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20 Aug 2019
सामान्य अध्ययन पेपर 3
अर्थव्यवस्था
भारत में आर्थिक निर्णय लेना और योजना बनाना सरकार पर कम और बाज़ार की शक्तियों पर अधिक निर्भर करता है। भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसके परिणामों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
• भारत की आर्थिक निर्णयन प्रकिया में ‘केंद्र द्वारा निर्धारित अर्थव्यवस्था’ से ‘खुली बाज़ार अर्थव्यवस्था’ के रूप में आए बदलाव का परिचय दीजिये।
• वर्तमान में आर्थिक निर्णयन प्रकिया का उल्लेख कीजिये।
• वर्तमान मॉडल के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव बताइये।
• भूमंडलीकृत विश्व में आर्थिक श्रेष्ठता हासिल करने के लिये भारत के दृष्टिकोण को उल्लेखित कीजिये।
परिचय:
वर्ष 1951 में भारत ने योजनाबद्ध आर्थिक विकास के मॉडल को अपनाया, इसमें सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र ने आर्थिक निर्णयन में एक प्रमुख भूमिका निभाई। हालाँकि कमज़ोर कार्यान्वयन के कारण यह मॉडल गरीबी उन्मूलन और बुनियादी ज़रूरतों के उद्देश्यों को पूरा करने में विफल रहा। इसने भारत को सीमित सरकारी हस्तक्षेप के साथ खुले बाज़ार की ताकतों के आधार पर मिश्रित मॉडल अपनाने के लिये प्रेरित किया।
स्वरूप/ढाँचा:
वर्तमान में नीति अयोग, आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति, वित्त एवं वाणिज्य मंत्रालय जैसी संस्थाएँ आर्थिक निर्णयन में प्रमुख भूमिका निभाती हैं। लेकिन ये निर्णय मुख्य रूप से निजी क्षेत्र के अभिकर्त्ताओं के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा और नवाचार को बढ़ावा देने के लिये बाज़ार की शक्तियों पर निर्भर होते हैं। वर्तमान मॉडल को अपनाने के कुछ प्रमुख प्रभाव हैं:
सकारात्मक प्रभाव:
- पूंजी का मुक्त प्रवाह: खुले बाज़ार की नीति विदेशी और घरेलू निवेशों को आकर्षित करती है, जो उच्च विकास दर के लिये आवश्यक आकर्षक परियोजनाओं का आधार बनते हैं।
- शेयर बाज़ार का प्रदर्शन: स्थिर बाज़ार के आश्वासन के साथ अनुकूल वातावरण के कारण कॉर्पोरेट प्रतिभूतियों के व्यापार में वृद्धि। उदाहरण के लिये: भारत में म्यूचुअल फंड और बीमा क्षेत्र में वृद्धि होना।
- राजनीतिक जोखिम में कमी: विवादों को निपटाने के लिए एक मजबूत कानूनी आधार तैयार करने और 'ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ को बढ़ावा देने के लिये उचित और प्रवर्तनीय कानून बनाने के सरकार के इरादे से निवेशकों का विश्वास बढ़ता है।
- बेहतर तकनीक: खुले और प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार प्रतिस्पर्द्धा तथा नवाचार को बढ़ावा देते हैं। यह तीव्र प्रौद्योगिकी अनुकूलन में सहायता करता है। उदाहरण के लिये; डिजिटल लेन-देन में Paytm, Phonepe जैसे निजी अभिकर्त्ताओं की भूमिका, दूरसंचार क्षेत्र में भारत की सफलता, आदि।
नकारात्मक प्रभाव:
- समाजवादी सिद्धांतों के विरुद्ध: बाज़ारी शक्तियाँ पूंजीवादी वर्ग के मुनाफे को बढ़ाने का काम करती हैं। अभी भी लाखों लोग गरीबी के शिकार हैं जिनके उत्थान के लिये सरकार के सहयोग की ज़रूरत है।
- उदाहरण के लिये: WTO मानदंड सरकार के खाद्य वितरण और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों पर बाध्यता आरोपित करने के साथ-साथ तरह-तरह के प्रतिबंध लगाते हैं।
- वैश्विक वित्तीय संकट के जोखिम: हाइपर-ग्लोबलाइज़्ड विश्व में वैश्विक बाज़ार में आने-वाले उतार-चढ़ाव के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याएँ भारतीय अर्थव्यवस्था को अस्थिर कर देती हैं। उदाहरण के लिये; अस्थिर कच्चे तेल के बाज़ार के कारण ईंधन की कीमतों को नियंत्रित करने में सरकार की अक्षमता।
- घरेलू विनिर्माण के लिये खतरा: बेहतर प्रौद्योगिकी और बड़े पूंजी आधार के साथ बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विरुद्ध अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धा भारत के MSME क्षेत्र के लिये हानिकारक साबित होती है जो कि भारत में कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा रोज़गार देने वाला क्षेत्र है। इसलिये ऐसे मॉडल से लोगों की आजीविका सीधे प्रभावित होती है।
- असमानता और बेरोज़गारी: अकुशल लोगों को नई और तीव्र प्रौद्योगिकी के साथ तालमेल बैठाने में कठिनाई होती है, जिसके नकारात्मक परिणाम सामने आते हैं। उदाहरण के लिये: परिवहन क्षेत्र में गिग-इकोनॉमी मॉडल जैसे- Ola और Uber के आगमन से न केवल भारतीय पारंपरिक कैब ड्राइवरों के लिये चुनौती उत्पन्न हुई है, बल्कि ऑटोमोबाइल विनिर्माण क्षेत्र भी प्रभावित हुआ है।
निष्कर्ष:
'मिनिमम गवर्नमेंट मैक्सिमम गवर्नेंस' के एक आदर्श वाक्य के साथ सरकार को निर्बाध विकास और प्रतिस्पर्द्धा के लिये एक नियामक के बजाय एक सक्षम एवं समन्वयक के रूप में कार्य करना चाहिये। वर्ष 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य केवल निरंतर आर्थिक विकास द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।
हालाँकि बाज़ारी शक्तियों पर अत्यधिक निर्भरता भारत की समाजवादी साख के लिये हानिकारक हो सकती है। इसलिये जब भी ज़रूरत हो इसमें हस्तक्षेप किया जाना चाहिये। उदाहरण के लिये: घरेलू व्यापारियों और खुदरा विक्रेताओं का समर्थन करने के लिये लाए गए नए ई-कॉमर्स नियम, चिकित्सा उपकरणों की कीमतों को नियंत्रित करना, सामाजिक गतिविधियों में निजी अभिकर्त्ताओं को शामिल करने के लिये कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व मानदंड, आदि सही दिशा में उठाए गए कदम हैं।