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‘छत्तीसगढ़ी’ बोली के क्षेत्र और व्याकरणिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिये।

11 Aug 2019 | रिवीज़न टेस्ट्स | हिंदी साहित्य

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

छत्तीसगढ़ी हिंदी की ‘पूर्वी हिंदी’ उपभाषा के अंतर्गत आने वाली बोली हैं। यह वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य की बोली है जिसे इतिहास में दक्षिण कोसल भी कहा गया है। चेदि राजाओं के कारण इस क्षेत्र का नाम चेदीसगढ़ पड़ा और उसी से बदलकर छत्तीसगढ़ हो गया। इसके क्षेत्र के अंतर्गत सरगुजा, बिलासपुर, रायपुर, रायगढ़, दुर्ग तथा नंदगाँव आदि जिले आते हैं। यह क्षेत्र भोजपुरी, मगही, बघेली, मराठी और उड़िया भाषी क्षेत्रों से घिरा है तथा इन सभी का प्रभाव स्पष्ट रूप से छत्तीसगढ़ी पर दिखता है। यह बोली भी आमतौर पर अवधी के समान ही है। इसकी विशेष प्रवृत्तियाँ इस प्रकार हैं-

(अ) उच्चारण में महाप्राणीकरण इसकी मूलभूत विशेषता है -

दौड़ > धौड़ कचहरी > कछेरी

जन > झन

(आ) ‘स’ के स्थान पर ‘छ’, ‘ल’ के स्थान पर ‘र’ तथा ‘ब’ या ‘व’ के स्थान पर ‘ज’ करने की प्रवृत्ति मिलती है -

सीता > छीता बालक > बारक

(इ) ष तथा श को स के रूप में बोला जाता है -

भाषा > भासा दोष > दोस

(ई) एकवचन से बहुवचन बनाने के लिये प्राय: ‘मन’ प्रत्यय जोड़ा जाता जैसे - ‘हममन’ (हम लोग)।

(उ) बहुवचन के लिये ‘न’ का प्रयोग भी किया जाता है जैसे- ‘लरिकन’।

(ऊ) क्रिया के साथ आने वाले ‘त’ और ‘ह’ को जोड़कर ‘थ’ बनाने की प्रवृत्ति भी मिलती है-

करते हैं > करतथन

(ए) कर्म, सम्प्रदान के लिये ‘ल’ परसर्ग तथा करण, अपादान के लिये ‘ले’ परसर्ग का प्रयोग विशिष्ट है।

(ऐ) पुल्लिंग को स्त्रीलिंग करने के लिये इन, आनि, इया आदि प्रत्यय विशेष रूप से प्रचलित हैं, जैसे- जेठानी, बुढ़िया, नतनिन आदि।