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विभिन्न स्तरों पर उन विफलताओं की जाँच कीजिये जिनके चलते बिहार में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के कारण 100 से अधिक बच्चों की मौत हो गई। (250 शब्द)

17 Aug 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण :

• AES और उसके कारणों का संक्षिप्त विवरण दीजिये।

• कई चरणों में होने वाली चूक पर चर्चा कीजिये जो कि महामारी के लिये ज़िम्मेदार हैं।

• इस प्रकार की घटना को भविष्य में घटित होने से रोकने के लिये सुझाव दीजिये।

परिचय:

बिहार के मुज़फ्फरपुर ज़िले में 100 से अधिक बच्चों की जून 2019 में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) से मौत हो गई। शुरुआत में यह माना जा रहा था कि ये सभी मौत लीची फल खाने के कारण हुईं है, हाइपोग्लाइसीमिया (रक्त शर्करा के स्तर में अचानक गिरावट), गर्मी और जागरूकता की कमी के कारण यह और फैल गया। हालाँकि बाद में यह स्वीकार किया गया कि इन मौतों के दो सबसे महत्त्वपूर्ण कारण कुपोषण और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs) की अपर्याप्तता रहे।

ढाँचा/संरचना: 

इस प्रकार की घटनाओं के लिये ज़िम्मेदार कारक:

  • AES से जूझ रहे रोगियों के लिये स्वास्थ्य सेवा का पहला बिंदु प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होते हैं, इनकी अपर्याप्तता इन मौतों के लिये प्रमुख उत्तरदायी कारक बनी।
    • इनमें से अधिकांश में वायरोलॉजी लैब (virology lab) या पर्याप्त संख्या में बाल चिकित्सा बेड (paediatric beds) और रक्त शर्करा के स्तर की निगरानी के लिये ग्लूकोमीटर (glucometer) नहीं हैं।
  • AES के इलाज के लिये मानक संचालन प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता है। जून से सितंबर तक के  मौसम में स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं, सहायक नर्सों, मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं और आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं द्वारा JE/AES के लक्षणों की जाँच के लिये नियमित रूप से बच्चों का परीक्षण किया जाना चाहिये, परंतु इन नियमों का पालन नहीं किया जाता है।
  • AES-प्रवण क्षेत्रों के लिये विशेष पोषण कार्यक्रम के संदर्भ में राज्य सरकार की तैयारियों का अभाव (क्योंकि अल्पपोषित बच्चे इस बीमारी से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं) एक अन्य प्रमुख कारक है।
  • अपर्याप्त मशीनरी: महामारी स्तर की स्थिति से निपटने के लिये चिकित्सकों, बिस्तरों, गहन देखभाल इकाइयों, चिकित्सा पेशेवरों की अनुपलब्धता।
  • चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसन्धान और विकास में निवेश की कमी के चलते ऐसी बीमारियों के लिए टीकों और उचित उपचार रणनीति का विकास नहीं हो पाता।जैसा कि इस क्षेत्र में पूर्ववर्ती वर्षों में इसी तरह का प्रकोप देखा गया था।

आगे की राह:

इस प्रकार बीमारी का प्रकोप केवल प्राकृतिक दुर्घटना के कारण नहीं होता है बल्कि सरकार की असफलता भी इसके लिये ज़िम्मेदार होती है। भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की रोकथाम के लिये निम्न कदम उठाए जा सकते हैं:

  • रोग के शीघ्र निदान और उपचार के लिये AES की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र की जाँच और निगरानी।
    • यदि लक्षणों की शुरुआत के 4 घंटे के भीतर बच्चे को डेक्सट्रोज़ (Dextrose) दिया जाता है तो AES को अंतर्विष्ट किया जा सकता है।
    • स्वर्णिम घंटों के भीतर 10% डेक्सट्रोज़, बीमारी से बचने के अवसरों में वृद्धि कर सकता है।
  • AES मामलों से निपटने के लिये पूर्व-उपाय के रूप में जागरूकता अभियान और लक्षण प्रबंधन को अपनाया जाना चाहिये।
    • राज्य सरकारों को उत्तर प्रदेश द्वारा उठाई गई ‘दस्तक’ पहल (जापानी इंसेफेलाइटिस के इलाज के लिये) से सीख लेनी चाहिये जिसके तहत स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास और प्राथमिक शिक्षा अधिकारी एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं। इसका उद्देश्य लक्षण प्रबंधन के माध्यम से उपचार के लिये अस्पतालों में स्वच्छ पेयजल, स्वच्छता, टीकाकरण और शुरुआती रेफरल को बढ़ावा देना है।
  • संरचनागत और संस्थागत ढाँचा: PHCs को उन सभी आवश्यक उपकरणों और सुविधाओं से लैस होना चाहिये जो AES रोगियों के निदान एवं उपचार के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • AES प्रवण क्षेत्रों में चिकित्सा अनुसंधान और अध्ययन जो बीमारी के कारणों एवं लक्षणों के बीच संबंध स्थापित करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, उपचार रणनीति तैयार करने हेतु ध्यान में रखा जाना चाहिये।