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24 Aug 2019
सामान्य अध्ययन पेपर 4
केस स्टडीज़
आप एक वरिष्ठ वन अधिकारी हैं और हाल ही में आपको एक ऐसे वन क्षेत्र में तैनात किया गया है, जिसमें एक वन्यजीव अभयारण्य और स्थानीय पहाड़ी जनजातियों का देवालय है। अभयारण्य एक प्रसिद्ध ट्रेकिंग साइट है, लेकिन केवल पुरुषों के लिये ही खुला है क्योंकि स्थानीय आदिवासी संस्कृति में महिलाओं को पहाड़ी स्थल पर बने उनके देवालय में प्रवेश की अनुमति नहीं है।
हाल ही में राज्य उच्च न्यायालय ने महिलाओं पर लगे इस अनधिकृत प्रतिबंध को हटा दिया, जिसके बाद महिलाओं के समूहों द्वारा सभी के लिए ट्रेकिंग साइट खोलने का दबाव डाला गया, जबकि स्थानीय आदिवासी समूह इसका विरोध करते हैं। आपको डर है कि साइट खोलने से आदिवासियों के विरोध का सामना करना पड़ सकता है, कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है और वहाँ ट्रेकिंग के लिये आने वालों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
1. इस परिदृश्य में आपके लिये क्या विकल्प खुले हैं? उनके गुणों और अवगुणों के साथ चर्चा करें?
2. इस स्थिति में आप कौन सी उचित कार्रवाई करेंगे और क्यों?
उत्तर
1.
उपरोक्त केस स्टडी निम्नलिखित नैतिक दुविधा को दर्शाती है:
- सामुदायिक हित बनाम लैंगिक समानता।
- धर्म की स्वतंत्रता बनाम समानता का अधिकार।
इस परिदृश्य में विकल्प जो अपनाए जा सकते हैं:
विकल्प 1: उच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना करें।
गुण:
- यथास्थिति बनाए रखने से कानून और व्यवस्था की स्थिति बनी रहेगी।
- आदिवासियों की धार्मिक भावनाओं की पवित्रता को बनाए रखा जा सकता है।
अवगुण:
- यह न्यायालय की अवमानना का कारण बनेगा।
- यह पितृसत्तात्मक मानसिकता का समर्थन करेगा कि ट्रेकिंग जैसी गतिविधियाँ पुरुषोचित कार्य हैं।
विकल्प 2: आदिवासियों को स्वयं समझाने का प्रयास करूंगा।
गुण:
- यह आदिवासियों के उनके चयन के बारे में निर्णय लेने के अधिकार को बरकरार रखेगा।
अवगुण:
- इस विकल्प के सफल होने की बहुत कम संभावना है, क्योंकि आदिवासी इस धार्मिक प्रथा के साथ युगों से रह रहे हैं।
विकल्प 3: न्यायालय के आदेश को लागू करें, यदि आदिवासी हिंसक हो जाते हैं तो बलों की मदद ली जानी चाहिए
गुण:
- यह अदालत के आदेश को लागू करेगा और लैंगिक समानता के सिद्धांत को बनाए रखेगा।
अवगुण:
- यह टेलियोलॉजिकल (उद्देश्य परक) नैतिकता के खिलाफ है क्योंकि अनैतिक साधनों का उपयोग वांछित परिणाम तक पहुँचने के लिये किया जाता है।
- आदिवासियों को उस न्यायिक प्रक्रिया को स्वीकार करने के लिये कहना घोर अन्याय है, जिसे उन्होंने सहमति नहीं दी थी।
2. कार्रवाई जो की जानी चाहिये:
चूंकि यह एक सामाजिक मुद्दा है, अतः केवल कानूनी समाधान पर्याप्त नहीं है, इसके लिए भावनात्मक बुद्धिमत्ता की आवश्यकता है।
- कदम जो उठाए जाने चाहिये:
- समुदाय के साथ विश्वास-निर्माण के उपाय करने के लिये नागरिक समाज को शामिल करें।
- प्रचलित कानूनों के बारे में आदिवासियों को जागरूक करें कि ये लैंगिक समानता की गारंटी देते हैं।
- संघर्ष की किसी भी स्थिति से बचने के लिये पुलिस और अन्य बलों को तैयार रहना चाहिये।
- अदालत के आदेश को लागू करने के लिये और समय मांगा जा सकता है, ताकि इस मुद्दे को सौहार्द्रपूर्वक तरीके से हल किया जा सके।
- हालाँकि, पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण को रातोंरात नहीं बदला जा सकता, इसलिये:
- जागरूकता पैदा करने हेतु अभियान की रणनीति के लिये कुछ आदिवासी नेताओं को उतारा जा सकता है।
- इससे लोगों को राज़ी किया जा सकेगा क्योंकि संदेश का स्रोत ज़िला प्रशासन की तुलना में अधिक विश्वसनीय होगा।
- आदिवासियों को लैंगिक समानता के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिये।
सामुदायिक हित और व्यक्तिगत स्वतंत्रता में संतुलन होना चाहिये, लेकिन मनुष्य की गरिमा के अधिकार से समझौता नहीं किया जा सकता। इसे सामाजिक-राजनीतिक अभियान चलाकर प्राप्त किया जा सकता है, जो जनजातीय संस्कृति की पवित्रता को बनाए रखते हुए पितृसत्ता के खतरे के प्रति जनचेतना को बढ़ाएगा।