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10 Aug 2019
रिवीज़न टेस्ट्स
इतिहास
प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में मुद्रा के महत्त्व की व्याख्या कीजिये।
प्रश्न विच्छेद
कथन प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में मुद्रा के महत्त्व से संबंधित है।
हल करने का दृष्टिकोण
• मुद्रा के बारे में संक्षिप्त उल्लेख के साथ परिचय लिखिये।
• प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में मुद्रा के महत्त्व का उल्लेख कीजिये।
• उचित निष्कर्ष लिखिये।
सिक्कों के अध्ययन को मुद्राशास्त्र (न्यूमिस्मेटिक्स) कहा जाता है। पुरातात्त्विक स्रोतों के अंतर्गत सिक्कों का स्थान बेशक महत्त्वपूर्ण है लेकिन प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में सभी सिक्कों की प्रासंगिकता एक जैसी नहीं है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि मुद्राप्रणाली का आगमन मानव की प्रगति का एक प्रमुख चरण है। अत: मुद्राशास्त्र का प्रयोग आर्थिक इतिहास के गठन की दृष्टि से काफी प्रासंगिक है।
प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में मुद्रा का महत्त्व निम्नलिखित रूपों में है-
- उत्तर-पश्चिमी भारत पर बैक्ट्रिया के हिन्द-यूनानी शासकों द्वारा अधिकार के पश्चात् इन शासकों के साथ-साथ भारतीय शासकों ने भी सिक्का-लेख वाले सिक्के चलाए जिन पर बहुधा सिक्के को चालू करने वाले शासक की आकृति भी होती थी। ये सिक्के प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं।
- सिक्कों के बड़ी संख्या में एक स्थान पर मिलने से यह अनुमान लगाया जाता है कि सिक्के प्राप्ति का स्थान संबंधित शासक के राज्य का भाग था। यदि सिक्कों पर कोई तिथि उत्कीर्ण है तो इससे शासक के राज्यकाल की जानकारी मिलती है।
- जब सिक्कों में सोने की अपेक्षा खोट की मात्रा अधिक होती है तो अनुमान लगाया जाता है कि तत्कालीन समय में राज्य की आर्थिक दशा बेहतर नहीं थी।
- सिक्कों के पृष्ठ भाग पर देवता की आकृति बनी हो तो इससे शासक के धार्मिक विचारों की जानकारी प्राप्त होती है। उदाहरण स्वरुप समुद्र गुप्त के कुछ सिक्कों पर यूप बना है और ‘अश्वमेध पराक्रम:’ शब्द खुदे हैं जिससे इस बात की पुष्टि होती है कि उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया था।
- सिक्कों का काम दान-दक्षिणा, खरीद-बिक्री और वेतन-मज़दूरी के भुगतान में पड़ता था इसलिये सिक्कों से आर्थिक इतिहास पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है। राजाओं से अनुमति लेकर व्यापारियों एवं स्वर्णकारों की श्रेणियों ने भी सिक्के जारी किये जिससे संबंधित समय की शिल्पकारी एवं व्यापार की उन्नतावस्था सूचित होती है।
- सबसे अधिक सिक्के मौर्योत्तर काल में मिले हैं जो विशेषत: सीसा, पोटिन, तांबा, कांसा, चांदी एवं सोने के हैं। गुप्त शासकों द्वारा सोने के सर्वाधिक सिक्के जारी किये गए। इससे पता चलता है कि व्यापार-वाणिज्य विशेषत: मौर्योत्तर काल एवं गुप्तकाल के अधिक भाग में खूब फला-फूला। वहीं, इसके विपरीत गुप्तोत्तर काल के बहुत कम सिक्के मिलने से उस काल में व्यापार- वाणिज्य की शिथिलता प्रकट होती है।
- हालाँकि, भारत के प्राचीनतम सिक्कों (आहत सिक्कों) पर अनेक प्रकार के चिह्न उत्कीर्ण हैं जिन पर किसी प्रकार के लेख नहीं हैं और इसी कारण इन चिह्नों का सही-सही अर्थ भी ज्ञात नहीं हो पाया है। इसलिये संभवत: इन सिक्कों के राजाओं के अतिरिक्त व्यापारियों, व्यापारिक निगमों एवं नगर निगमों द्वारा जारी करने के बारे में इतिहासकारों को विशेष सहायता नहीं मिल पाई है।
मुद्राओं से भौगोलिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक महत्त्व की अनेक सूचनाएँ प्राप्त होती हैं जिनसे संबंधित क्षेत्र के इतिहास के अध्ययन में महत्त्वपूर्ण सहयोग मिलता है। सिक्कों के महत्त्व का इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पांचाल के मित्र शासकों, मालव एवं यौधेय आदि गणराज्यों का पूरा इतिहास सिक्कों के आधार पर ही लिखा गया है। सिक्कों का भिन्न-भिन्न धातुओं का पाया जाना, धातुओं की मात्रा का निर्धारण, सिक्कों के भार मानक का निर्धारण, सिक्कों की प्रधानता एवं अनुपस्थिति ये सभी प्राचीन भारत के इतिहास के अध्ययन एवं लेखन को नई दिशा प्रदान कर सकते हैं।