ। इस सिद्धांत के अनुसार सभी उपग्रहों को अपने जनक-ग्रह की दिशा में ही घूमना चाहिये किंतु शनि और बृहस्पति के उपग्रह अपने पितृ ग्रह की विपरीत दिशा में भ्रमण करते हैं। इसके अलावा, इनकी आलोचना निम्नलिखित आधार पर की जाती है- लाप्लास ने यह नहीं बताया कि गैसीय छल्ले किस प्रकार गोलाकार ग्रहों में एकत्र हो गए।
कांट और लाप्लास की परिकल्पनाओं में कमियों के बावजूद मिल रही मान्यता का कारण उनके द्वारा ग्रहों के निर्माण में सौर निहारिका के सिकुड़न और घनीभवन पर ज़ोर देना था, जो अधिकांश परिकल्पनाओं में प्रयोग किया गया चाहे वह चैम्बरलिन व मोल्टन की ग्रहाणु परिकल्पना हो, जेम्स जीन्स और हेरॉल्ड जेफरीज की ज्वारीय परिकल्पना हो, आटो श्मिड की अंतर-तारक धूलि परिकल्पना हो या अभिनव बिग-बैंग की परिकल्पना हो।