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14 Aug 2019
सामान्य अध्ययन पेपर 1
भारतीय समाज
भारत की धार्मिक विविधता उसकी शक्ति भी है और दुर्बलता भी। परीक्षण कीजिये। (250शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण
• परिचय में भारत के मूल्यों और धार्मिक विविधता का उल्लेख कीजिये।
• भारत की धार्मिक विविधता कैसे उसकी शक्ति है ,इसका वर्णन कीजिये।
• इसका भी उल्लेख कीजिये कि भारत की धार्मिक विविधता कैसे समस्याएँ पैदा करती है और कैसे इसकी कमज़ोरी सिद्ध हो सकती है।
• यह बताते हुए कि भारत कैसे अपनी धार्मिक विविधता का उपयोग कर अपने संवैधानिक लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है निष्कर्ष दीजिये।
परिचय
सहिष्णुता ,महानगरीयता और बहु-संस्कृतिवाद भारतीय सभ्यता के मूल्य हैं जो भारतीय संस्कृति को विशिष्टता प्रदान करते हैं। हमारे देश में विभिन्न जातियों और धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। दुनिया के 94% हिंदू भारत में रहते हैं, तो यहाँ मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन तथा लोक धर्मों के अनुयायियों की भी पर्याप्त आबादी है। इन सभी को धर्म को मानने की स्वतंत्रता का मूलाधिकार (अनुच्छेद 25-28) देने के साथ साथ भारत ने स्वयं को पंथनिरपेक्ष राज्य भी घोषित किया है।
ढाँचा /संरचना
भारत की धार्मिक विविधता निम्नलिखित तरीके से उसकी शक्ति है:
- यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। ईद, क्रिसमस, दिवाली जैसी विविध परंपराएँ और त्यौहार जीवन जीने का एक अनूठा तरीका प्रदान करते हैं। इस विविधता से समृद्ध संगीत, नृत्य, कला और साहित्य का भी विकास होता है।
- यह दार्शनिक दृष्टिकोणों में भी विविधता प्रदान करता है जो कि कानूनों को सामाजिक मूल्यों की दृष्टि से अधिक स्वीकार्य बनाता है।
- धार्मिक असहिष्णुता के वर्तमान युग में भारत अंतर्राष्ट्रीय समाज के लिये एक आदर्श (मॉडल) माना जा सकता है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम ’का भारतीय मूल्य दुनिया को शांति और समृद्धि की ओर ले जा सकता है।
- धार्मिक विविधता भारत को दुनियाभर में लोगों-से-लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने का अवसर देती है। यह न केवल भारत के व्यापार का विस्तार करने में मदद करती है, बल्कि संकट की स्थितियों में बैकचैनल (छिपी हुई) कूटनीति के रूप में भी कार्य करती है।
हालाँकि धार्मिक विविधता बहुत सी चुनौतियाँ भी उत्पन्न करती है। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- यह साम्प्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा देती है। कुछ व्यक्ति सांप्रदायिक उन्माद फैलाने के लिए भड़काऊ भाषण (हेट स्पीच) का इस्तेमाल करते हैं, जिससे विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच दंगे भड़क सकते हैं तथा तनाव हो सकता है।
- कुछ राष्ट्रविरोधी तत्त्व धर्म का उपयोग युवाओं को कट्टरपंथी बनाने जैसे कार्यों के लिये करते हैं ताकि उन्हें आतंकी गतिविधियों में शामिल किया जा सके।
- विविध धार्मिक प्रथाओं को अपनाना जो देश के बाकी हिस्सों के लिए उपयुक्त नहीं भी हो सकती हैं। यह विभिन्न धार्मिक प्रथाओं को वैध बनाने के लिये समस्याओं का पिटारा खोल सकती है।
- अल्पसंख्यकों के धार्मिक क्रियाकलापों में राज्य का हस्तक्षेप उनकी स्वायत्तता और संवैधानिक सिद्धांतों में उनके विश्वास को ठेस पहुँचा सकता है। इस प्रकार संवैधानिक नैतिकता और धार्मिक नैतिकता के बीच विरोध न्यायपालिका के समक्ष संकट की स्थिति उत्पन्न करता है।
निष्कर्ष
भारत में विभिन्न सांस्कृतिक पहचानों का सबसे जटिल समायोजन दिखाई देता है। धार्मिक विविधता एक वरदान होगी या अभिशाप, यह समाज की परिपक्वता पर निर्भर करता है। यदि भारतीय नागरिक भाईचारे और बंधुत्व के संवैधानिक सिद्धांतों का पालन करते हैं, तभी भारत सही मायने में ‘विविधता में एकता’ और ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ जैसे आदर्शों को हासिल कर सकता है।