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मगध उत्थान के प्रथम चरण में मगध की अवस्थिति की प्रमुख भूमिका थी जिसमें इसके शासकों का योगदान किंचित मात्र ही था। इस कथन से आप किस हद तक सहमत हैं? (250 शब्द)

15 Aug 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

प्रश्न विच्छेद

• मगध उत्थान के प्रथम चरण में इसकी अवस्थिति की भूमिका से जुड़ा हुआ है।

• मगध उत्थान के प्रथम चरण में इसके शासकों के योगदान की सीमा से संबंधित है।

हल करने का दृष्टिकोण

• मगध के विषय में संक्षिप्त उल्लेख के साथ परिचय लिखिये।

• मगध उत्थान के प्रथम चरण में इसकी अवस्थिति की महत्ता के संदर्भ में अपना तर्क प्रस्तुत कीजिये।

• मगध उत्थान के प्रथम चरण में इसके शासकों के योगदान के महत्त्व के संदर्भ में अपना तर्क प्रस्तुत कीजिये।

• उचित निष्कर्ष लिखिये।


सोलह महाजनपदों में मगध, कोसल, वत्स और अवंति अधिक शक्तिशाली महाजनपद थे। इनमें भी मगध महाजनपद की अपनी विशिष्ट अवस्थिति थी जिसका लाभ मगध को मिला। लेकिन इतिहास में ऐसे कई दृष्टान्त हैं जिनसे स्पष्ट होता है कि मगध जैसे विशाल साम्राज्यों का उदय बगैर योग्य शासकों के संभव नहीं हो पाया था। 

मगध उत्थान के प्रथम चरण में इसकी अवस्थिति की महत्ता निम्नलिखित रूपों में वर्णित है-

  • लोहे के समृद्ध भण्डार मगध की आरंभिक राजधानी राजगीर से बहुत दूर नहीं थे, अत: लौह युग में मगध की भौगोलिक अवस्थिति बड़ी ही उपयुक्त थी। इससे मगध के शासक प्रभावी हथियारों का निर्माण करवा पाने में सक्षम थे।
  • मगध राज्य मध्य गंगा के मैदान के बीच अवस्थित था। प्रयाग के पश्चिम के प्रदेश की अपेक्षा यह प्रदेश कहीं अधिक उपजाऊ था और यहाँ से जंगल भी साफ हो चुके थे। भारी वर्षा के कारण इस क्षेत्र को बिना सिंचाई के उत्पादक बनाया जा सकता था। फलस्वरूप यहाँ के किसान अधिशेष उपजा सकते थे।
  • नगरों के उत्थान एवं सिक्कों के प्रचलन से भी फायदा मिला। पूर्वोत्तर भारत में वाणिज्य-व्यापार की वृद्धि से बिक्री की वस्तुओं पर चुंगी लगा सकते थे जिससे सेना के खर्च के लिये धन जुटाया जा सकता था।
  • मगध की दोनों ही राजधानियाँ राजगीर एवं पाटलिपुत्र सामरिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण स्थानों पर थीं। राजगीर पाँच पहाड़ियों की  शृंखला से घिरा हुआ था। तत्कालीन समय में तोपों का आविष्कार न होने से राजगीर जैसे दुर्गों को तोड़ना आसान नहीं था।
  • राजधानी पाटलिपुत्र गंगा, गंडक और सोन नदियों के संगम पर थी। जिससे थोड़ी दूर घाघरा नदी भी गंगा से मिलती थी। यहाँ से सभी दिशाओं में संचार संबंध कायम करना आसान था। प्राक-औद्योगिक दिनों में जब यातायात में कठिनाइयाँ थीं तब सेना इन्हीं नदी मार्गों से होकर पूरब, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण दिशाओं में बढ़ती थी।
  • मगध ऐसा पहला राज्य था जिसने अपने पड़ोसियों के विरुद्ध हाथियों का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जो कि पूर्वांचल से इनके पास पहुँचते थे। इनका प्रयोग दुर्गों को भेदने में, सड़कों एवं अन्य यातायात सुविधाओं से रहित प्रदेशों और कछारी क्षेत्रों में बखूबी किया जाता था।

मगध उत्थान के प्रथम चरण में इसके शासकों के योगदान की सीमा निम्नलिखित रूपों में वर्णित है-

  • मगध ने बिम्बिसार के शासनकाल में विशिष्ट स्थान प्राप्त किया। इसके द्वारा शुरू की गई विजय व विस्तार की नीति अशोक के कलिंग विजय के साथ समाप्त हुई। इसने अंग देश पर अधिकार कर इसका शासन पुत्र आजीवक को सौंप दिया। 
  • बिम्बिसार ने वैवाहिक संबंधों के माध्यम से कोसल, वैशाली के लिच्छवि एवं पंजाब के मद्र कुल के साथ बेहतर संबंध कायम किये।
  • अवंति एवं गांधार जैसे राज्यों के साथ विजय एवं कूटनीति के बल पर बिम्बिसार ने ईसा-पूर्व छठी सदी में सबसे शक्तिशाली राज्य कायम कर लिया।
  • अजातशत्रु की विस्तारवादी नीति एवं उसके पुत्र उदयभद्र द्वारा काशी, अंग एवं वज्जियों के मगध में विलय से साम्राज्य काफी विस्तृत हो गया।
  • नन्द राजवंश ने बिम्बिसार एवं अजातशत्रु के द्वारा डाली गई नींव पर प्रथम वृहत् साम्राज्य की स्थापना की।

निष्कर्षत: मगध साम्राज्य के उदय के प्रथम चरण में द्वितीय चरण के समान ही भौगोलिक, आर्थिक इत्यादि कारकों के साथ इसके शासकों का अहम योगदान परिलक्षित होता है। ऐसे साम्राज्यों के उदय में अवस्थिति एवं योग्य शासक एक-दूसरे के पूरक होते हैं जिसकी झलक दोनों ही चरणों में बखूबी देखने को मिलती है।