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परीक्षण कीजिये कि कैसे दुनिया भर के अन्य संविधानों का मिश्रण होने के बावजूद भारतीय संविधान अपने आप में अद्वितीय है। (250 शब्द)

17 Aug 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण

• संविधान की आत्मा के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।

• संविधान के अनन्य प्रावधानों का उल्लेख कीजिये।

• यह उल्लेख करते हुए निष्कर्ष लिखिये कि यह कैसे अन्य लोकतंत्रों के लिये एक प्रेरणा है।

परिचय:

भारतीय संविधान इसकी विषयवस्तु और भावना के संदर्भ में अद्वितीय है। यद्यपि यह दुनिया के लगभग हर संविधान से उधार लिया गया है। भारत के संविधान में कई प्रमुख विशेषताएँ हैं जो इसे अन्य देशों के संविधान से अलग करती है।

ढाँचा /संरचना: 

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं :

  • सबसे लंबा लिखित संविधान: यह एक व्यापक, जटिल और विस्तृत दस्तावेज है, जिसमें स्पष्ट रूप से 12 अनुसूचियाँ, 25 भाग और 448 अनुच्छेद हैं जिनमें मूल अधिकारों, कर्तव्यों और अन्य प्रावधानों का उल्लेख है।
  • कठोरता और लचीलेपन का मिश्रण: कुछ संवैधानिक संशोधनों को अनुच्छेद 368 के अनुसार विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है, जबकि कुछ प्रावधानों को संसद के दोनों सदनों के साधारण बहुमत द्वारा संशोधित किया जा सकता है।
  • एकात्मक पूर्वाग्रह के साथ संघीय प्रणाली: संविधान सरकार की एक संघीय प्रणाली के साथ-साथ एकल नागरिकता, अखिल भारतीय सेवाएँ आदि जैसे कई एकात्मक प्रावधान भी करता है।
    • भारतीय मॉडल सहकारी संघवाद पर आधारित है। संघवाद के पीछे मूल विचार यह है कि यह सुशासन प्राप्त करने के लिये एक राजनीतिक विरोधाभास है जहाँ इकाइयाँ एकरूपता के बिना एकता की इच्छा रखती हैं।
    • भाग XXI में अनुच्छेद 371 से 371-J में ग्यारह राज्यों के लिये विशेष प्रावधान किये गए हैं ताकि  इन राज्यों के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा किया जा सके।
  • आपातकालीन उपबंध: भारतीय संविधान में तीन प्रकार की आपात स्थितियों के लिये विस्तृत प्रावधान हैं: राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352), राज्य आपातकाल (अनुच्छेद 356 और अनुच्छेद 365), और वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360)।
    • यह  बिना किसी संशोधन के संघवादी ढाँचे को एकात्मक ढाँचे में परिवर्तित कर देता है।
  • संसदीय प्रणाली: संविधान सरकार के संसदीय स्वरूप का प्रावधान करता है जहाँ संसद ब्रिटिश संसद के विपरीत संप्रभु निकाय नहीं है।
    • भारत में न तो संसदीय संप्रभुता है और न ही न्यायिक वर्चस्व है, बल्कि यहाँ संवैधानिक सर्वोच्चता है जिसके चलते न्यायपालिका और सरकार के विधायी अंगों के बीच जाँच एवं संतुलन की एक प्रणाली है।
  • राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत: संविधान के भाग- IV में कुछ सिद्धांतों को वर्गीकृत किया गया है-समाजवादी, गांधीवादी और उदारवादी-बुद्धिवादी।
    • भारतीय संविधान न केवल राजनीतिक लोकतंत्र प्रदान करता है बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक न्याय को भी स्थापित करने का प्रयास करता है।
    • विश्व के किसी और लोकतंत्र ने कल्याणकारी राज्य को अपना संवैधानिक लक्ष्य घोषित नहीं किया है।
  • पंथनिरपेक्षता: भारतीय संविधान ने पंथनिरपेक्षता के सकारात्मक सिद्धांत को स्वीकार किया है जिसके अंतर्गत सभी धर्मों को समान सम्मान व सुरक्षा प्रदान की जाती है।
    • यह धर्मनिरपेक्षता के पश्चिमी मॉडल के विपरीत है जो धर्म और राज्य के बीच पूर्ण अलगाव को दर्शाता है।

निष्कर्ष:

इस प्रकार भारतीय संविधान एक क्रांतिकारी दस्तावेज है जिसका उद्देश्य एक उच्च पारंपरिक समाज को एक आधुनिक समाज में बदलना है। यह एक गतिशील, जीवित दस्तावेज है जो लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये डिज़ाइन किया गया है और तीसरी दुनिया के उभरते हुए लोकतंत्रों के लिये एक प्रेरणा है।