भारत में पशु पालन काफी हद तक एक पूरक गतिविधि के रूप में किया जाता है, जहाँ पशुधन कृषि गतिविधि में एकीकृत होता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में पशु पालन की भूमिका का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
21 Aug 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण
• परिचय में पशुधन क्षेत्र के महत्त्व पर प्रकाश डालें।
• भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुपालन की भूमिका का विश्लेषण कीजिये।
• अंत में निष्कर्ष दीजिये।
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- भारत की कृषि प्रणाली मुख्य रूप से एक मिश्रित कृषि मॉडल है, जिसमें फसलों को उगाने के साथ-साथ पशुधन को बढ़ाना भी शामिल है।
- 19वीं पशुधन गणना (2012) के अनुसार, भारत में दुनिया की सबसे बड़ी पशुधन आबादी है।
- 2012 तक पशुधन का योगदान कृषि GDP में 25.6% और राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में 4.11% था।
- पशुपालन देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक-आर्थिक विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी परिवार की आय के पूरक के रूप में कार्य करता है और ग्रामीण क्षेत्र में लाभकारी रोज़गारों का सृजन करता है। विशेष रूप से भूमिहीन मज़दूरों, छोटे और सीमांत किसानों और महिलाओं को रोज़गार देने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुपालन की भूमिका
- किसानों की अर्थव्यवस्था: भारत में किसान मिश्रित कृषि प्रणाली को अपनाते हैं अर्थात् फसल और पशुधन का एक संयोजन जहाँ एक उद्यम का उत्पादन दूसरे उद्यम का निवेश बन जाता है, जिससे संसाधन दक्षता बढ़ती है। पशुपालन से कृषकों को निम्न लाभ प्राप्त होते हैं:
- आय: छोटे ग्रामीण परिवारों की आय में पशुधन का योगदान 16% रहा है, जबकि सभी ग्रामीण परिवारों में औसत योगदान 14% रहा है। गायों और भैंसों का दूध बेचने से; बकरी, भेड़, ऊँट, आदि पशुओं और मवेशियों की बिक्री और खरीद से आय सृजित होती है जो ज़रूरत के समय किसानों को लाभ प्राप्ति सुनिश्चित करते हैं।
- रोज़गार: पशुधन ग्रामीण समुदाय के दो-तिहाई लोगों को आजीविका प्रदान करता है। यह भारत में लगभग 9% आबादी को रोज़गार भी प्रदान करता है।
- भोजन: पशुधन उत्पाद जैसे दूध, मांस और अंडे पशु स्वामियों के लिये प्रोटीन का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
- सामाजिक सुरक्षा: पशु अपने मालिकों का सामाजिक स्तर बढ़ाकर उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान करते हैं। वे परिवार जो भूमिहीन हैं, उनके पास पशुधन होने की स्थिति में उन्हें उन लोगों की तुलना में बेहतर माना जाता है जिनके पास न पशु हैं और न ही भूमि है।
- भारवाहक: बैल भारतीय कृषि की रीढ़ हैं। किसान, विशेष रूप से सीमांत और छोटे किसान जुताई, ढुलाई तथा लागत और उत्पादों के परिवहन के लिये बैल पर निर्भर करते हैं।
- गोबर: ग्रामीण क्षेत्रों में गोबर का उपयोग कई उद्देश्यों के लिये किया जाता है जिसमें ईंधन (गोबर के उपले), उर्वरक (खेत में डाली जाने वाली खाद), और पलस्तर सामग्री (गरीब आदमी का सीमेंट) शामिल हैं।
- गरीबी उन्मूलन: ग्रामीण गरीबी को कम करने में पशुपालन की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। पंजाब, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, केरल, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में ग्रामीण गरीबी अपेक्षाकृत कम है, जहाँ पशुधन कृषि आय के साथ-साथ रोज़गार भी प्रदान करता है।
- पोषण सुरक्षा: पशुधन कई प्रकार के उत्पाद प्रदान करते है- दूध और डेयरी उत्पाद, अंडे, माँस आदि, जिनमें अनाज की तुलना में अधिक पोषण होता है। इस प्रकार पशुपालन के माध्यम से समग्र पोषण सुरक्षा भी सुनिश्चित होती है।
- लिंग समानता: पशुपालन लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है। पशुधन उत्पादन में तीन-चौथाई से अधिक श्रमिक मांग महिलाओं द्वारा पूरी की जाती है। पशुधन क्षेत्र में महिलाओं के रोज़गार का पशुओं की देखभाल के लिये कर्मचारियों को काम पर रखा जाता है।
- समावेशी विकास: भूमि की तुलना में पशुधन अधिक न्यायसंगत है। छोटे किसानों के पास देश के आधे से अधिक मवेशी हैं जबकि उनके पास केवल 24% भूमि है।
निष्कर्ष
हालाँकि भारत के पशुधन क्षेत्र में कई चुनौतियाँ हैं- कम उत्पादकता, पशु रोग- जैसे कि पैर और मुँह की बीमारी, वित्त की कमी, मवेशी व्यापार (गोहत्या) के संबंध में सामाजिक-सांस्कृतिक संघर्ष।
किस हद तक पशुधन से संबंधित इन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि प्रौद्योगिकी, संस्थान, नीतियाँ और वित्तीय सहायता इस क्षेत्र की बाधाओं को कैसे दूर करते हैं।
सरकार की पहल, जैसे कि राष्ट्रीय पशुधन मिशन, राष्ट्रीय गोकुल मिशन आदि का क्रियान्वयन उचित तरीके से किया गया तो यह पशुधन क्षेत्र के लिये वांछनीय परिणाम लाएगा।