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  • 14 Aug 2019 रिवीज़न टेस्ट्स भूगोल

    निम्नलिखित में से प्रत्येक का लगभग 150 शब्दों में उत्तर दीजिये:

    a. पृथ्वी पर वायुमण्डल के विकास की विभिन्न अवस्थाओं की चर्चा कीजिये।

    b. शैल चक्र (रॉक साईकल) की विवेचना कीजिये।

    (a)

    प्रश्न विच्छेद

    • पृथ्वी पर वायुमंडल का विकास।

    हल करने का दृष्टिकोण

    • एक संक्षिप्त भूमिका लिखें।

    • वायुमंडल के विकास की अवस्थाएँ एवं प्रक्रिया।


    पहली अवस्था (आदि वायुमंडलीय गैसों का ह्रास):
    आदि वायुमण्डल मुख्यत: हाइड्रोजन और हीलियम से निर्मित था। सौर पवनों के प्रभाव के कारण यह वायुमण्डल पृथ्वी से दूर चला गया अर्थात् समाप्त हो गया है। इसे वायुमण्डल के विकास की प्रथम अवस्था माना जाता है। ऐसा न केवल पृथ्वी पर हुआ बल्कि सभी पार्थिव ग्रहों पर हुआ।पृथ्वी पर वर्तमान में मौजूद वायुमंडल जिसमें नाइट्रोजन एवं ऑक्सीजन की अधिकता है, ऐतिहासिक काल में इसी रूप में नहीं था बल्कि इसका विकास एक क्रमिक प्रक्रिया का परिणाम है। वर्तमान वायुमंडल के विकास की तीन अवस्थाएँ हैं:

    द्वितीय अवस्था (विभेदन और डिगैसिंग): पृथ्वी के ठंडा होने तथा विभेदन के परिणामस्वरूप पृथ्वी के आंतरिक भाग से अनेक गैसों और जलवाष्प का उत्सर्जन हुआ इसमें ज्वालामुखी विस्फोट ने सर्वप्रथम भूमिका निभाई। इस अवस्था में वायुमंडल में कार्बन-डाईऑक्साइड, मीथेन, अमोनिया और जलवाष्प अधिक मात्रा में भी और स्वतंत्र ऑक्सीजन बहुत कम थी।

    तृतीय अवस्था (प्रकाश संश्लेषण के फलस्वरूप वायुमंडल की संरचना में संशोधन): पृथ्वी के ठंडा होने के क्रम में जलवाष्प का संघनन आरंभ हुआ। वर्षा के साथ CO2 के घुलने से तापमान में और कमी आई जिससे अत्यधिक वर्षा हुई और महासागरों का निर्माण हुआ। इन्हीं महासागरों में प्रारंभिक जीवन की उत्पत्ति हुई। क्रमिक रूप से जैविक विकास से प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के बढ़ने से वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा में वृद्धि हुई। इसके परिणामस्वरूप वर्तमान वायुमंडल का आविर्भाव हुआ जिसमें विभिन्न गैसें संतुलित रूप में उपस्थित थीं।


    (b) 

    प्रश्न विच्छेद

    • शैल चक्र को बताएँ।

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भूमिका लिखें।

    • शैल चक्र को परिभाषित करें।

    • शैल चक्र की प्रक्रिया को सचित्र उल्लिखित करें।


    शैल चक्र एक सतत् प्रक्रिया है, जिसमें पुरानी शैलें आंतरिक प्रक्रियाओं (ताप और दाब के परिणामस्वरूप मैग्मा का निर्माण) तथा बाह्य प्रक्रियाओं (अपरदन और निक्षेपण) द्वारा नवीन शैलों में परिवर्तित हो जाती हैं।
    पृथ्वी की पर्पटी शैलों से निर्मित है। इन शैलों को उनकी निर्माण पद्धति के आधार पर आग्नेय, अवसादी और कायांतरित शैलों में विभाजित किया जाता है। ये शैलें अपने मूल रूप में अधिक समय तक नहीं रह पाती हैं बल्कि इनमें परिवर्तन होता रहता है।

    आग्नेय शैल जो कि प्राथमिक शैल है, से अन्य (अवसादी और कायांतरित) शैलों का निर्माण होता है। आग्नेय शैलों के अपक्षयण  और अपरदन के फलस्वरूप प्राप्त अवसादों से अवसादी शैलों का निर्माण होता है, वहीं उच्च ताप एवं दाब के परिणामस्वरुप आग्नेय शैल कायांतरित शैलों में परिवर्तित हो जाती है।

    अवसादी शैलों के पृथ्वी के अंदर गहराई में दबने से ताप एवं दाब में वृद्धि के कारण ये कायांतरित शैलों में परिवर्तित हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त जब कभी ये अत्यधिक ताप के कारण पिघल जाती हैं (मैग्मा का निर्माण) तो ये आग्नेय शैल के स्रोत बन जाती हैं।

    कायांतरित शैलें या तो अपक्षयण और अपरदन के फलस्वरूप अवसादी शैलों में परिवर्तित हो जाती हैं या फिर गलन की प्रक्रिया द्वारा निर्मित मैग्मा से आग्नेय शैलों के लिये स्रोत का कार्य करती हैं। उदाहरणत: शैल (अवसादी) का रूपांतरण स्लेट में और ग्रेनाइट (आग्नेय) का रूपातंरण नीस में हो जाता है। 

    निष्कर्षत: पृथ्वी के करोड़ों वर्षो के इतिहास में भू-पर्पटी पर यह शैल चक्र निरंतर क्रियाशील रहा है, जिसके परिणामस्वरुप अनेक मानवोपयोगी खनिज संसाधनों का निर्माण होता है।

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