Be Mains Ready

पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) से आप क्या समझते हैं? भारत में EIA से जुड़ी चुनौतियाँ और महत्त्व क्या हैं? (250 शब्द)

21 Aug 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | पर्यावरण

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

परिचय

पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) किसी भी प्रस्तावित विकासात्मक परियोजना के अनुमानित पर्यावरणीय परिणामों के मूल्यांकन और पहचान हेतु किया जाने वाला अध्ययन है।

EIA अधिसूचना 2006 पर्यावरणीय मंज़ूरी प्राप्त करने के लिये चार चरणों का प्रावधान करती है:

  1. स्क्रीनिंग: राज्य स्तरीय विशेषज्ञ मूल्यांकन समितियों (SLEAC) द्वारा किसी परियोजना को श्रेणीबद्ध करना और यह आकलन करना कि क्या परियोजना के लिये EIA की आवश्यकता है या EIA से छूट प्रदान की जा सकती है।
  2. स्कोपिंग: केंद्रीय विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (EAC) और SLEAC द्वारा EIA रिपोर्ट तैयार करने के लिये परियोजना से संबंधित व्यापक शर्तें निर्धारित की जाती हैं। इस स्तर पर प्रदूषकों और उत्सर्जन मानकों के निर्धारण के अनुपालन पर रिपोर्ट का आकलन करके NOC प्रदान की जाती है।
  3. जन सुनवाई: स्थानीय लोगों की आपत्तियों या सुझावों को दर्ज करने के लिये जन सुनवाई की जाती है । एक समिति इसका आयोजन करती है जिसके अध्यक्ष ज़िला कलेक्टर होते हैं और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) के अधिकारी, तालुका और ग्राम सभा के प्रतिनिधि समिति के अन्य सदस्य होते हैं।
  4. मूल्यांकन: EAC और SLEAC अंतिम EIA रिपोर्ट एवं NOCs की जाँच करते हैं और फिर इसे पर्यावरण तथा वन मंत्रालय के पास भेजा जाता है।

ढाँचा/संरचना

EIA का महत्व:

  • EIA रिपोर्ट भारत की पर्यावरणीय निर्णय लेने की प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। इन रिपोर्टों के आधार पर पर्यावरण मंत्रालय या अन्य संबंधित नियामक निकाय किसी परियोजना को मंज़ूरी दे सकते हैं या नहीं दे सकते हैं।
  • EIA रिपोर्ट उन उपायों को परिभाषित करने के लिये भी महत्त्वपूर्ण है जो परियोजना को प्रभावित करने वाले कारकों को समायोजित कर सकें।
  • वैज्ञानिक मूल्यांकन के लिये कानून एक मान्यता प्राप्त स्वतंत्र EIAसलाहकार का प्रावधान करता है जो निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये अध्ययन करता है।
  • जन सुनवाई मंच स्थानीय लोगों को अपनी चिंताओं को उठाने का मौका देता है और इस प्रकार स्थानीय स्तर पर शासन को मज़बूत करने में मदद करता है।

भारत में EIA से संबंधित चुनौतियाँ

सरसरी तौर पर देखने से यह बहुत ही सरल प्रक्रिया प्रतीत होती है, लेकिन EIA की पूरी प्रक्रिया में कई संरचनात्मक और प्रक्रियात्मक चुनौतियाँ शामिल हैं:

  • EIA प्रक्रिया तथा अपने अधिकारों और ज़िम्मेदारियों के बारे में स्थानीय लोगों में जागरूकता की कमी।
  • EIA की स्थानीय भाषा में अनुपलब्धता, जो लोगों में भ्रम उत्पन्न करता है।
  • EIA समिति में शामिल अधिकारियों में जानकारी का अभाव और भ्रष्टाचार का होना।
  • बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां कानून में छूट प्रावधानों और खामियों का फायदा उठाकर EIA प्रक्रिया को दरकिनार करती हैं। इसके अलावा स्क्रीनिंग और स्कोपिंग प्रक्रियाओं के समग्र संचालन में स्पष्टता की कमी है।
  • गुणवत्तापूर्ण EIA पेशेवरों की कमी जो मूल्यांकन में त्रुटियों और चूक को बढ़ावा देती है।

निष्कर्ष

इस प्रकार भारत में पर्यावरणीय निर्णय लेने की प्रक्रिया के लिये EIA महत्त्वपूर्ण है। सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये हमारे नीतिगत निर्णय वैज्ञानिक विश्लेषणात्मक आकलन पर आधारित होने चाहिये, जो लोगों और धरती के बीच तालमेल रख सकें।