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‘सूचना का अधिकार’ ने लोकतंत्र के लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में मदद की है,इस पर चर्चा करते हुये इसके कार्यान्वयन में आने वाली बाधाओं को बताएँ। (शब्द 250)

18 Jun 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण

  • आरटीआई को लेकर जवाबदेही और पारदर्शिता के संबंधों की व्याख्या करें, जो निरंकुशता पर नियंत्रण रखते हुये अंततः लोकतंत्र के लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में मदद करता है।
  • आरटीआई के कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों का वर्णन करें।
  • भविष्योन्मुखी सुझाव प्रदान करते हुये निष्कर्ष लिखिये।

परिचय :

सूचना के अधिकार का अर्थ है, लोगों को सरकारी सूचनाओं तक पहुँचने की स्वतंत्रता।

संरचना

सूचना का अधिकार और लोकतंत्र के लक्ष्य

  • जवाबदेही: आरटीआई पारदर्शी और सार्वजनिक प्रशासन को बढ़ावा देकर सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
  • जन भागीदारी- आरटीआई एक साधन है जो लोकतंत्र को मज़बूत करता है और शासन की प्रक्रिया में भाग लेने के लिये नागरिकों की क्षमता को बढ़ाकर सुशासन को बढ़ावा देता है।
  • भ्रष्टाचार का न्यूनीकरण : आरटीआई भ्रष्टाचार और निरंकुश प्रशासनिक कार्यों पर अंकुश लगाता है।
  • उत्तरदायित्व : उत्तरदायी शासन लोकतंत्र की पहचान है। आरटीआई उत्तरदायी शासन को बढ़ावा देता है।
  • नागरिक सशक्तीकरण : आरटीआई ने नागरिकों को कानूनी अधिकार देकर उन्हें सशक्त बनाया ।

आरटीआई के कार्यान्वयन में बाधाएँ:

  • जन जागरूकता की कमी : सामान्य तौर पर 'आरटीआई' के बारे में जागरूकता कम है, वंचित समुदायों जैसे महिलाओं / एस.सी. / एस.टी. / ग्रामीण आबादी के बीच इसको लेकर जागरूकता की कमी पाई जाती है।
  • सूचना चाहने वालों के लिये आरटीआई के कार्यान्वयन हेतु उपयोगकर्त्तामार्गदर्शिका की अनुपलब्धता जिसके कारण आवेदन दाखिल करने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है ।
  • आरटीआई के लिये असुविधाजनक आवेदन माध्यम: ऑनलाइन आरटीआई आवेदन करने के लिये अपर्याप्त प्रयास किए गए हैं।
  • आवेदन शुल्क जमा करने के लिये असुविधाजनक भुगतान माध्यम : अधिकांश सार्वजनिक सूचना कार्यालय नकद और डिमांड ड्राफ्ट का उपयोग करते हैं, जिससे नागरिकों को असुविधा होती है।
  • सार्वजनिक सूचना कार्यालय का असहयोगात्मक रवैया: आरटीआई के प्रति सिविल सेवाओं का रवैया अभी भी सकारात्मक नहीं है। यह अधिकारी स्तर पर रूकावट पैदा कर सूचना चाहने वाले को हतोत्साहित करता है।
  • उपलब्ध कराई गई जानकारी की खराब गुणवत्ता: यह पाया गया है कि आरटीआई के तहत वैधानिक अधिकारों की अनदेखी कर अधूरी और गलत जानकारी दी जाती है।
  • सार्वजनिक सूचना कार्यालय अभिलेखों के भौतिक निरीक्षण को हतोत्साहित करता है, जबकि आरटीआई अधिनियम के तहत ऐसेनिरीक्षण की अनुमति दी जाती है।
  • अपर्याप्त सार्वजनिक सुचना कार्यालय और प्रशिक्षित प्रथम अपीलीय प्राधिकारीयों की कमी।
  • 30 दिनों के भीतर जानकारी प्रदान करने में विफलता।
  • आरटीआई आवेदनों के निस्तारण में विलंब: लंबित आरटीआई आवेदनों की काफी अधिक संख्या है। वर्ष 2016-17 में लंबित आरटीआई अनुरोधों की कुल संख्या 11,29,457 थी।
  • सूचना चाहने वाले के खिलाफ हिंसा: सूचना चाहने वालों के विरुद्ध हमले की घटनाएँ अक्सर सामने आती रहती हैं।

आगे का राह :

  • जागरूकता बढ़ाने के लिये गैर-सरकारी संगठनों जैसे नागरिक समाज संगठनों की भागीदारी को बढ़ाया जाना चाहिये।
  • सिविल सेवकों के बीच प्रशिक्षण के माध्यम से पारदर्शिता की संस्कृति को बढ़ावा देना।
  • सार्वजनिक प्राधिकरणों में सूचना के अधिक स्वैच्छिक प्रकटीकरण को बढ़ावा देना।
  • आरटीआई के तहत सूचना मांगने वाले व्यक्ति को सुरक्षित किया जाना चाहिये।
  • राज्यों में पुलिस अधिकारियों को संवेदनशील बनाकर इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिये प्रभावी कदम उठाने होंगे।