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  • 15 Aug 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    अक्षम न्यायिक प्रशासन से न केवल सामाजिक, बल्कि आर्थिक कीमत भी चुकानी पड़ती है। क्या आप सहमत हैं? अपने उत्तर की तर्कों सहित पुष्टि कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण

    लोकतंत्र में न्यायपालिका के महत्त्व के बारे में लिखिये।

    अक्षम न्याय प्रतिपादन के सामाजिक और आर्थिक प्रभावों के बारे में लिखिये।

    इस स्थिति में सुधार हेतु अपनी राय दीजिये।

    प्रभावी न्यायिक प्रणाली की आवश्यकता और इसके लिये क्या दृष्टिकोण होना चाहिये, उसे भी शामिल कर निष्कर्ष निकालें।

    परिचय

    न्यायपालिका भारतीय लोकतंत्र का प्रमुख आधार स्तंभ है। न्यायपालिका न केवल लोगों के मूलाधिकारों की रक्षक और गारंटीकर्त्ता है, बल्कि यह राष्ट्र की प्रगति में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अतः न्याय के सामाजिक और आर्थिक संवैधानिक सिद्धांत को तभी प्राप्त किया जा सकता है जब कि न्यायपालिका प्रभावी तरीके से कार्य करे।

    ढाँचा /संरचना

    भारतीय न्यायपालिका विकट संकट का सामना कर रही है, जिसके परिणामस्वरूप लंबित मामलों की संख्या बहुत अधिक हो गई है। इस तरह के विलंब के सामाजिक प्रभाव निम्नानुसार हैं:

    • समय पर न्याय उपलब्ध न कराना 'न्याय' से इनकार करने जैसा : मामलों का समयबद्ध निपटारा कानून के शासन को बनाए रखने और न्याय तक पहुँच प्रदान करने के लिये आवश्यक है। मामलों का समय पर निपटारा संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार और स्वतंत्रता की गारंटी का एक हिस्सा है।
    • सामाजिक ढाँचे का क्षरण : एक कमजोर न्यायपालिका का सामाजिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण प्रति व्यक्ति निम्न आय; उच्च गरीबी दर; ख़राब बुनियादी ढाँचा और उच्च अपराध दर जैसी स्थितियां बनती हैं ।
    • मानवाधिकारों पर प्रभाव : जेलों में क्षमता से अधिक कैदी, जहाँ पहले से ही बुनियादी सुविधाओं की कमी है। कुछ मामलों में तो यह क्षमता के 150% से अधिक है जो कि "मानव अधिकारों का गंभीर उल्लंघन" है ।

    न्याय के अक्षम प्रशासन से न केवल सामाजिक, बल्कि आर्थिक कीमत भी चुकानी पड़ती हैं। यह देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है क्योंकि यह अनुमान लगाया गया था कि न्यायिक विलंब की वज़ह से भारत के वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.5% व्यर्थ होता है, जिसका उपयोग हम सामाजिक और आर्थिक विकास में कर सकते हैं।

    न्याय तंत्र की अक्षमता के चलते होने वाली आर्थिक हानियाँ इस प्रकार हैं:

    • यह भारत में नए निवेश को बाधित करती है। निम्न स्तरीय अनुबंध प्रवर्तन जोखिम को बढ़ाता है और रिटर्न (बढ़ी हुई कानूनी लागत) को कम करता है, इस प्रकार पूरे रिटर्न अनुपात को प्रभावित करता है।
    • भारत लगातार वर्ल्ड बैंक के ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस रिपोर्ट इंडेक्स के “अनुबंधों को लागू करना” में ख़राब प्रदर्शन कर रहा है।
      • लंबित मामलों से कॉर्पोरेट भारत के कानूनी खर्चों में बढ़ोतरी होती है। प्रभावी वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्रों की कमी के कारण, बड़े कॉरपोरेट अपने विवादों को हल करने के लिये दुबई और सिंगापुर की मध्यस्थता लेना पसंद करते हैं।
    • निम्न स्तरीय अनुबंध प्रवर्तन तंत्र भी अनौपचारिक और गैर कानूनी समाधान के तरीकों को बल देता है। इससे भ्रष्टाचार बढ़ता है और कानून के शासन को कमज़ोर करने जैसी समस्याएं पैदा होती हैं।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार, मामलों के लंबित रहने से विकास में बाधा, परियोजनाओं का ठप पड़ जाना, कर संग्रह में बाधा आदि से कानूनी लागत बढ़ जाती है , जिससे व्यापार करने की लागत में वृद्धि होती है।

    न्यायिक प्रशासन में सुधार के लिये निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

    • न्यायालयों की संख्या में वृद्धि तथा रिक्त पदों पर नियुक्ति कर न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि।
    • भौतिक ढाँचे/अवसंरचना में सुधार तथा प्रशासनिक लेट-लतीफी को रोकने के लिये प्रक्रियाओं का डिजिटलाइज़ेशन।
    • न्यायालय अपने विवेकाधीन न्याय क्षेत्र के आकार-प्रकार पर विचार कर सकते हैं और जब तक आवश्यक न हो उसे बदलने का प्रयास न करें।
    • उच्च न्यायालयों के मूल और वाणिज्यिक क्षेत्राधिकार को कम करना या हटाना और ऐसे मामलों से निपटने के लिये निचली न्यायपालिका को सक्षम बनाने से भी मामलों का निपटारा तेज़ी से हो सकता है।
    • उच्च न्यायपालिका में विशेषज्ञता के साथ रोस्टर को बढ़ावा देना। उदाहरण के लिये, कराधान हेतु एक विशेष बेंच के गठन के साथ सर्वोच्च न्यायालय के हालिया प्रयोग के बेहतर परिणाम देखने को मिले।

    निष्कर्ष

    पहुँच, सामर्थ्य और त्वरित न्याय एक अच्छे न्यायिक प्रशासन की मूलभूत आवश्यकता है। यह तब तक प्राप्त नहीं किया जा सकता जब तक न्यायिक प्रणाली को ऐसा न बनाया जाए कि लोगों की न्याय तक समयबद्ध और कम खर्च में पहुँच सुनिश्चित हो सके। अतः भारत में न्याय प्रदान करने वाली प्रणाली को मज़बूत और सशक्त बनाने के लिये इसका निरंतर रचनात्मक मूल्यांकन करना महत्त्वपूर्ण है।

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