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अशोक की अहिंसात्मक नीति मौर्यवंश के पतन का प्रमुख कारण थी। परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)

17 Aug 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

प्रश्न विच्छेद

• कथन मौर्यवंश के पतन के लिये अशोक की अहिंसात्मक नीति को प्रमुख कारण मानने के पक्ष एवं विपक्ष से संबंधित है।

हल करने का दृष्टिकोण

•अशोक एवं उसकी अहिंसात्मक नीति के बारे में संक्षिप्त उल्लेख के साथ परिचय लिखिये।

• मौर्यवंश के पतन के लिये अशोक की अहिंसात्मक नीति को प्रमुख कारण मानने के पक्ष व विपक्ष का उल्लेख करते हुए उत्तर लिखिये।

• उचित निष्कर्ष लिखिये।


अशोक, चंद्रगुप्त मौर्य एवं बिन्दुसार की तरह ही मौर्य राजवंश का एक महान शासक हुआ जिसने साम्राज्य को इसकी पराकाष्ठा पर पहुँचाने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। कलिंग युद्ध के पश्चात् शांतिकालीन परिस्थितियों के अनुरूप अहिंसावादी नीति की व्यावहारिकता का अनुभव किया गया। इतिहास में इस तरह की नीति मिस्र में अखनातन द्वारा अपनाई गई थी लेकिन यह स्पष्ट है कि अशोक को अतीत के अपने इस मिस्र के समचिन्तक की जानकारी नहीं थी।

मौर्यवंश के पतन के लिये अशोक की अहिंसात्मक नीति को प्रमुख कारण मानने के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क निम्नलिखित हैं-

  • कलिंग युद्ध के पश्चात अशोक द्वारा कोई युद्ध नहीं किया गया, परिणामस्वरूप साम्राज्य की सेना का सामरिक उत्साह ठंडा पड़ गया था। 
  • अशोक ने युद्ध विजय की नीति को त्यागकर धम्म विजय की नीति अपना ली एवं अपने पुत्रों को भी रक्तपात न करने का उपदेश दिया फलस्वरूप, साम्राज्य की शक्ति क्षीण हुई।
  • अशोक के उत्तराधिकारी भेरिघोष की बजाय धम्मघोष से अधिक परिचित थे, अत: वे देश की एकता को विघटित होने से बचाने में असफल रहे।
  • अशोक की शांति एवं अहिंसा पर आधारित धार्मिक नीति से ब्राह्मणों के विशेषाधिकारों को ठेस पहुँची। इसकी ब्राह्मणों में तीव्र प्रतिक्रया हुई जिसकी चरम परिणति पुष्यमित्र के विरोध में दृष्टिगोचर होती है।
  • अशोक की नीति में कट्टरता नहीं थी, वह मानवीय स्वभाव की जटिलता से अच्छी तरह परिचित था इसलिये उसने शांतिप्रियता एवं युद्ध त्याग की नीति को सीमा के अंदर नियंत्रित किया।
  • तेरहवें शिलालेख में अशोक की आटविक जनजातियों को चेतावनी एक शक्तिशाली राजा की चेतावनी है जिसे अपनी सैन्य क्षमता पर पूर्ण विश्वास था।
  • यज्ञादि अवसरों पर पशु बलि का ब्राह्मण ग्रंथों द्वारा स्वयं विरोध एवं पुष्यमित्र को साम्राज्य का सेनापति नियुक्त करना दर्शाता है कि अशोक की नीति किसी विशेष धर्म के विरुद्ध नहीं थी और पुष्यमित्र की राज्यक्रांति का कारण उसकी अपनी महत्त्वाकांक्षा थी।

सम्राट अशोक द्वारा कलिंग विजय के बाद ऐसा कोई विशेष क्षेत्र दिखाई नहीं देता है जिसे विजित करना अपरिहार्य समझा जाए। अत: अशोक की अहिंसावादी नीति तत्कालीन समय में साम्राज्यिक आवश्यकताओं के अनुरूप व्यावहारिक नीति थी। साम्राज्य के विघटन के लिये केंद्र में योग्य शासकों का अभाव, दानशीलता, दूरस्थ प्रान्तों के शासकों के अत्याचार जैसे कारक ज़्यादा वास्तविक नज़र आते हैं। वंशानुगत शासन की विशेषता होती है कि एक के बाद दूसरा योग्य शासक आता रहे जिसका अभाव अशोक के बाद स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।