वर्षण की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिये तथा संसार में वर्षण के प्रतिरूप की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
08 Aug 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | भूगोल
प्रश्न विच्छेद वर्षण की प्रक्रिया तथा उसके वैश्विक प्रतिरूप की चर्चा करें। हल करने का दृष्टिकोण • संक्षिप्त भूमिका लिखें। • वर्षण की प्रक्रिया को स्पष्ट करें। • वर्षण के वैश्विक प्रतिरूप की चर्चा करें। |
जब जलवाष्प संघनित होकर जल की बूँदों या ठोस हिमकणों के रूप में धरातल पर गिरती है, तो उसे वर्षण कहते हैं। विश्व के अलग-अलग भागों में वर्षण की मात्रा और प्रकार में काफी भिन्नता है।
वर्षण की प्रक्रिया सम्पन्न होने के लिये नमी युक्त वायु, संवहन धाराएँ, वायु में धूल-कण की उपस्थिति तथा संघनन की प्रक्रिया आवश्यक शर्त है। जब आर्द्र वायु संवहन धाराओं के रूप में ऊपर उठती है और पैलती है, तो तापमान में कमी आती है और बादलों का निर्माण होता है। तापमान में कमी आने से जलग्राही नाभिक (धूल-कण) के चारों ओर जलवाष्प का संघनन होने लगता है। जलवाष्प का संघनन होने से जल की बूँदों का निर्माण होता है। जब हवा का प्रतिरोध गुरुत्वाकर्षण बल के विरुद्ध इन बूँदों को रोकने में असफल हो जाता है तब ये धरातल पर जलकण या हिम-रवे के रूप में गिरते हैं, जिसे वर्षण कहा जाता है।
वर्षा का विश्व वितरण असमान है। पृथ्वी के अलग-अलग भाग भिन्न-भिन्न मात्रा में तथा अलग-अलग मौसमों में वर्षा प्राप्त करते हैं। सामान्यत: भूमध्यरेखा से ध्रुवों की ओर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है। विश्व के वे भाग जहाँ उच्च तापमान और जल की अधिकता है, वहाँ पर वर्षा अधिक होती है। भूमध्यरेखीय प्रदेश सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करता है। वे प्रदेश जो उच्च वायुदाब की पेटी में आते हैं कम वार्षिक वर्षा प्राप्त करते हें। व्यापारिक पवनों की पेटी में महाद्वीपों के पूर्वी तटों पर अधिक वर्षा होती है तथा पश्चिम की तरफ यह घटती जाती है। इसके विपरीत पछुआ पवन की पेटी में महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर अधिक वर्षा होती है। विश्व के स्थलीय भागों की अपेक्षा महासागरों के ऊपर वर्षा अधिक होती है।
वर्षा का प्रतिरूप वैश्विक स्तर पर सामाजिक-आर्थिक जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित करता है। पृथ्वी के वे भाग जो अत्यधिक या कम वर्षा प्राप्त करते है सामाजिक-आर्थिक रूप से कम महत्त्वपूर्ण हैं जबकि मानसूनी क्षेत्र सघन जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप वैश्विक वर्षण प्रतिरूप में बदलाव के कारण अनेक सामाजिक-आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।