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तापीय व्युत्क्रमण का आशय स्पष्ट कीजिये तथा इसकी उत्पत्ति के लिये आदर्श दशाओं की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

17 Aug 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

प्रश्न विच्छेद

• तापीय व्युत्क्रमण तथा उसकी उत्पत्ति के लिये आदर्श दशाएँ बताएँ।

हल करने का दृष्टिकोण

• तापीय व्युत्क्रमण को स्पष्ट करें।

• इसकी उत्पत्ति के लिये आदर्श दशाओं की चर्चा करें।


सामान्यत: ऊँचाई बढ़ने पर तापमान में गिरावट आती है, जिसे सामान्य ह्रास दर कहते हैं। कुछ मौसमी दशाओं में सामान्य ह्रास दर उलट जाती है अर्थात ऊँचाई बढ़ने पर तापमान में वृद्धि होती है तो इसे ही तापीय व्युत्क्रमण या प्रतिलोमन कहते हैं।
तापमान व्युत्क्रमण के लिये आदर्श दशाएँ निम्नलिखित हैं-

  • जाड़े की लंबी रात- ऐसी दशा में तीव्र पार्थिव विकिरण होता है जिससे धरातल के निकट की वायु ऊपर की वायु से अधिक ठंडी हो जाती है तथा तापीय विलोमता की दशा उत्पन्न हो जाती है।
  • स्वच्छ अथवा मेघ विहीन आकाश- मेघ पार्थिव विकिरण के रास्ते में एक अवरोधक का कार्य करता है। मेघ विहीन आकाश होने से पृथ्वी पार्थिव विकिरण द्वारा तीव्र गति से ठंडी होती है, जबकि ऊपर की हवा अपेक्षाकृत गर्म होती है।
  • शांत व शुष्क वायु- शुष्क वायु की मौजूदगी में पृथ्वी द्वारा छोड़ी गई ऊष्मा आसानी से धरातल से दूर चली जाती है। वायु के शांत होने से आस-पास के क्षेत्रों से ऊष्मा का आदान-प्रदान नहीं होता है, जिससे तापीय व्युत्क्रमण की दशा उत्पन्न होती है।
  • वायु अपवाह- अंतरपर्वतीय घाटियों में वायु अपवाह के कारण पर्वतों की ठंडी हवा पर्वतीय ढलानों के सहारे घाटी की तली में उतर आती है और गर्म हवा के नीचे एकत्र हो जाती है, जिससे तापीय व्युत्क्रमण उत्पन्न होता है।

वाताग्र की अवस्था में ठंडी वायु के ऊपर गर्म वायु के आरोहित होने से तापीय व्युत्क्रमण होता है।