निम्नलिखित गद्यांशों की (लगभग 150 शब्दों में) ससंदर्भ व्याख्या करते हुए उनके रचनात्मक सौंदर्य का उद्घाटन कीजिये:
(क) कविता ही हृदय को प्रकृत दशा में लाती है और जगत् के बीच क्रमश: उसका अधिकाधिक प्रसार करती हुई उसे मनुष्यत्व की उच्च भूमि पर ले जाती है। भावयोग की सबसे उच्च कक्षा पर पहुँचे हुए मनुष्य का जगत् के साथ पूर्ण तादात्म्य हो जाता है, उसकी अलग भावसत्ता नहीं रह जाती, उसका हृदय विश्व-हृदय हो जाता है।
(ख) जब आप याद करेंगे कि मुगल बादशाहों के ज़माने में इन कोल किरातों का आखेट होता था और जो पकड़े जाते थे, वे काबुल में बेच दिये जाते थे और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के शासन में लाखों की तादाद में उन्हें जरायम पेशा करार दिया गया, तब तुलसीदास की प्रगतिशीलता समझ में आएगी।
28 Aug 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | हिंदी साहित्य(क)
संदर्भ: प्रस्तुत गद्यावतरण हिन्दी निबंध परंपरा के लब्धप्रतिष्ठित रचनाकार पं. रामचन्द्र शुक्ल के प्रसिद्ध काव्यशास्त्रीय निबंध ‘कविता क्या है’ से उद्धृत है। यह निबंध आचार्य शुक्ल की काव्यशास्त्रीय मान्यताओं का सबसे महत्त्वपूर्ण दस्तावेज माना जाता है।
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ निबंध के एक विशिष्ट अंश ‘मनुष्यता की उच्च भूमि’ से ली गई हैं। इस अंश में शुक्ल जी बता रहे हैं कि कोई मनुष्य कविता के माध्यम से कैसे अपने मनुष्यत्व की उच्च स्थिति को उपलब्ध करता है।
व्याख्या: आचार्य शुक्ल के अनुसार कविता मनुष्य के हृदय को प्रच्छन्नताओं से मुक्त करके उसकी प्रकृत अवस्था तक ले जाती है। जैसे-जैसे मनुष्य ने सभ्यता का विकास किया, वैसे-वैसे उसके मूल भावों पर कई आवरण चढ़ते गए तथा वह अपने मूल भावों से अजनबी होता गया। कविता इन आवरणों को चीरकर उसके हृदय को मूल व सहज रूप में लाती है और प्रकृति के विभिन्न रूपों से साहचर्य स्थापित करते हुए उसमें छिपे मनुष्यत्व को चरम स्तर तक पहुँचा देती है। शुक्ल जी के अनुसार ‘मनुष्यता की उच्च भूमि’ पर पहुँचने का अर्थ अत्यंत विवेकवान होना नहीं है अपितु संवेदनशीलता या भाव प्रसार की क्षमता का अधिक होना है। जो व्यक्ति भाव प्रसार की उच्चतम अवस्था में पहुँचता है, वह अपने पृथकत्व को पूर्णत: भूलकर जगत की समग्रता में अपने स्व का विलोपन कर देता है। तब वह पृथक व्यक्ति अहंकार की क्षुद्रताओं से युक्त व्यक्ति नहीं रहता अपितु अपने हृदय में सम्पूर्ण विश्व को महसूस करता है। यही स्थिति रस दशा कहलाती है और यहाँ तक पहुँचाने में कविता की विशिष्ट भूमिका के कारण शुक्ल जी ने कविता को ‘भावयोग’ की संज्ञा भी दी है।
विशेष:
(ख)
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक एवं निबंधकार डॉ. रामविलास शर्मा के निबंध ‘तुलसी-साहित्य के सामंत विरोधी मूल्य’ से ली गई हैं।
प्रसंग: इन पंक्तियों में रामविलास शर्मा गोस्वामी तुलसीदास की सामंत-विरोधी चेतना एवं उनके महत्त्व की प्रतिष्ठा कर रहे हैं।
व्याख्या: रामविलास शर्मा कह रहे हैं कि तुलसीदास को रूढ़िवादी सिद्ध करने का प्रयत्न करने वाले विचारकों को उस समय के इतिहास को देखना चाहिए। मुगलकाल में निम्न जाति के लोगों एवं आदिवासियों की स्थिति अत्यन्त दयनीय थी। यहाँ तक कि उनकी खरीद-बिक्री होती थी। इसी तरह अंग्रेजों के जमाने में कोल-किरातो को लाखों की संख्या में जरायम पेशा करार दिया गया था। इन स्थितियों से तुलसीदास के विचारों की तुलना करने पर वे बहुत प्रगतिशील प्रतीत होते हैं।
विशेष: