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राजकोषीय संघवाद को मज़बूत करने के लिये भारत की राजकोषीय संरचना को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता और तरीकों पर चर्चा करें। (250 शब्द)

21 Aug 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण

• भारत में राजकोषीय संघवाद की संरचना की व्याख्या करें और यह समय के साथ कैसे विकसित हुआ।

• राजकोषीय संघवाद में असंतुलन का उल्लेख करते हुए इसमें सुधार लाने की आवश्यकता के बारे में बताइये।

• उन कदमों का उल्लेख कीजिये जिन्हें आगे बढ़ने के तरीके के रूप में उठाया जाना चाहिये।

परिचय

संघवाद भारतीय संविधान की मूल संरचना (एस. आर. बोम्मई केस) है। भारत का संघवाद का विषम मॉडल केंद्र-राज्य के वित्तीय संबंधों को भी प्रभावित करता है। केंद्र-राज्य के वित्तीय संबंध गतिशील हैं और लगातार बदल रहे हैं, जैसा कि 14वें वित्त आयोग की सिफारिश पर राज्यों को 42% धनराशि सौंपना, योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग बनाना और GST की शुरुआत के रूप में देखा जा सकता है।

ढाँचा/संरचना

हालाँकि भारत में राजकोषीय संरचना में क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर दोनों असंतुलन हैं:

  • विकास दर में अंतर तथा राज्यों के विकास की स्थिति में सामाजिक या बुनियादी ढाँचे की पूंजी के संदर्भ में उनके विकास के विभिन्न स्तरों के कारण क्षैतिज असंतुलन पैदा होता है।
  • संविधान द्वारा निर्धारित उनकी व्यय ज़िम्मेदारियों के संबंध में सरकार के विभिन्न स्तरों के पास निहित कराधान की शक्तियों में राजकोषीय विषमता के कारण ऊर्ध्वाधर असंतुलन पैदा होता है।
    • उदाहरण के लिये: केंद्र सरकार के पास कराधान के कहीं अधिक अधिकार हैं (जैसे-आयकर, व्यक्तिगत या कॉर्पोरेट, वस्तुओं और सेवाओं पर कर (CGST), विदेशी लेन-देन पर कर आदि। यह कुल कराधान का 60% है।
    • केंद्र सरकार कुल सार्वजनिक व्यय पर केवल 40% खर्च करती है, जबकि इसका खर्च रक्षा, आदि जैसी संवैधानिक रूप से अनिवार्य ज़िम्मेदारी निभाने के लिये है।
    • निर्वाचित स्थानीय निकायों और पंचायतों जैसे तीसरे स्तर पर इस तरह का ऊर्ध्वाधर असंतुलन और अधिक देखने को मिलता है।

सुधार जो किये जा सकते हैं

भारत के राजकोषीय संघवाद से ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज असंतुलन को दूर करने के लिये वित्त आयोग, नीति आयोग, GST और विकेंद्रीकरण जैसे चार स्तंभों के इर्दगिर्द इसकी पुनर्संरचना करने की आवश्यकता है।

  • वित्त आयोग को बुनियादी सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं और पूंजी घाटे के प्रावधान से निपटने के दोहरे कार्य से राहत मिलनी चाहिये। इसे बुनियादी सार्वजनिक वस्तुओं के असंतुलन को हटाने पर ध्यान केंद्रित करने तक ही सीमित किया जाना चाहिये।
  • नीति आयोग:
    • बुनियादी ढाँचे के क्षेत्रों में विकास के असंतुलन को कम करके राज्यों के बीच क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने के लिये नीति आयोग को GDP का 1% से 2% दिया जाना चाहिये।
    • नीति आयोग के पास राजस्व और पूंजी अनुदान के उपयोग की प्रभावकारिता की निगरानी और मूल्यांकन के लिये एक स्वतंत्र मूल्यांकन कार्यालय होना चाहिये।
  • विकेंद्रीकरण नए राजकोषीय संघवाद के तीसरे स्तंभ के रूप में कार्य कर सकता है:
    • शहरी स्थानीय निकायों/पंचायती राज संस्थाओं के लिये एक समेकित निधि बनाकर स्थानीय वित्त को मज़बूत करना चाहिये।
    • केंद्र और राज्यों को अपने केंद्रीय GST (CGST) और राज्य GST (SGST) संग्रह में समान अनुपात में योगदान करना चाहिये और धन को तीसरे स्तर की समेकित निधि में भेजना चाहिये।
    • राज्य वित्त आयोगों को केंद्रीय वित्त आयोग के समान दर्जा दिया जाना चाहिये और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के तीन महत्त्वपूर्ण घटकों- धन, कार्य और क्रियान्वयन को ठीक से लागू किया जाना चाहिये।
  • वस्तु और सेवा कर की संरचना को सरल बनाया जाना चाहिये।
  • एकल दर GST: विलासिता की वस्तुओं पर उपयुक्त अधिभार के साथ, निर्यात पर शून्य दर और एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (IGST) और ई-वे बिल में सुधार।
  • पारदर्शिता: GST परिषद को अपने स्वयं के सचिवालय और स्वतंत्र विशेषज्ञों को साथ लेकर पारदर्शी तरीके से सुधार करना चाहिये।

निष्कर्ष

कहा जा सकता है कि 'टीम इंडिया' की भावना में प्रतिस्पर्द्धी सहकारी संघवाद का विचार सुशासन प्राप्त करने और स्थानीय आकांक्षाओं को पूरा करने की कुंजी है।