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रंगमंचीयता के धरातल पर जयशंकर प्रसाद के नाटक चंद्रगुप्त का परीक्षण कीजिये।

18 Jun 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | हिंदी साहित्य

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

उत्तर: हिन्दी नाट्य समीक्षकों के लिए ‘चन्द्रगुप्त’ की अभिनेयता का प्रश्न आरम्भ से ही विवादास्पद रहा है। विद्वानों का एक वर्ग इसे अभिनय कला की दृष्टि से अक्षम मानते हुए इसकी अभिनेयता को अस्वीकृत करता है तो दूसरा वर्ग इसमें कुछ व्यवस्थाओं के साथ इसमें सफल मंचन की संभावनाएँ देखता है। इस नाटक के रंगमंचीय न होने के मूल कारणों में मूलत: सभी विद्वान जिन समस्याओं को उठाते हैं, वे हैं- इसके कथानक की जटिलता और वृहदता, पात्रों की अधिक संख्या, भाषा की दुरूहताएँ, संवादों का सामासिक और विस्तृत होना, स्वगत कथन, गीतों की अधिकता और अंकों तथा दृश्यों के विभाजन की त्रुटियाँ तथा उनकी अधिकता आदि।

धीरे-धीरे रंगकर्मियों, शोधकर्त्ताओं और आलोचकों ने चन्द्रगुप्त की शक्तियों को पहचानने का प्रयास किया। आलोचकों ने इसकी रंगमंचीय संभावनाओं को तलाशा और ऐसी कुछ व्यवस्थाओं की ओर संकेत किया जो इसकी रंगमंचीयता को प्रबल कर सकती हैं। इनके अनुसार प्रसाद के चन्द्रगुप्त की भावभूमि के अनुसार रंगमंच और साजसज्जा की व्यवस्था, रुचि एवं सांस्कृतिक चेतना सम्पन्न अभिनेताओं का चयन, आधुनिक नाटकीय उपकरणों का प्रयोग आदि ऐसी व्यवस्थाएँ हैं। इसके अतिरिक्त वे इस नाटक में आवश्यकतानुरूप नाटक की आत्मा को सुरक्षित रखते हुए परिवर्तन का भी सुझाव देते हैं। इस रूप में ‘चन्द्रगुप्त’ रंगमंचीयता के गुणों से युक्त नाटक है।