कथा के धरातल पर ऐतिहासिक होते हुए भी स्कंदगुप्त क्यों एक आधुनिक नाटक हैं? तार्किक उत्तर दीजिये।
14 Aug 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | हिंदी साहित्यइतिहास के प्रति प्रसाद का नजरिया उपयोगितावादी था। प्रसाद ने 1928 में स्कंदगुप्त नाम का ऐतिहासिक नाटक लिखा। परंतु इस नाटक के लेखन का उद्देश्य अतीत का गौरवगान करना नहीं था बल्कि प्रसाद ऐतिहासिक परिस्थिति में आधुनिक समस्याओं को रखकर उनका हल सुझाना चाहते हैं। इसी कारण यह नाटक ऐतिहासिक कलेवर का होते भी मूल्यबोध के स्तर पर आधुनिकता को धारण करता है।
स्कंदगुप्त का ऐतिहासिक ढांचा सिर्प इसलिये रखा गया है क्योंकि प्रसाद इतिहास के प्रेरणा लेना चाहते हैं। यदि इस ऐतिहासिक ढाँचे को 1928 के भारत पर आरोपित कर दें तो ऐतिहासिकता का आवरण हटने लगता है और राष्ट्रीय चिंताएँ केंद्र में आ जाती हैं। स्कंदगुप्त स्वाधीनता संग्राम के नेता का प्रतीक है। पुष्यमित्र और हूण विदेशी आक्रांताओं अर्थात् ब्रिटिश सत्ता के प्रतीक हैं। बौद्ध-ब्राह्मण संघर्ष उस समय की हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिकता की अभिव्यक्ति है जबकि मालव और गुप्त साम्राज्य का संबंध आधुनिक क्षेत्रवादी प्रवृत्तियों को नकारने की कोशिश है। इन प्रतीकों के आधार पर देेखने पर नाटक स्पष्ट रूप से आधुनिक नजर आता है। इस नाटक की पृष्ठभूमि भले ही ऐतिहासिक हो लेकिन समस्याएँ आधुनिक हैं।
स्कंदगुप्त नाटक का नायक स्कंदगुप्त राजनीतिक दुरभिसंधियों से त्रस्त है। राजमाता तथा उसका सौतेला भाई उसे शासन से जितनी जल्दी हो सके उतने जल्दी हटाना चाहते हैं। आधुनिक समाज में भी किसी भी तरह सत्ता प्राप्त करने की यह प्रवृत्ति देखी जा सकती है। इसमें दर्शाई गई बौद्ध-हिन्दू की सांप्रदायिकता की समस्या हिन्दू मुस्लिम सांप्रदायिकता के रूप में विद्यमान है और देश का एक विभाजन कराने के बाद भी पूर्णत: शांत नहीं हुई है।
देश में क्षेत्रवाद की समस्या आज पहले से कहीं भीषण रूप धारण कर रही है प्रसाद ने अपने नाटक में केंद्र-राज्य के समरसतापूर्ण संबंधों के रूप में इसके समाधान का उपाय सुझाया है।
स्कंदगुप्त में इन सभी आधुनिक समस्याओं की उपस्थिति व इनके समाधान के संकेत तो इस नाटक को आधुनिक बनाते ही हैं। परंतु इस नाटक को आधुनिक बनाने वाला सबसे बड़ा तत्व है इस नाटक में प्रसाद द्वारा प्रतिपादित जीवन दृष्टि प्रसाद अपने नाटक के माध्यम से जीवन के वास्तविक उद्देश्य भी प्रतिपादित करते हैं। मानव आज भी आंतरिक विषमताओं का शिकार है। जैसे-जैसे वह अपनी मूल प्रवृत्तियों से कटता जा रहा है वैसे-वैसे यह आंतरिक विषमता बढ़ती जा रही है। इस विषमता के उत्तर के रूप में प्रसाद समरसता युक्त आनंदमूलक शांत रस को प्रस्तावित करते हैं।
संवेदना के साथ-साथ शिल्प के स्तर पर भी स्कंदगुप्त एक आधुनिक नाटक है। इस प्रकार सभी कसौटियों पर कथा के धरातल पर ऐतिहासिक होते हुए भी स्कंदगुप्त एक आधुनिक नाटक है।