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निम्नलिखित पर लगभग 150 शब्दों में टिप्पणी लिखिये:

(क) तारसप्तक

(ख) हिन्दी साहित्येतिहास को ग्रियर्सन की देन

23 Aug 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | हिंदी साहित्य

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

(क)

सन् 1943 ई. में अज्ञेय के संपादकत्व में प्रकाशित सात कवियों गजानन माधव मुक्तिबोध, नेमिचंद्र जैन, भारत भूषण अग्रवाल, प्रभाकर माचवे, गिरिजा कुमार माथुर, रामविलास शर्मा तथा अज्ञेय की कविताओं का संग्रह ‘तारसप्तक’ हिन्दी साहित्य के इतिहास में ऐतिहासिक महत्त्व रखता है। इसके प्रकाशन के साथ अज्ञेय ने हिन्दी कविता-क्षेत्र में एक नई काव्य-दृष्टि की प्रस्तावना की जिसके परिणामस्वरूप एक नई काव्यधारा ‘प्रयोगवाद’ का जन्म हुआ। इस संग्रह की भूमिका में संकलित कवियों को ‘नवीन राहों का अन्वेषी’ कहते हुए अज्ञेय ने प्रयोग पर बल दिया। उन्होंने इस संग्रह में संकलित होने की कसौटी का निर्धारण करते हुए कहा कि संगृहीत सभी कवि ऐसे होंगे जो कविता को प्रयोग का विषय मानते हैं- जो यह दावा नहीं करते कि काव्य का सत्य उन्होंने पा लिया है- केवल अन्वेषी ही अपने को मानते हैं। कुल मिलाकर ‘तारसप्तक’ के प्रकाशन के परिणामस्वरूप स्वानुभूति की प्रमाणिकता, समूह की तुलना में इकाई पर बल, यथार्थ के प्रति उन्मुक्त दृष्टि, यौनकुंठा का प्राबल्य, शब्दों का खुला आमंत्रण, नवीन अप्रस्तुत, प्रतीक तथा बिंब-विधान आदि विशेषताओं को धारण करने वाली प्रयोगवादी कविता का जन्म हुआ।

‘तारसप्तक’ पर कई आरोप भी लगे, किन्तु इसमें कोई संदेह नहीं कि छायावादोत्तर हिन्दी कविता में ‘बौद्धिकता’ की महत्त्व-प्रतिष्ठा ‘तारसप्तक’ ने की।


(ख)

जार्ज ग्रियर्सन का 1988 में प्रकाशित ‘द मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिट्रेचर ऑफ नार्दर्न हिन्दुस्तान’ साहित्यिक इतिहास बोध से युक्त हिन्दी का प्रथम साहित्येतिहास ग्रंथ है। इस ग्रंथ में पहली बार काल विभाजन, कालों का नामकरण, युगीन प्रवृत्तियों का विश्लेषण जैसी विशेषताएँ देखने को मिलीं। ग्रियर्सन ने मात्र कविवृत्त संग्रह करने के स्थान पर कवियों के मूल्यांकन को अपने साहित्येतिहास का आधार बनाया। यह एक युगांतकारी परिवर्तन था। ग्रियर्सन ने संस्कृत, प्राकृत व फारसी मिश्रित उर्दू साहित्य को हिन्दी साहित्य का अंग न मानकर भाषिक दृष्टि से हिन्दी साहित्य के दायरे को सुपरिभाषित किया।

ग्रियर्सन ने ही पहली बार साहित्येतिहास में पाद टिप्पणियों का प्रयोग प्रारंभ किया जिससे लेखन की प्रामाणिकता बढ़ी। ग्रियर्सन ने ही सबसे पहले भक्तिकाल को स्वर्णयुग की संज्ञा दी जो आज भी मान्य है। ग्रियर्सन के साहित्येतिहास में काल विभाजन की यादृच्छिकता, भक्तिकाल के बीज ईसाइयत में खोजने जैसी कुछ गंभीर कमियाँ भी हैं, पर कुल मिलाकर हिन्दी साहित्येतिहास लेखन में ग्रियर्सन की देन मील का पत्थर है।