‘दिव्या’ उपन्यास में इतिहास किस रूप में उपस्थित है? विवेचनात्मक उत्तर दीजिये।
29 Aug 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | हिंदी साहित्ययशपाल जानते थे कि ऐतिहासिक आधार होने के कारण दिव्या के संबंध में यह प्रश्न ज़रूर उठेगा कि इसमें इतिहास की प्रामाणिकता का कितना ध्यान रखा गया है? इसीलिए उन्होंने प्राक्कथन में स्पष्ट लिखा- ‘दिव्या इतिहास नहीं, ऐतिहासिक कल्पना मात्र है।’
प्राक्कथन में वर्णित इस कथन से स्पष्ट है कि दिव्या में कल्पना प्राथमिक है व इतिहास गौण। लेखक ने काल्पनिक चित्र में ऐतिहासिक वातावरण का रंग दिया है, न कि ऐतिहासिक चित्र में कल्पना का रंग।
उपन्यास में केवल तीन ऐतिहासिक चरित्र हैं और वे तीनों ही संकेत के रूप में आए हैं, न कि चरित्र बनकर। उनके नामों के उल्लेख से रचनाकार ने ऐतिहासिक वातावरण पैदा करने में सफलता प्राप्त की है। इसमें प्रमुख रूप से दो नगरों सागल व मथुरा का उल्लेख है। ये दोनों स्थल जिस प्रकार उपन्यास में आए हैं, वैसे ही ऐतिहासिक वर्णनों में उपलब्ध होते हैं।
रचना में ऐतिहासिक वातावरण बनाए रखने के लिए यशपाल ने एक और युक्ति का प्रयोग किया है जो प्राय: ऐतिहासिक कथानक लेकर चलने वाले सभी साहित्यकार करते हैं। यह है- ऐतिहासिक संदर्भ के अनुकूल भाषा का प्रयोग।
अत: हम देखते हैं कि दिव्या उपन्यास में इतिहास का प्रयोग तथ्यों के स्तर पर बहुत कम है। यहाँ इतिहास केवल वातावरण के स्तर पर है। इसके पीछे यशपाल का ऐतिहासिक दृष्टिकोण महत्त्वपूर्ण है। उनकी दृष्टि में इतिहास विश्लेषण की वस्तु है जिस पर यथार्थवादी ढंग से चिंतन होना चाहिए। प्राक्कथन में वे लिखते हैं- ‘इतिहास विश्वास की नहीं, विश्लेषण की वस्तु है। इतिहास मनुष्य का अपनी परंपरा में आत्मविश्लेषण है।’