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भारत के स्वतंत्रता संग्राम ने उस चरण के दौरान कला और साहित्य को कैसे प्रभावित किया। परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

14 Aug 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण

• भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का उल्लेख करते हुए परिचय दीजिये।

• स्वतंत्रता संग्राम के कारण कला और साहित्य की शैली और रचनाओं में आए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिये।

• भारत में राष्ट्रवाद के विकास में इनके योगदान का उल्लेख करते हुए समाप्त कीजिये।

परिचय

भारत अपनी समृद्ध कला और संस्कृति के लिये जाना जाता है। जैसे-जैसे समाज बदलता है, वैसे ही कला और साहित्य भी। जैन धर्म, बौद्ध धर्म जैसे महान धर्मों की उत्पत्ति की भूमि के रूप में प्राचीन और मध्यकाल भारतीय कला पर धार्मिक प्रभाव के लिए जाना जाता था। इसी प्रकार आधुनिक काल में अवांत-गार्डे (Vanguard या Advance Guard) आंदोलन राष्ट्रवाद के गौरव में निहित रहा, जिसने ‘स्वदेशी’ के मूल्यों के माध्यम से भारतीय कला को परिवर्तित किया।

स्वरूप/ढाँचा

स्वतंत्रता संग्राम भारतीय कला और साहित्य के राष्ट्रवादी उत्कर्ष और अभिव्यक्ति को निम्नलिखित तरीकों से सामने लाया:

चित्रकला

  • वर्ष 1905 के स्वदेशी आंदोलन के कारण बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट का जन्म हुआ, जिसकी शुरुआत तत्कालीन कलकत्ता और शांतिनिकेतन में हुई थी।
    • वर्ष 1906 में बंगाल विभाजन का विरोध करने के लिये अबनींद्रनाथ टैगोर ने पश्चिमी प्रभाव के खिलाफ एक आवाज़ के रूप में बंग माता/भारत माता को चित्रित किया। इसकी चार विशेषताओं- भोजन, कपड़ा, शिक्षा और आध्यात्मिक ज्ञान को राष्ट्रवादी लक्ष्यों के प्रयोजनों के रूप में देखा गया।
  • चित्रों का उपयोग भारतीय इतिहास के गौरवशाली अतीत को जगाने के लिए एक साधन के रूप में किया गया था। इस तरह के एक चित्र का एक उदाहरण ‘द पासिंग ऑफ शाहजहाँ ’है, जो अबनींद्रनाथ टैगोर द्वारा मुगल मिनिएचर (छोटे आकार का चित्र) परंपरा के प्रति एक सम्मान था।
  • ‘कंपनी चित्रों ’की रोमांटिक शैली को राजा रवि वर्मा ने हिंदू देवी-देवताओं और भारतीय जीवन के पौराणिक दृश्यों के चित्रों से बदल दिया था। उनके प्रिंटिंग प्रेस में बड़ी संख्या में इन्हें फिर से छापा गया था और पोस्टर और कैलेंडर कला के रूप में पूरे देश में मध्यम वर्ग के घरों में वितरित किया गया था।
  • नंदलाल बोस ने चित्रों की एक श्रृंखला बनाई, जिसने भारतीय जीवन और स्वदेशी व्यवसायों की भावना का आह्वान किया। इन पोस्टरों ने पश्चिमी सामग्री/शैली को अमान्य करते हुए इसके बजाय जापानी सुलेख (कैलीग्राफी), प्राकृतिक रंगों और ग्रामीण-जीवन के दृश्यों का समावेश किया। उदाहरण के लिये, हरिपुरा में हुए कांग्रेस के अधिवेशन के लिये बनाए गए पोस्टर।
  • चित्रकला की कालीघाट शैली: कारीगरों और शिल्पकारों (पटुआ या स्क्रॉल चित्रकारों) ने यूरोपीय तकनीकों के साथ अपने पारंपरिक ज्ञान का उपयोग किया। उन्होंने उन्होंने धार्मिक विषयों को लेकर स्मृति चिह्न बनाए (प्राच्य कला), जिसमें समकालीन समाज- बाबू संस्कृति (समसामयिक कला) को मिश्रित किया गया।
  • ज़ैनुल आबदीन जैसे कलाकारों ने वर्ष 1943 के बंगाल दुर्भिक्ष के दौरान भयावह स्थितियों को दिखाने के लिये रेखाचित्र बनाए, जो भारत में ब्रिटिश सरकार की नीतियों का परिणाम था।

संगीत तथा साहित्य

  • कविताओं, नारों, लोकगीतों और संगीत के विषयों को राजनीतिक जागरूकता और सामाजिक मुद्दों पर स्थानांतरित कर दिया गया, जो पहले धर्म, सूफीवाद और अपने साथी के लिये प्रेम पर आधारित थे।
  • रबींद्रनाथ टैगोर, मोहम्मद इकबाल, बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय जैसे लेखकों और कवियों ने साहित्य, कविता और भाषण का इस्तेमाल भारतीयों पर अंग्रेजों द्वारा किये जा रहे अत्याचारों के खिलाफ जागरूकता फैलाने और लोगों को देश के लिये लड़ने हेतु प्रोत्साहित कर स्वतंत्रता के विचार का प्रसार करने के लिये किया।
  • उपन्यासों का जन्म 19वीं शताब्दी के सामाजिक सुधार आंदोलनों से निकटता से जुड़ा हुआ था। भारतीय क्रांतिकारियों और राष्ट्रवादी नेताओं का मंत्र- वंदे मातरम वर्ष 1882 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के बंगाली उपन्यास आनंदमठ में लिखा गया था।
  • अस्पृश्यता, जातिभेद, विधवाओं के पुनर्विवाह से इनकार आदि जैसी सामाजिक कुरीतियों और प्रथाओं की पुन: पड़ताल करने के लिये उपन्यास लिखे गए थे।

निष्कर्ष

इसलिये, कला और साहित्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि उन्होंने जनता के बीच ब्रिटिश सांस्कृतिक वर्चस्व को तोड़ने, अपनी पहचान पुनः कायम करने और स्वदेशी प्रथाओं पर गर्व करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।