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  • 17 Aug 2019 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य

    ‘महाभोज’ में समकालीन दलगत राजनीति का जन-विरोधी चरित्र विश्वसनीय तरीके से उभारा गया है- इस कथन का परीक्षण कीजिये।

    राजनीति में व्याप्त विकृति और विद्रूपता ही ‘महाभोज’ की कथावस्तु का केंद्रीय तत्त्व है। इस उपन्यास में, लेखिका ने दलगत राजनीति को बेनकाब कर इसके वास्तविक चरित्र का उद्घाटन किया है। उन्होंने लोकतंत्र के भीड़तंत्र में बदलने की पूरी प्रक्रिया का प्रामाणिक अंकन तो किया ही है, साथ ही यह भी दिखाया है कि किस प्रकार जनता को सशक्त करने के उद्देश्य से अपनाई गई राजनीतिक व्यवस्था जनता के शोषण का कारण बनती है।

    महाभोज में दलगत राजनीति के जन-विरोधी चरित्र का पहला लक्षण संवेदनहीनता के रूप में दिखाई पड़ता है। बिसू की मौत को अवसर की तरह देखना और चुनाव जीतने के लिए हिंसा का सहारा लेना इस संवेदनहीनता के स्पष्ट प्रमाण हैं।

    सिद्धांत: राजनीति में व्यक्तिगत हित के लिए कोई स्थान नहीं होता, और सामाजिक हित ही सर्वोपरि होता है। किंतु ‘महाभोज’ सैद्धांतिक नहीं बल्कि व्यावहारिक जीवन पर आधारित उपन्यास है और यहाँ राजनीति अपने असली रूप- स्वार्थ सिद्धि के उपकरण के रूप में दिखाई गई है। राव तथा चौधरी ऐसे राजनेताओं के प्रतीक हैं जिनकी कोई विचारधारा नहीं है, उन्हें सिर्प सत्ता हासिल करने से मतलब है।

    इसके अलावा, राजनीति का जाति पर आधारित होना, अपराधियों को संरक्षण देना, प्रशासनिक प्रणाली पर नियंत्रण स्थापित करना और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना भी प्रकारांतर से दलगत राजनीति के जन-विरोधी चरित्र को स्पष्ट करता है।

    इस चर्चा के आधार पर नि:संदेह यह कहा जा सकता है कि इस उपन्यास में राजनीति के असली स्वरूप को पूरी बेबाकी के साथ उद्घाटित किया गया है।

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