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प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण में विदेशी विवरणों को किस सीमा तक देशी साहित्यों का अनुपूरक माना जा सकता है? स्पष्ट कीजिये। (250 शब्द)

07 Aug 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

प्रश्न विच्छेद

कथन प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण में विदेशी विवरणों के देशी साहित्यों के अनुपूरक होने की सीमा से संबंधित है।

हल करने का दृष्टिकोण

• विदेशी विवरणों के बारे में संक्षिप्त उल्लेख के साथ परिचय लिखिये।

• प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण में विदेशी विवरणों के देशी साहित्यों के अनुपूरक होने की सीमा का उल्लेख कीजिये।

• उचित निष्कर्ष लिखिये।

प्राचीन भारत की अनेक यूनानी, रोमन एवं चीनी यात्रियों ने यात्रा की। इन यात्रियों ने भारत के विषय में अपने आँखों देखी बहुत ही मूल्यवान विवरण लिख छोड़े हैं। यह सत्य है कि इन विवरणों की महत्ता के साथ-साथ इनकी अपनी सीमाएँ भी हैं। इसके बावजूद देशी साहित्यों के साथ-साथ अन्य स्रोतों की अपनी अन्तर्निहित सीमाओं के चलते इतिहास के निर्माण के लिये इन विवरणों को देशी साहित्यों का पूरक बनाया जा सकता है।

प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण में विदेशी विवरणों के देशी साहित्यों के अनुपूरक होने की सीमा निम्नलिखित रूपों में वर्णित है-

  • विदेशी लेखकों की धर्मेत्तर घटनाओं में विशेष रुचि थी, अत: उनके वर्णनों से राजनीतिक एवं सामाजिक दशा पर अधिक प्रकाश पड़ता है।
  • यूनान और रोम के लेखकों के वर्णन अधिक उपयोगी हैं क्योंकि इन लेखकों ने उन तथ्यों के बारे में उल्लेख किया है जिनको भारतीय लेखक कोई महत्त्व नहीं देते थे। इनसे प्राचीन भारत का राजनीतिक एवं सामाजिक इतिहास लिखने में काफी सहायता मिली है।
  • इन लेखकों का समय भी प्राय: निश्चित है जिसके कारण उनके वर्णन भारतीय लेखकों के वर्णनों की अपेक्षा अधिक प्रासंगिक सिद्ध हुए हैं।
  • भारतीय स्रोतों में सिकंदर के हमले की कोई जानकारी नहीं मिलती है इसलिये उनके भारतीय कृत्यों के इतिहास के लिये हमें पूर्णत: यूनानी स्रोतों पर आश्रित रहना पड़ता है।
  • यह हमें यूनानी विवरणों से ही पता चलता है कि 326 ई.पू. में भारत पर हमला करने वाले सिकंदर महान के समकालीन यूनानी विवरणों के सैंड्रोकोटस और चन्द्रगुप्त मौर्य, जिनके राज्यारोहण की तिथि 322 ई.पू. निर्धारित की गई है, एक ही व्यक्ति है। यह पहचान प्राचीन भारत के तिथिक्रम के लिये सुदृढ़ आधारशिला बन गई।

चीनी यात्रियों का बौद्ध दृष्टिकोण के प्रति झुकाव, यूनानी लेखकों की भारतीय परिस्थितियों एवं भाषा के प्रति अनभिज्ञता, अलबरूनी द्वारा प्राय: उपलब्ध भारतीय साहित्य, न कि अनुभव के आधार पर लेखन ऐसे बिंदु हैं जो कि विदेशी विवरणों की प्रासंगिकता पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं। इन सब कमियों के बावजूद ये विवरण अन्य साधनों से प्राप्त साक्ष्यों के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर प्राचीन भारत का इतिहास लिखने में काफी सहायक सिद्ध हो सकते हैं।