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उष्णकटिबंधीय चक्रवातों से आप क्या समझते हैं और ये कैसे बनते हैं? भारत पर इन चक्रवातों के प्रभाव का परीक्षण भी कीजिये। (250 शब्द)

14 Aug 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण

• परिचय में उष्णकटिबंधीय चक्रवात को परिभाषित कीजिये।

• उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के उत्पन्न होने की परिस्थितियों को समझाइये।

• भारत पर पड़ने वाले चक्रवात के प्रभाव का उल्लेख कीजिये।

• शमन और अनुकूलन तकनीकों का महत्त्व बताते हुए निष्कर्ष दीजिये। 

परिचय 

उष्णकटिबंधीय चक्रवात एक तीव्र गोलाकार तूफान है, जिसकी उत्पत्ति गर्म उष्णकटिबंधीय महासागरों में होती है तथा कम वायुमंडलीय दबाव, तेज़ पवनें और भारी वर्षा इसकी विशेषताएँ हैं। इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है: 

  • हिंद महासागर में चक्रवात 
  • अटलांटिक महासागर में हरिकेन
  • पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र और दक्षिण चीन सागर में टाइफून 
  • पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में विली-विलीज़

ढाँचा/संरचना 

निम्नलिखित स्थितियाँ उष्णकटिबंधीय चक्रवाती तूफान की उत्पत्ति और उसके तीव्र होने के लिये उत्तरदायी हैं:

  • 27 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान के साथ समुद्र की विशाल सतह
  • कोरिओलिस बल की मौजूदगी 
  • ऊर्ध्वाधर पवन की गति में कम अंतर
  • पहले से मौजूद एक कमज़ोर-निम्न-दबाव का क्षेत्र या निम्न-स्तर-चक्रवाती परिसंचरण
  • समुद्र तल प्रणाली के ऊपर उच्च विचलन

ये उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की विपरीत दिशा में पूर्व से पश्चिम की ओर चलते हैं और दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की दिशा में चलते हैं।

भारत में चक्रवात 

भारत की भौगोलिक स्थिति इसे उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के लिये और भी अधिक सुभेद्य बनाती है। भारत का पूर्वी तट विशेष रूप से चक्रवात के प्रभावों के उच्च जोखिम वाले क्षेत्र में है। 

  • बंगाल की खाड़ी में उच्च तापमान का होना और नदियों तथा वर्षा से ताज़े पानी का निरंतर होने वाला अंतर्प्रवाह चक्रवात की उत्पत्ति के लिये आदर्श स्थितियाँ पैदा करता है। 
  • उत्तर-पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में टाइफून का शेष रह गया प्रभाव दक्षिण चीन सागर से हिंद महासागर तक पहुँच जाता है।

यह तटीय जीवन और प्राकृतिक वातावरण पर विनाशकारी प्रभाव डालता है, जैसा कि फणि (2019), तितली (2018) और फैलिन (2013) जैसे चक्रवाती तूफानों के दौरान देखा गया।

भारत पर उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के प्रमुख प्रभाव निम्नानुसार हैं:

  • चक्रवात से तटीय क्षेत्रों में जन-धन की भारी क्षति होती है और संपत्ति का नुकसान होता है।
  • मछुआरों की आजीविका का नुकसान और पर्यटन उद्योग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 
  • समुद्री पक्षियों और जीवों को नुकसान होता है। चिल्का झील, जो भारत का सबसे बड़ा तटीय लैगून और बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों का आवास है, वह भी उच्च जोखिम वाले क्षेत्र में है।
  • तटीय क्षेत्र के लोगों के संपूर्ण सामाजिक कल्याण पर प्रभाव डालता है। विद्यालय और अस्पताल बंद रहते हैं, नारियल के बागानों को नुकसान होता है, जिन्हें फिर से बढ़ने में वर्षों लग जाते हैं, इससे हर बार चक्रवात की चपेट में आने वाले किसानों का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।

निष्कर्ष 

  • भारत अपने आपदा शमन और अनुकूलन तकनीकों को लगातार उन्नत कर रहा है। 
  • ओडिशा सरकार ने विश्व बैंक राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना के सहयोग से पीड़ितों के लिये आश्रय स्थल तैयार करने, प्रभावित क्षेत्रों से उन्हें निकालने की योजना बनाने, बचाव अभ्यास आयोजित करने तथा तटबंधों को मजबूत करने जैसी आपदा का सामना करने की तैयारी बढ़ाई है।
  • मिशन ज़ीरो कैज़ुअल्टी ने चक्रवातों के दौरान जन-धन की हानि को काफी कम कर दिया है।
  • अभी भी भारत के पास बेहतर पूर्वानुमान, ट्रैकिंग और चेतावनी प्रणाली के लिये अपनी तकनीक को उन्नत करने की बड़ी क्षमता मौजूद है।
  • तटीय क्षेत्र प्रबंधन नियम 2018 के तहत नए दिशा-निर्देशों ने समुद्री तटों की ओर बुनियादी कार्यों के विस्तार की अनुमति दी है। लेकिन यह चक्रवात जैसे खतरों के लिये बहुत बड़ा जोखिम है और इस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

अतः बुनियादी विकास के बजाय पारिस्थितिक स्थिरता और आपदा न्यूनीकरण को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। सतत विकास ही आगे की राह होनी चाहिये।