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बायोएथिक्स से आप क्या समझते हैं? भारत में बायोएथिक्स से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

23 Aug 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण

• बायोएथिक्स द्वारा जो आप समझते हैं, उसके बारे में लिखिये।

• भारत में बायोएथिक्स से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिये।

परिचय

बायोएथिक्स

  • जीवन के जैविक पहलुओं से संबंधित नैतिक मुद्दे और यह कैसे और कब शुरू होता है, इसे बायोएथिक्स में शामिल किया गया है।
  • यह नैतिकता की वह शाखा है जिसमें गर्भपात, पशु अधिकारों या इच्छामृत्यु जैसे विशिष्ट, विवादास्पद नैतिक मुद्दों के विश्लेषण शामिल हैं। यह दुविधाओं की प्रस्तुति के लिये नैतिक सिद्धांतों के ज्ञान का उपयोग करने में मदद करता है।
  • बायोएथिक्स की कई भूमिकाएँ हैं जिनमें से तीन महत्त्वपूर्ण मिशन हैं:
    • स्वास्थ्य देखभाल (हेल्थ केअर) संस्थाओं में अनैतिक प्रथाओं के बारे में सवाल उठाना।
    • नई और आने वाली जैव प्रौद्योगिकी के कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न होने वाली नई बायोएथिकल समस्याओं से मुकाबला करना।
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दों और विश्व के आर्थिक रूप से अविकसित हिस्सों में स्वास्थ्य देखभाल और सुविधाएँ प्रदान करने को चुनौती देना।

ढाँचा/संरचना

भारत में बायोएथिक्स से जुड़े मुद्दे

  • इच्छामृत्यु: भारत में असाध्य रूप से बीमार रोगियों के लिये इच्छामृत्यु/"दया-हत्या" एक विवादास्पद बायोएथिकल मुद्दा रहा है। चिकित्सक-सहायता प्राप्त आत्महत्या (PAS) के समर्थकों को लगता है कि किसी व्यक्ति का स्वायत्तता का अधिकार उसे पीड़ारहित मृत्यु का चयन करने का स्वतः ही अधिकार देता है। इसके विरोधियों को लगता है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु में एक चिकित्सक की भूमिका चिकित्सा पेशे के केंद्रीय सिद्धांत का उल्लंघन करती है- ए लाइफ वर्सेज़ डिग्निटी। हम निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति देते हैं, लेकिन हम सक्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति नहीं देते।
  • स्टेम सेल अनुसंधान: मधुमेह, हृदय रोग, रीढ़ की हड्डी में चोट, पार्किंसंस, अल्जाइमर रोग जैसे 'अपक्षयी, लाइलाज़ और अपरिवर्तनीय' रोगों के उपचार में स्टेम कोशिकाओं में पाई गई अपार क्षमता ने इन्हें चर्चा में ला दिया है। चिकित्सा के रूप में स्टेम कोशिकाओं पर केंद्रित बहस में सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और नैतिक मुद्दे शामिल हैं। डिज़ाइनर शिशुओं से संबंधित चिंताओं ने गंभीर बायोएथिकल मुद्दों को उठाया है।
  • एक अंतर्राष्ट्रीय फाउंडेशन द्वारा आंध्र प्रदेश में लड़कियों को ह्यूमन पैपिलोमावायरस (HPV) वैक्सीन दिये जाने पर सार्वजनिक रूप से चिंता जताई गई। राज्य के जनजातीय विभाग ने एक आदेश जारी कर कहा था कि इसकी सहमति के लिये लड़कियों के माता-पिता से संपर्क करने की आवश्यकता नहीं है और आदिवासी स्कूलों के प्रिंसिपल इसकी सहमति प्रदान कर सकते हैं। लेकिन माता-पिता की सूचित सहमति के बिना नाबालिग लड़कियों को वैक्सीन देना नैतिक नहीं है।
  • नैदानिक ​​परीक्षणों के लिये शिथिल मानदंड: सरकार ने वर्ष 2013 में नैदानिक ​​परीक्षणों को लेकर कड़े नियम जारी किये थे। लेकिन वर्ष 2014 के बाद से इन नियमों को धीरे-धीरे शिथिल किया जा रहा है। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने तीसरे चरण के नैदानिक ​​परीक्षणों को समाप्त करने का फैसला किया है, यदि दवा को अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, कनाडा या यूरोप में मंज़ूरी दी गई है। केवल उन्हीं मामलों में इसे किया जाएगा जहाँ बायोएथिकल मुद्दों की वज़ह से इसे विशेष रूप से करना आवश्यक है।
  • गर्भपात: गर्भपात का सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, कानूनी और राजनीतिक संदर्भ जटिल है। यह चिकित्सा प्रौद्योगिकी में हुई प्रगति से जटिल हुआ है। जन्मपूर्व नैदानिक ​​प्रौद्योगिकियों और आनुवांशिकी-आधारित प्रौद्योगिकियों के उद्भव ने अब में गर्भ में ही लिंग चयन करया भ्रूण की अन्य 'असामान्यताओं' का पता लगाना संभव बना दिया है। इसने महिलाओं और उनके परिवारों को भ्रूण का लिंग चयन करने तथा चयनात्मक गर्भपात करने के लिये प्रोत्साहित किया है।

निष्कर्ष

प्रत्येक स्थिति काफी अनोखी और जटिल है और हमें वास्तव में अंतिम समाधान तक पहुँचने से पहले कई कारकों के साथ सामंजस्य बनाना पड़ेगा। इनमें वैज्ञानिक, तकनीकी, आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक कारक शामिल हैं।

आधुनिक युग में बायोएथिसिस्ट को उन सभी कारकों के प्रति संवेदनशील होना चाहिये जो आधुनिक समाजों में नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।