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नीति आयोग ने सुझाव दिया है कि देश में 40% व्यक्तिगत वाहनों और सार्वजनिक परिवहन को वर्ष 2030 तक पूरी तरह से बिजली से चलना चाहिये। इस संदर्भ में चिंताओं और चुनौतियों पर चर्चा करें। (25/06)

20 Aug 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

• परिचय में EV गतिशीलता कार्यक्रम शुरू करने के उद्देश्य के बारे में लिखिये।

• इससे जुड़ी चुनौतियों और चिंताओं का उल्लेख कीजिये।

• नीति को लागू करने के लिये सही दृष्टिकोण का सुझाव देकर निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

भारत का इलेक्ट्रिक वाहन (India’s Electric Vehicle-EV) गतिशीलता कार्यक्रम तेल आयात और कार्बन उत्सर्जन को कम करने की रणनीति के अनुरूप तैयार किया गया है। जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भारत को अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिये पर्यावरणीय स्थिरता हेतु वैकल्पिक तरीकों को अपनाने की आवश्यकता है। उपयोग में आने वाले सभी दोपहिया वाहनों का विद्युतीकरण करके, भारत कुल परिवहन उत्सर्जन में लगभग 15% तथा वायु प्रदूषण के संदर्भ में लगभग 30% पार्टिकुलेट मैटर्स के उत्सर्जन को कम कर सकता है।

स्वरूप/ढाँचा:

हालाँकि वर्ष 2030 तक 40% EVs के लक्ष्य को प्राप्त करने में कुछ चिंताएँ और चुनौतियाँ भी शामिल हैं।

चिंताएँ:

  • कुल कार्बन तटस्थता: जैसा कि अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी द्वारा चेतावनी दी गई है, इलेक्ट्रिक वाहनों के कारण कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि होगी क्योंकि भारत कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों पर निर्भर है, अतः यह एक गंभीर चिंता का विषय है।
  • इसके अलावा लिथियम-आयन बैटरी के सुरक्षित निपटान से संबंधित पक्ष भी चिंता का विषय बना हुआ हैं।
  • ऑटोमोबाइल क्षेत्र का विघटन: दो पहिया और चार पहिया वाहनों की बिक्री में गिरावट आने से ऑटोमोबाइल सेक्टर का विकास प्रभावित हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप बहुत-से लोगों को नौकरी छुटने जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है। इसलिये इस तरह के एक मौलिक बदलाव के लिये चरणबद्ध तरीके से योजना बनाने और उसका कार्यान्वयन किये जाने की आवश्यकता है।
  • मांग-आपूर्ति में अंतर: वर्ष 2030 तक भारत में सार्वजनिक परिवहन के दोगुना होने की उम्मीद है। ऐसे में एक सक्षम इलेक्ट्रॉनिक वाहन परिवेश की आवश्यकता है जो बैटरी और वाहनों के घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करे।

चुनौतियाँ:

  • चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर (Charging infrastructure): इतने कम समय में इतने बड़े पैमाने पर चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना एक कठिन कार्य है। इसके अलावा लिथियम आयन बैटरी को चार्ज होने में भी अधिक समय लगता है, जिसके परिणामस्वरूप सड़कों पर यातायात जाम होने या अधिक भीड़ की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
  • बैटरी की उपलब्धता: भारत में लिथियम आयन विनिर्माण इकाइयों की नामौजूदगी आयात निर्भरता में वृद्धि करती है। इसके अलावा दुर्लभ प्राकृतिक खनिज संसाधनों (लिथियम और कोबाल्ट) के अभाव के कारण भारत को पूरी तरह से आयात पर निर्भर रहना पड़ेगा, विशेषकर चीन से होने वाले आयात पर।
  • सामर्थ्य (Affordability): पेट्रोल वाहनों की तुलना में इलेक्ट्रॉनिक वाहनों के (अपनी उच्च लागत के कारण) बाज़ार में प्रवेश करने की उम्मीद काफी कम है।
  • स्थानीयकरण (Localization): घरेलू कंपनियाँ FAME II कार्यक्रम के तहत प्रोत्साहन और सब्सिडी का लाभ उठाने में असमर्थ हैं, इसके लिये कंपनियों को 50% से अधिक स्थानीय (यानी स्थानीय बाज़ार के लिये विशिष्ट उत्पाद या सेवा को अपनाना) वाले उत्पादों की आवश्यकता होती है।

निष्कर्ष:

इसलिये EV कार्यक्रम को लागू करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण एवं गंभीर विश्लेषण और चरण-दर-चरण तरीके से इसे लागू करने संबंधी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये आवश्यक परिवेश को धीरे-धीरे और व्यवस्थित रूप से विकसित करने की दिशा में कार्य किया जाना चाहिये। नीति निर्माताओं को नौकरी छूटने से लेकर विनिर्माण और विपणन चुनौतियों जैसे सभी कारकों पर विचार करना चाहिये। बैटरी प्रौद्योगिकी को सस्ता और टिकाऊ बनाने के लिये मुख्य रूप से अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में निवेश करके वैकल्पिक मॉडल का अनुसरण किया जाना चाहिये।